आतंक के अपने ही जाल में फंसा पाकिस्तान

आग से खेलना हमेशा खतरनाक होता है। क्योंकि आग कभी भी किसी का निर्देश नहीं मानती। आतंकवाद भी किसी आग से कम नहीं है। यह जहरबुझी एक ऐसी दोधारी तलवार है जिसे माहिर से माहिर तलवारबाज दूसरे पर भांजते-भांजते कब अपने को घायल कर ले कोई नहीं जानता? पाकिस्तान के साथ यही हो रहा है। वह आतंक की आग से दूसरे को झुलसाते-झुलसाते अब खुद भी इसमें झुलस रहा है। वैसे भी कहते हैं कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह खुद भी गड्ढे में गिर जाता है।

इस्लामाबाद के मैरिएट होटल में पाकिस्तान के हाल के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकवादी धमाका हुआ, जिसमें आतंकवादियों ने 600 किलोग्राम विस्फोटकों का इस्तेमाल किया। विस्फोटकों से भरा एक टक तमाम सुरक्षा व्यवस्था को दरकिनार करते हुए होटल के पोर्च तक जा पहुंचा और फिर जबरदस्त विस्फोट हुआ, जिसमें अधिकृत तौर पर 60 और अनधिकृत तौर पर 100 से ज्यादा लोग मारे गए। मारे जाने वालों में चेकगणराज्य के राजदूत भी शामिल थे।

इस विस्फोट ने पहले से ही पाकिस्तान की पश्र्चिमी दुनिया में बनी एक बर्बर देश की छवि को और पुख्ता किया है। आस्टेलियाई िाकेट टीम के कप्तान रिकी पोटिंग ने शायद इस पाक छवि की तरफ ही इशारा करते हुए कहा है हमारा निर्णय पाकिस्तान में न खेलने का बिल्कुल सही रहा। पाकिस्तान के हालात भयानक रूप से आत्मघाती हैं। दरअसल, पाकिस्तान ने पिछली सदी के 80 के दशक में आतंक के जहरीले नाग को दूध पिलाना शुरू किया था। यह उसकी भले कूटनीतिक और रणनीतिक विवशता रही हो लेकिन पाकिस्तानी शासकों ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को इन विवशताओं के समीकरण में मिलाकर आतंक को न सिर्फ शह दी बल्कि उसको पाला पोसा। दरअसल, उस समय पाकिस्तान में आतंक की यह जहरीली पौध रोपे जाने में अमरीका का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बड़ा योगदान था। क्योंकि न सिर्फ पाकिस्तान के लिए अपितु अमरीका को भी आतंक के उन जहरीले सपोलों को फुफकारते नागों में बदलकर उनसे कई फायदे लेने थे।

तात्कालिक तौर पर अमरीका का फायदा यह था कि अफगानिस्तान में घुस आये सोवियत संघ को वहां से निकाल बाहर फेंका जाए और दुनिया के इस सबसे संवेदनशील इलाके पर अपना नियंत्रण रखा जाय। यही कारण है कि 20वीं सदी के 80 के दशक में अमरीका ने पाकिस्तान को जो सैन्य सहायता देनी शुरू की वह हर गुजरते साल के साथ बढ़ती ही रही। यही नहीं पाकिस्तान इस दौरान तमाम बेकाबू हरकतें भी करता रहा लेकिन अपनी तात्कालिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अमरीका ने पाकिस्तान की इन हरकतों की भी अनदेखी की। वाशिंगटन से डॉलरों के बोरे हवाई जहाजों में लदकर आते रहे और पाकिस्तान के शासक उन डॉलरों से ऐश करते रहे। बदले में उन्हें एक ऐसी जहरबूझी आतंकी नस्ल पैदा करनी थी जो उसके इशारे पर अफगानिस्तान से सोवियत संघ को भगा दे और अफगानिस्तान को अमरीका व पाकिस्तान के शासकों को सौंप दे।

लेकिन इतिहास गवाह है कि चाहे तानाशाह हों या विस्तारवादी ख्वाहिश रखने वाले दूसरे शासक, वे यह भूल जाते हैं कि आत्मघाती जिन्न हमेशा इशारों और निर्देशों का पालन नहीं करते। पाकिस्तान में आज यही हो रहा है। फौज, आइएसआइ और हुक्मरानों ने जो आतंकी अपने इशारे पर दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने के लिए तैयार किए थे। अब उन्होंने इनका निर्देश मानने से इनकार कर दिया है और बजाय दुश्मनों के इन्हें ही अपना शिकार बनाने लगे हैं। पाकिस्तान को आतंक की फैक्टरी कहा जाता है। दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद की कुमुक पाकिस्तान से ही हर जगह पहुंचती है। लेकिन आज वही पाकिस्तान दुनिया की सबसे खतरनाक जगह में तब्दील हो चुका है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब पाकिस्तान में कहीं न कहीं, कोई न कोई बम विस्फोट न होता हो। कमोबेश पाकिस्तान के हालात ईराक जैसे हो गए हैं लेकिन ईराक में आतंकवादियों के निशाने पर अमरीका या वो ईराकी हैं, जो विदेशियों की मदद से अपने ही देश के एक तबके पर हुक्म चलाना चाहते हैं। मगर पाकिस्तान में तो इन आत्मघातियों का शिकार अब वही पाकिस्तान बन रहा है जिसने कभी इन्हें पाल पोसकर तैयार किया था।

पाकिस्तान की स्थिति आज विश्र्व परिदृश्य में एक आत्मघाती देश के रूप में उभर रही है। जहां कभी भी और कुछ भी हो सकता है। ज्यादातर देश अपने नागरिकों को सलाह दे रहे हैं कि वह पाकिस्तान न जाएं, क्योंकि पाकिस्तान में कोई भी सुरक्षित नहीं है। पिछले तीन सालों में पाकिस्तान आनेवाले विदेशी पर्यटकों की संख्या बिल्कुल तलछट पर पहुंच गई है। वैसे भी पाकिस्तान में विदेशी पर्यटक न के बराबर ही आते हैं। उस पर खून-खराबा, गोली-बारूद, बारूद का कारोबार और लगातार जारी राजनीतिक आस्थरता ने पाकिस्तान के वजूद को झकझोर कर रख दिया है। सवाल है कि क्या पाकिस्तान अब भी कोई सबक लेगा? मैरिएट होटल में जिस किस्म का भयानक धमाका हुआ; वह जंग का अखाड़ा बन चुका अफगानिस्तान की याद दिलाता है। जहां न कोई भविष्य है न वर्तमान।

पाकिस्तान की हालात एक दृष्टि से अफगनिस्तान से भी बुरी है। क्योंकि अफगानिस्तान के कबीले तो आपसी वर्चस्व के लिए खूनी जंग कर रहे हैं। उनके बीच अलग देश या अफगानिस्तान के विभाजन का कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन पाकिस्तान में तो जिस तरह इलाकाई विद्रोह नयी उंंचाईया हासिल कर रहा है उससे पाकिस्तान के एक और बंटवारे का खतरा पैदा हो गया है। आज पाकिस्तान का कोई इलाका और कोई शहर सुरक्षित नहीं है। कराची अपराध का महानगर है तो लाहौर आतंकियों के निशाने पर है। पेशावर हमेशा से खून-खराबे और आतंकी वारदातों के लिए मशहूर रहा है, तो रावलपिंडी वह जगह है जहां आतंक के कारखाने मौजूद हैं। पाकिस्तान के जिन मदरसों पर युवकों को बरगलाकर उन्हें आतंक की अंधी सुरंग में धकेल देने का आरोप लगता है, वे तमाम मदरसे रावलपिंडी में ही मौजूद हैं। ले दे कर एक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद ही आतंक से किसी हद तक महफूज थी, उस इस्लामाबाद में जिस तरह अब तक का सबसे बड़ा आत्मघाती बम विस्फोट किया गया, उससे यह साबित हो गया कि इस्लामाबाद भी सुरक्षित नहीं है।

पाकिस्तान आतंक के अपने ही जाल में फंस गया है। उसने जो गड्ढा पूरी दुनिया के लिए खोदा था अब उसमें खुद ही आ धंसा है। लेकिन इन सबके बावजूद भी पाकिस्तान भारत के साथ मिलकर आतंकवाद के विरूद्घ ईमानदाराना लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नहीं है। अमेरिका के साथ सहयोग करना उसकी मजबूरी है। क्योंकि अगर वह सहयोग नहीं भी करता तो भी अमरीका पाकिस्तान में बेखौफ घुसकर आतंकवादियों की न सिर्फ धर-पकड़ कर रहा है बल्कि उन पर गोले भी बरसा रहा है। लेकिन भारत के साथ पाकिस्तान अभी भी षडयंत्रकारी रवैया अपनाने से बाज नहीं आ रहा है। लगातार पाकिस्तानी शासक कश्मीर का राग अलाप रहे हैं और कह रहे हैं कि वह कश्मीर के उग्रपंथियों को अपना नैतिक और राजनैतिक समर्थन देना जारी रखेंगे। शायद किसी ने सही कहा है- कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। पाकिस्तान उन्हीं में से है। ऐसे में पाकिस्तान के साथ सीमा व्यापार का एक और प्वाइंट खोलना भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से भले कोई मायने रखता हो, व्यवहारिक दृष्टि से यह आतंक को अपने घर में प्रवेश देने के लिए एक दरवाजा खोलने जैसा है।

 

– डॉ. एम.सी. छाबड़ा

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