उफ्फ़! ये स्पेलिंग

uff-ye-spellingदोस्तों, जिन्हें अंग्रे़जी नहीं आती उनके लिए अंग्रे़जी लिखना क्या और अंग्रे़जी बोलना क्या- दोनों ही कठिन होता है। इन लोगों को यह जानकर अच्छा लगेगा कि अमेरिकी लोग, जिनकी भाषा ही अंग्रे़जी है, उनमें से चार करोड़ लोग एक तरह से अशिक्षित ही हैं, क्योंकि उन्हें रोजमर्रा के व्यवहार में अपनी ही भाषा लिखना या पढ़ना नहीं आता। इसका कारण है-अंग्रे़जी शब्दों की स्पेलिंग।

दुनिया भर की भाषा कहलाने वाली अंग्रे़जी के साथ यह परेशानी पिछले 500 वर्षों से, इसे बोलने और सीखने वाले झेल रहे हैं।

एक विद्वान हैं – विलियम लेंडहिल, जिन्होंने उच्च व्याकरण और उच्चारणों पर पीएचडी कर रखी है। वे कहते हैं कि अंग्रे़जी के 4000 शब्दों की स्पेलिंग तो एकदम बेमानी है। यदि जैसा बोलते हैं वैसी ही स्पेलिंग बना दी जाए तो बच्चे अंग्रे़जी जल्दी सीखेंगे। विश्र्वास कीजिए कि ऐसी मुहिम काफी पहले शुरू हो चुकी है।

सिंप्लीफाइड स्पेलिंग सोसायटी अपनी स्थापना की एक सदी पूरी कर रही है। इस मौके पर नए उत्साह के साथ वह फिर से सरलीकृत स्पेलिंग का अभियान शुरू कर रही है। ग्लेंडहिल भी इसके सचिव रह चुके हैं। इन सबका कहना है कि इंटरनेट और खासकर एसएमएस में जिस तरह आसान स्पेलिंग बनाई जा रही है, उनका प्रयोग पुस्तकों और पढ़ाई-लिखाई में भी हो। लेकिन शिक्षकों को इससे दिक्कत है। स्कूल-कॉलेजों के संगठन के मुखिया जॉन डंफर्ड का कहना है कि भाषा और उसके शब्दों की स्पेलिंग का कायदा और अनुशासन आना ही चाहिए। ध्यान देने पर यह समझने में देर नहीं लगती कि कब बट कहा जाना है और कब पुट। वैसे यह जानना म़जेदार लगेगा कि अमेरिका के एक पूर्व राष्टपति थियोडर रूजवेल्ट का कहना भी यही था कि स्पेलिंग आसान हो। यह है न अजीब बात कि अंग्रे़जों के अपने देश में अंग्रे़जी न आने से देश को हर वर्ष 10 बिलियन पाउंड का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो भी हो, सस्पेस (सरलीकृत स्पेलिंग समाज) के सदस्यों की संख्या दुनियाभर में 35,000 से अधिक है। हालांकि लंदन शाखा में यह पहले से घटकर 500 रह गई है।

 

– गौरय्या

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