कानून के हाथ

kanun-ke-haat-kahaniप्राइवेट टक का डाइवर है कमालुद्दीन। अधिकतर वह घर से बहुत दूर शहर दर शहर ही रहता। टक ही उसका घर बन गई। टाइम-बेटाइम जब घर पहुंचता, तो किसी को उसका पता भी नहीं चलता। उसका घर गली के बहुत अन्दर था। गली में पत्थर बिछे हुए थे, लेकिन उसके कई पत्थर उखड़ गये थे। नालियों का पानी कई जगह पत्थरों के बीच भर जाता था। मुर्गियां, सुअर और कुत्ते इधर-उधर दौड़ते, लोटते या सोते हुए दिखायी देते थे। उन्हीं के साथ आस-पड़ोस के नंगे-अधनंगे, मैले-कुचैले बच्चे खेलते-कूदते और लड़ते-झगड़ते रहते थे।

कमालुद्दीन के एक-एक करके पांच लड़कियां हो गईं और उसकी पत्नी छठवीं संतान को भी जन्म देने वाली थी। पहले सब ठीक-ठाक चलता रहा। सबसे बड़ी लड़की नाहिद ने चौथी जमात तक मकतब में तालीम हासिल की। इसके बाद आमदनी और खर्च में कोई तारतम्य नहीं रहा। खाने-पीने का ही खर्च जुटाना मुश्किल हो गया। फिर लड़कियां शादी योग्य हो गयीं। कमालुद्दीन के पास न तो पैसा था और न ही रिश्ते तलाशने का वक्त। उसकी लड़कियों के लिए कहीं से कोई पैगाम भी नहीं लाता।

कमालुद्दीन के रिश्ते की फूफी का देवर जहूरबख्श, जो पाकिस्तान जाकर बस गया था, वह भारत आया। दरअसल, वह किसी ऐसी लड़की से निकाह करने की गरज से आया था, जो उसके साथ पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो। उसका पहली बीवी से तलाक हो चुका था। उसकी उम्र काफी थी, और साथ ही वह नपुंसक भी था। वहां बदनामी की वजह से उसे कोई अपनी लड़की नहीं दे रहा था। यहां आकर उसने भाभी से सलाह करके नाहिद के लिए कमालुद्दीन के पास पैगाम भेजा। यह पैगाम खुद उसकी भाभी लेकर गयी।

कमालुद्दीन पशोपेश में पड़ गया। इस पैगाम से उसे जहां एक ओर अपनी एक जिम्मेदारी से छुटकारा पाने की राह दिखाई दे रही थी, वहीं दूसरी ओर लड़की के पाकिस्तान चले जाने का दुःख भी सता रहा था। फिर ज्यादा उम्र होने की वजह से जहूरबख्श के साथ नाहिद की जोड़ी भी नहीं जमती थी।

फूफी ने कमालुद्दीन को समझाते हुए कहा, “”क्या सोचते हो? सक्खर में जहूरबख्श की जमीन-जायदाद है। लड़की रानी बनकर रहेगी। अभी यहीं के पासपोर्ट पर जायेगी। वह चाहे जब यहां आ-जा सकती है। तुम्हें कुछ लगाना नहीं है। वही सब खर्च उठायेगा।”

“”पर, जहूरबख्श की उम्र?” कमालुद्दीन ने लगभग समर्पण की मुद्रा में शंका व्यक्त की।

“”अरे, मर्द की उम्र का क्या है? उम्र तो औरत की ढलती है। मर्द तो साठे पर पाठा रहता है। और लड़की भी तो सयानी हो गई है। उसे कब तक बिठाये रखोगे?” फूफी ने कमालुद्दीन की शंकाओं पर विराम लगाया और उसे नोटों की एक गड्डी थमाते हुए कहा, “”बस जल्द निकाह की तैयारी करो। लड़की का पासपोर्ट बनते ही वह उसे लेकर लौट जायेगा।”

कमालुद्दीन ने सब कुछ अल्लाह की मर्जी पर छोड़कर नाहिद का निकाह जहूरबख्श से कर दिया और नाहिद रोती हुई जहूरबख्श के साथ चली गयी।

नाहिद अन्दर से बहुत शंकित थी। उसे जहूरबख्श अच्छा इंसान नहीं लग रहा था। फिर भी उसने हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश की। उसकी हर आज्ञा का पालन किया।

जहूरबख्श ने सक्खर पहुंचते ही नाहिद का भारतीय पासपोर्ट ले लिया और उसके स्थान पर उसे रिश्र्वत देकर बनवाया हुआ पाकिस्तानी पासपोर्ट दे दिया। उसे झटपट पाकिस्तानी नागरिकता भी दिला दी। इसके बाद उसने नाहिद से एक नौकरानी जैसा बर्ताव शुरु कर दिया। नाहिद ने इसमें कोई चूं-चपड़ नहीं की। परंतु जब उसने उसके यौन-शोषण द्वारा धंधा कराने का इरादा प्रकट किया, तो नाहिद ने साफ इंकार कर दिया। इस पर वह नाहिद को तंग करने लगा। उसे एक कमरे में बंद करके रखने लगा। उसका खाना-पानी भी बंद कर दिया। जब मन हुआ, उसे गालियां देता हुआ मारने-पीटने लगा। नाहिद यह सब भी सहती रही, जब सीमा से बाहर हो गया तो प्रतिकार करने लगी। इससे उसे और जुल्म सहने पड़े। उसने अपने मायके चिट्ठी भेजनी चाही, परंतु वह इसमें सफल न हो सकी।

डेढ़ साल तक अपनी लड़की की कोई खबर न पाकर नाहिद की मां बेचैन हो उठी। उसने जहूरबख्श के पते पर कई चिट्ठियां लिखीं, पर कोई जवाब न पाकर उसने जहूरबख्श की भाभी से पूछताछ की, इस पर भी उसे कोई संतोष नहीं हुआ। वह कमालुद्दीन को बार-बार ताने देकर कुरेदने लगी। कमालुद्दीन वैसे ही अपनी बेटी के निकाह के कारण मन-ही-मन अपराध-बोध से ग्रस्त रहने लगा था। पत्नी की बातें सुनकर उसका जी कचोट उठा। उसने अपने मालिक को अपनी व्यथा सुनाकर कर्ज लिया और पत्नी को नाहिद की खैर-खबर लेने के लिए सक्खर भेज दिया।

नाहिद की मां सक्खर में उनके बारे में पूछते-पूछते अचानक ही जहूरबख्श के घर पहुंच गई। जहूरबख्श को इसकी कोई उम्मीद न थी। इसलिए नाहिद के प्रति अपने बर्ताव को वह छिपा न सका। नाहिद उस वक्त एक साधारण-सा मैला-कुचैला कुर्ता पहने हुए जूठे बर्तन मांज रही थी। उसके चेहरे पर रंगत की जगह बंधक की-सी विवशता घिर आयी थी। डेढ़ साल में वह ऐसी लग रही थी जैसे किसी लम्बी बीमारी से उठी हो।

नाहिद को इस हालत में देखकर उसकी मां की आँखों से आंसू उमड़ पड़े। उसे कुछ समझना बाकी न रहा। उसने नाहिद को छाती से लगा लिया। कुछ देर बाद जब उसके आंसू थमे, तब उसका सारा शरीर जहूरबख्श के प्रति गुस्से से थरथरा उठा। वह ऊंची आवाज में जहूरबख्श को गालियां देने लगी। जहूरबख्श ने कुछ सफाई देने की कोशिश की, तो उसका पारा और चढ़ गया। मुहल्ले के कुछ लोग भी वहां इकट्ठे हो गये।

नाहिद की मां ने कहा, “”मैं ऐसे जल्लादों के साथ अपनी लड़की को नहीं रहने दूंगी। इसे अपने साथ वापस ले जाऊँगी।”

जहूरबख्श ने पहले उससे मिन्नत की और अपने किये की माफी मांगी। साथ में आश्र्वासन भी दिया कि वह नाहिद को कोई तकलीफ नहीं देगा। परंतु नाहिद की मां टस से मस न हुई तो जहूरबख्श ने ाुद्घ होकर नाहिद से पूछा, “”तू क्या कहती है? तू मेरी बीवी है। मेरा हुक्म मानना तेरा फर्ज है। चल अन्दर चल।”

जहूरबख्श ने उसका हाथ पकड़कर खींचना चाहा, तो नाहिद बिफर पड़ी, “”बस बहुत हो चुका। मैं मां के साथ जाऊंगी।”

जहूरबख्श ने आपे से बाहर होकर कहा, “”तो मैं तुझे सबके सामने तलाक देता हूं। तलाक…तलाक…तलाक। बस सारा रिश्ता खत्म।”

नाहिद फिर वहां एक क्षण भी नहीं ठहरी। वह अपना पासपोर्ट लेकर मां के साथ चल पड़ी। एक पड़ोसी की मदद से उसे वीसा मिल गया और वह अपनी मां के साथ घर लौट आई।

नाहिद धीरे-धीरे उस डेढ़ वर्ष के नारकीय जीवन को भूल ही रही थी कि उसे एक सरकारी नोटिस मिला, जिसमें लिखा था कि उसका वीसा खत्म हो चुका है और वह सात दिन के अन्दर थाने में अपनी आमद दर्ज करवा कर वापस पाकिस्तान चली जाये। इस नोटिस से नाहिद एकदम घबरा उठी, तभी उसे पता चला कि जहूरबख्श ने क्यों उससे भारतीय पासपोर्ट लेकर पाकिस्तानी पासपोर्ट थमा दिया था। परंतु अब वह क्या कर सकती थी? वह किसी भी सूरत में पाकिस्तान जाना नहीं चाहती थी। उसे बलपूर्वक विदेशी बनाया गया, यह बात वह सरकार को कैसे समझाए, पशोपेश में सात दिन बीत गये।

 

– डॉ. परमलाल गुप्ता

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