क्रोध से करुणा की ओर – आनन्दमूर्ति गुरु मॉं

भगवान आदि शंकराचार्य कहते हैं –

मनोबुद्घहंकार चित्तानि नाहं,
न च श्रोत्रजिठे न च घ्राणनेत्रे।
न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहं।

न “मैं’ मन हूँ, न “मैं’ बुद्घि हूँ, न “मैं’ अहंकार हूँ, न “मैं’ चित्त हूँ। “मैं’ यह कुछ भी नहीं हूँ। जो “मैं’ हूँ, उसका होश सद्गुरु ने ज्ञान से करा दिया है। लेकिन सामने वाला “मुझे’ जानता नहीं, इसलिए उसका दिया हुआ ना मान “मेरे’ तक पहुँचता है और ना ही अपमान। यह शरीर तो बाहरी चोला है, शरीर तो बाहरी कपड़ा है। यह शरीर तो “मैं’ हूँ नहीं। ऐसे जो होश में रहता है, उसको कभी भी क्रोध नहीं सता सकता। क्रोध के वेगों से वह कभी परेशान नहीं होता।

अब हम बात करते हैं एक आम आदमी की, जिसे अंदर का होश कोई है नहीं, ऐसा आदमी तो हमेशा ही क्रोध करता रहता है। तो वह क्या करें ताकि वह क्रोध के इस वेग से बचें? अब, सबसे पहली बात जो समझने की है, वह यह कि हम ाोधित तब होते हैं, जब हमारी मर्जी पूरी नहीं होती। क्यों आता है गुस्सा? जब हमारी मर्जी पूरी नहीं होती। हमने जो कुछ चाहा था, हमने जो कुछ सोचा था, उस हमारी सोच के मुताबिक काम नहीं हुआ, तो गुस्सा आता है। हम अपनी मर्जी जब दूसरों पर लागू करना चाहते हैं, तो फिर उसका नतीजा क्रोध ही होगा, और क्या होगा।

हर पति चाहता है कि पत्नी उसकी आज्ञा में रहे और हर पत्नी चाहती है कि पति उसी का कहा माने। बच्चे चाहते हैं कि मॉं-बाप उनकी हर बात मानें और मॉं-बाप चाहते हैं कि जो हम कहते हैं, बच्चे वही करें। यानी हर आदमी अपनी मर्जी दूसरे पर चलाना चाहता है, लेकिन दूसरे की मर्जी पर चलना तो कोई भी नहीं चाहता। मुसीबत की जड़ यही तो है सारी।

बाप कहते हैं, “घर मेरी मर्जी से चले!’ तो बाप-बेटे में फिर बनती नहीं, क्योंकि मर्जी दो हो गई न! एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं, ऐसे ही एक घर में दोनों की मर्जी कैसे चलेगी, एक की ही चलेगी। अब, जिसकी मर्जी चली, वह हो गया खुश और जिसकी नहीं चली, वह हो गया गुस्सा।

मेरे पास एक प्रश्र्न्न भी आया है। पूछते हैं कि “घर का जो मुखिया’ होता है, वह चाहेगा कि सारा घर उसके मुताबिक ही चले। लेकिन घर के बाकी सदस्यों की अपनी-अपनी मर्जी है, अपने-अपने स्वभाव हैं, सबकी अपनी-अपनी रुचियां हैं। तो ऐसी हालत में जो मुखिया है, जब उसकी मर्जी पूरी ना हो, तो वह अपने आप को अपमानित समझता है। फिर अगर वह जबरदस्ती अपनी मर्जी दूसरों पर लागू करता है, तो दूसरे जल-भून जाते हैं। बड़ी समस्या हो जाती है। ऐसी हालत में क्या करें?”

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