गुस्सा विवेक का अंत और अनर्थ की शुरूआत है। क्रोध की अवस्था में मस्तिष्क का शरीर की आपातकालीन क्रियाओं पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है तथा शरीर में एक अजीब किस्म की उत्तेजना व्याप्त हो जाती है। यह उत्तेजना ही मनुष्य को विवेकहीन कर गलत कार्य करने के लिए विवश करती है।
वैसे तो ईर्ष्या, घृणा, द्वेष आदि सभी बुरे भाव मनुष्य की सेहत के लिए घातक हैं, किन्तु स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो गुस्सा ही आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है। जिस तरह तूफान का प्रबल वेग बाग-बगीचों को झकझोर कर उनका सौंदर्य नष्ट कर देता है, उसी तरह क्रोध का तीव्रतम आवेग आदमी के तन-मन में तूफान पैदा कर उससे कई अनर्थ करवा डालता है। पाइथागोरस का यह कथन सत्य है कि गुस्सा बेवकूफी से शुरू होकर पश्र्चाताप पर खत्म होता है।
चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार क्रोध करने पर शरीर की बाह्य एवं आंतरिक क्रियाएँ बुरी तरह प्रभावित होती हैं जिससे शरीर में पैदा होने वाले आवश्यक रसायनों का अनुपात असंतुलित हो जाता है। गुस्से से शरीर की मांसपेशियॉं उत्तेजित होती हैं, जिसके कारण एकदम तनाव में आ जाती हैं। मुख्यतया हाथ-पैर की मांसपेशियॉं अकड़ जाती हैं और फड़कने लगती हैं। इसी तरह चेहरे पर भी खिंचाव आने लगता है, जो शरीर के अन्यान्य अंगों को भी प्रभावित करता है। मुखमंडल लाल होकर तमतमाने लगता है।
क्रोध की अवस्था में जो शारीरिक क्रिया सर्वाधिक प्रभावित होती है, वह है श्र्वसन क्रिया। दरअसल क्रोध के आवेग के कारण शरीर में ऊर्जा का अभाव होने लगता है। इसे पूरा करने के लिए श्र्वसन-क्रिया को अधिक तेजी से काम करना पड़ता है। फेफड़ों पर कार्य का अनावश्यक रूप से अतिरिक्त बोझ पड़ता है और उन्हें अधिक कार्य करना होता है। इस प्रकार श्र्वसन-क्रिया की गति और दर एकाएक बढ़ जाती है। इस दौरान शरीर अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करता है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। यदि ऐसे समय शरीर में ऊर्जा के अभाव की पूर्ति अन्य स्थानों द्वारा न हो पाये तो रक्तचाप, चक्कर आना आदि रोगों की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। डॉ. जे.एस्टर नामक वैज्ञानिक का कथन है कि पन्द्रह मिनट क्रोध में रहने से मनुष्य के शरीर से इतनी ऊर्जा नष्ट हो जाती है जितनी कि वह आसानी से साधारण अवस्था में नौ घंटे तक कड़ी मेहनत कर सकता है।
गुस्सा दिल की बीमारी के लिए भी काफी सीमा तक उत्तरदायी होता है। क्रोध की अवस्था में दिल की धड़कन सामान्य से कहीं अधिक बढ़ जाती है। जिसके कारण शरीर से रक्त-संचार की गति भी असामान्य रूप से तीव्र हो उठती है। हृदय, धमनियों व रक्त वाहिनियों को अधिक कार्य करना पड़ता है। क्रोध की स्थिति में खून की सर्वाधिक मांग मस्तिष्क की तरफ से आती है। रक्त की आपूर्ति में लीवर भी हृदय की मदद करता है। ऐसी सूरत में रक्त में ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ जाता है और अधिक ऊर्जा का निर्माण होता है। हृदय पर पड़ने वाला यह अतिरिक्त भार रक्तचाप सरीखे रोगों को उत्पन्न करता है। कभी-कभी ऐसी स्थिति में हार्ट-अटैक या हार्ट-फेल हो जाता है।
अक्सर देखा गया है कि क्रोधी स्वभाव के लोगों का हाजमा ठीक नहीं होता है। इसका मूल कारण यह है कि गुस्से की अवस्था में उदर एवं आंत संस्थान की क्रियाशीलता तकरीबन समाप्त हो जाती है। गुस्से की स्थिति में खाया गया भोजन कभी नहीं पचता है। इससे पेट दर्द, बदहजमी और अन्य रोग बढ़ते जाते हैं। क्रोध अनेकानेक व्याधियों व आंतरिक रोगों को तो जन्म देता ही है, साथ ही मनुष्य के सौंदर्य को भी नष्ट करता है। शरीर में जहॉं-जहॉं नीली नसें उभर आती हैं, चेहरे पर असमय झुर्रियां पड़ जाती हैं। क्रोध के समय आँखों की दृष्टि-सीमा में फैलाव आ जाता है, जो नेत्र-ज्योति के लिए घातक है।
इसलिए जरूरी है कि क्रोध से बचा जाए और इसका सबसे कारगर उपाय यही है कि क्रोध के कारणों का पता लगाकर आत्म-नियंत्रण द्वारा उनके निवारण का प्रयास किया जाये।
– कैलाश जैन