जीवन गीता

बुद्घ की मृत्यु का कारण था एक गरीब लोहार। उसने बुद्घ को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। बिहार में कुकुरमुत्ते वर्षा के दौरान भारी मात्रा में उग आते हैं। गरीब लोग कुकुरमुत्ते को सुखाकर रखते हैं और उसकी सब्जी बनाते हैं। उस लोहार ने बुद्घ को कुकुरमुत्ते की सब्जी खिलाई। कई कुकुरमुत्तों में जहर होता है, तो बुद्घ ने जिन कुकुरमुत्तों का सेवन किया, उनमें जहर था। बुद्घ जब अपने विहार में लौटे, तो उनका शरीर पीला पड़ चुका था। उन्हें अहसास हो गया कि वे नहीं बचेंगे। उन्हें उस लोहार की चिंता हुई कि लोग उस लोहार को परेशान करेंगे, अतः उन्होंने लोहार के बारे में कहा, “तू अत्यंत धन्यभागी है कि तथागत ने अंतिम अन्न तेरा ग्रहण किया। ऐसा सौभाग्य बहुत मुश्किल से उपलब्ध होता है।’ बुद्घ जाते-जाते यह बोल गए कि उस लोहार को कदापि परेशान नहीं किया जाए। यह शांत आदमी का लक्षण है, जो अपने मरने के बाद भी किसी को परेशान नहीं करना चाहता, लेकिन अशांत आदमी दूसरी तरह की व्यवस्था करता है। एक अशांत वृद्घ व्यक्ति मर रहा था, उसके सात जवान लड़के थे। उसने अपने पुत्रों को आवश्यक संदेश देने के नाम पर बुलाया। उसका छोटा लड़का नासमझ था। वह पिता के पास पहुँचा। पिता ने कान में कहा, “मेरी एक ही प्रार्थना है, इतना तू कर देना। मैं तो मर ही रहा हूँ। मर जाऊं, तो मेरी लाश के टुकड़े बगल वाले घर में डाल देना, तो जब मैं गिरफ्तार पड़ोसी को जेल जाते देखूंगा, तब मेरी आत्मा उसको देख कर संतुष्ट होगी। मैं तो मर ही रहा हूँ, लेकिन उसे सजा हो जाएगी।’ संदेश साफ है। अशांति चारों और अशांति पैदा करती है। शांति चारों ओर शांति पैदा करती है। शांत मनुष्य से इस जगत का अहित असंभव है, लेकिन अशांत आदमी से इस जगत का कोई भी हित असम्भव है।

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