नीली तितलियों का शिकार

अधिक उम्र का होने के कारण हो – वानकी कुछ ही दूर तक तेज चल पाया, फिर टकों के बीच जाकर रुक गया। थोड़ी देर रुक कर जल्दी-जल्दी फेफड़ों में हवा भरने लगा। कुछ सुस्ताने के बाद वह छड़ी के सहारे आगे चल पड़ा। उसने रेडाॉस के सुर्ख निशानों वाले टकों की ओर देखा। टकों की दूसरी तरफ के तंबुओं की ओर भी निहारा, उनके बाहर खुले में ही जख्मी सिपाही पड़े कराह रहे थे। उन्हें अभी-अभी टकों से उतारा गया था और हर सिपाही के किसी न किसी अंग पर सफेद पट्टी बंधी हुई थी, जिस पर खून के निशान थे।

वह एक तंबू के अस्थायी अस्पताल के बाहर जाकर रुक गया। एक लंबी-सी छाया उसके सामने आकर रुक गई। उसे लगा, जैसे अचानक उसके सामने कोई वृक्ष उग आया है। दो-चार और परछाइयां उसके चारों ओर आकर खड़ी हो गईं। उसने सिर उठा कर सामने देखा। सामने वाला आदमी भी उसकी ओर देख रहा था। झुर्रियों के जाल में लिपटी दो चमकीली आँखें और जुड़े हुए होंठ।

“”फरमाइये बुजुर्गवार!”

“”मैं फम चह्नकी को देखने आया था। वह यहां लाया गया है न?”

“”हमें पता करना पड़ेगा”

“”मुझे यहीं के बारे में बताया गया था।” वृद्घ ने कहा।

“”क्या आप चह्नकी के संबंधी हैं?”

“”उसका दादा हूं।”

“”आप कुछ देर ठहरिए।”

वह एक शिला पर बैठ गया।

उस आदमी ने कहा, “”कुछ ही देर में पता लगाए देते हैं।” वे सब लोग जवान थे। उनकी आँखों में एक विशेष प्रकार की कडुआहट थी, एक कठोरता थी। पर वे उसकी ओर मुस्कुरा कर देख रहे थे। स्वभाव से वे लोग भले थे और वृद्घों के प्रति उनके मन में आदर था या शायद वह दिखावा मात्र था।

वृद्घ अपने पौत्र के बारे में सोच रहा था। “”वह बाग में नीली तितलियों के पीछे-पीछे भाग रहा था। वह उन तितलियों के नीले परों को स्पष्ट देख रहा था। वे अपने नन्हें पैरों को खामोशी से फड़फड़ाती, बाग की दीवार लांघ कर दूसरी ओर उड़ जातीं और लड़का इधर ही रुक जाता। लड़के की आँखें खुली और आश्र्चर्य से चमक रही थीं। उनमें जीवन अपने पूरे यौवन पर नजर आ रहा था। वह देख कर बैठ गया, फिर उसके गालों पर छोटी-छोटी लकीरें उभर आईं। उसकी आँखें अभी तितलियों का पीछा कर रही थीं कि वृद्घ को याद आया कि वे किस प्रकार मग्न होकर बातें करने लगे थे, फव्वारा चल रहा था। टहनियों पर पक्षी चहक रहे थे और झाड़ियां फूलती जा रही थीं।

“”आप की-सी सफेद दाढ़ी मेरे कब निकलेगी?”

“”बेटे, सत्तर साल तक तुझे प्रतीक्षा करनी पड़ेगी?”

“”तो क्या मेरा सिर भी आपकी तरह गंजा हो जायेगा।”

“”हां, अगर तू भी मेरी तरह अक्लमंद हो गया तो।”

“”मैं सत्तर साल का कब होऊँगा?”

“”सत्तर साल के बाद मेरे बच्चे!”

“”सत्तर साल कब बीतेंगे?”

“”सत्तर साल बाद मेरे….?

और फिर वह एकदम किलकारी भरकर तितलियों के पीछे भाग गया था।

वह आदमी बाहर आया और कहा, “”वह यहीं है बाबा, पर आप उसे देख नहीं सकते।”

“”नहीं-नहीं! मैं उसे देखे बिना नहीं रह सकता।” “”उसका ऑपरेशन हो रहा है। आपको प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।”

“”अच्छा”, हो-वानकी ने कहा।

पास खड़े एक सिपाही ने सिगरेट जलाई और माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, “”अच्छा सिपाही है, फम चह्नकी। कल रात बहुत बहादुरी से लड़ा। एक बड़े अफसर की उसने जान बचाई। वह अकेला ही देव की तरह एक पूरी बटालियन से लड़ता रहा। आपको तो उस पर गर्व होना चाहिए।”

वृद्घ चुप रहा।

उस सिपाही ने पास खड़े दूसरे सिपाही से पूछा, “”आप जानते हैं, फम चह्नकी को?”

“”हां, हम बहुत दिन तक साथ-साथ लड़ते रहे।”

“”मुझे पता लगा है कि वह बहुत अमीर आदमी था।”

“”वह एक व्यापारी का लड़का है।”

सिपाही ने धुआं हवा में छोड़ा, “”वे लोग बड़े आराम से रह रहे थे। यह उसका दादा बैठा है। क्यों बाबा?”

वृद्घ वर्तमान में आँखें जमाए अनदेखे को देख रहा था। वह अभी तक बाग में खेलते हुए शैतान लड़के के विषय में ही सोच रहा था।

“”आप एक नजर इस वृद्घ की ओर देखें तो आपको पता लग जायेगा कि पूरे परिवार पर क्या बीती है।” सिपाही ने कहा।

“”यह तो होता ही रहता है।”

“”बहुत दिन पहले की बात है। जंगली दुश्मनों ने मां को मार दिया, फिर बाप को। और सब कुछ लूट कर ले गये। घर-जायदाद सब खत्म।”

“”इसमें नयी बात क्या हुई?”

“”जो लोग बच गये, वे बिछड़ गये जैसे कहीं खो गये हों।”

“”फम ने तब क्या किया?”

“”क्या कर सकता था? डरे हुए जानवर की तरह भागता रहा। फिर एक पहाड़ी गांव में कुछ दिन तक पड़ा रहा। तेरह साल की आयु में वह मजदूर हो गया और सत्रह साल की आयु में हमारे साथ लड़ाई के मोर्चे पर था।

“”इसका अर्थ हुआ कि ऐसे कष्ट उसके लिए नये नहीं हैं।”

सिपाही ने गर्दन हिलाई, “”कई वर्ष से वह यह सब देख रहा है। अब वह खून के रंग से नहीं घबराता। मेरा ख्याल है, अगर युद्घ न होता तो वह भी व्यापारी बन जाता अपने पिता की तरह।”

दूसरे सिपाही ने कहा, और मेरा ख्याल “”इन बाबा ने अपने पोते को एक जमाने से नहीं देखा है।”

सिपाही ने वृद्घ की ओर देखा, “”फम ने इनके बारे में मुझे कभी नहीं बताया। मेरा ख्याल है, वह इन्हें मर गया समझता था। क्यों बाबा, कितने दिन हो गये हैं बिछड़े हुए?”

हो-वान की चुप रहा। वह कैसे जान सकता था कि लड़के को देखे उसे कितना समय हो गया है। आठ, नौ, दस साल? जो बात वह जानता था, वह यह है कि वह बैठा रहता और लड़के को प्रिय खेल खेलते देखता रहता। वह उसे एक खाली बोतल के मुंह पर अपने होंठ रख कर सीटी बजाते देख रहा था, उसकी मां दूर खड़ी उसे देख-देख कर हंस रही थी। उसकी मां के कानों में पड़ी बालियां डूबते सूरज की रोशनी में चमक रही थीं। उसे यह भी याद आया कि जब उसके बाप ने उसे पकड़ लिया था, उसकी पसलियों में धड़कन होने लगी थी और वह किस प्रकार ही-ही कर के हंसता रहा था। स्पष्टतः उसने हल्के नीले आकाश की झुकी हुई छत के नीचे बाग में देखा, फिर सारा दृश्य उसे किसी खूबसूरत स्वप्न की तरह आश्र्चर्य दे गया।

हो-वान की ने देखा कि तंबू के अस्पताल के भीतर से वही आदमी फिर बाहर आ रहा था, जिसने पहले आकर फम के ऑपरेशन की सूचना दी थी।

“”क्या मैं अब फम-चह्नकी से मिल सकता हूं?”

“”बाबा, वह आपसे नहीं मिल सकता है।”

“”वह कहां है?”

“”कुछ ही देर में उसे बाहर लाया जायेगा।”

चार आदमी स्टेचर पर लाद कर उसे बाहर ला रहे थे। उसका चेहरा अन्य सिपाहियों के चेहरों से मिलता-जुलता था। वृद्घ के होंठ कांपे। वह देखता रहा। निराशा ने जब तक उसके भीतर सिर नहीं उठाया तब तक देखता रहा। वह उन आंखों को ढूंढ रहा था, जो गहरे लाल रंग में दमक रहती थीं। वह उस चेहरे को ढूंढ रहा था, जिसमें शरारत, मासूमियत और शोखी थी। उसे सिर्फ एक नकाब नजर आया, कठोर और धूल के रंग का-सा नकाब, मुंह खुला हुआ और सूखी हड्डी के से होंठ। वृद्घ के हाथ कांपे और उसने दोबारा कंबल से उसका चेहरा ढक दिया। वह कुछ भी नहीं बोला।

एक सिपाही ने कहा, “”आप इसके दादा हैं। इसका और कोई नहीं है। क्या आप इसकी कब्र पर कुछ शब्द लिखवाना चाहेंगे?”

हो-वान की लगातार उसकी ओर देखता रहा। “”यहां एक सच्चा सिपाही सो रहा है।” एक सिपाही ने कहा।

“”या यह कि, वह मर गया तो क्या, हम जिंदा रहें।” दूसरे ने बात आगे बढ़ाई।

“”खून और बारूद से वह कभी नहीं डरा।” तीसरे ने कहा, “”जरा यह भी देखो, इसने हजारों को मौत के घाट उतारा।” कुछ देर को सब चुप हो गये।

“”बाबा, आपको कौन-सा वाक्य पसंद आया?” उसने उत्तर नहीं दिया। सिर्फ उसकी ओर देखता रहा एकदम खाली निगाहों से। और तब वह कोई भी आवाज नहीं सुन रहा था, कोई परछाई नहीं देख रहा था। उसने सिपाहियों को दूर जंगल की ओर जाते हुए देखा। कुछ देर वह रुका और फिर खुद ब खुद उनके पीछे चल दिया।

वे जब अपना काम खत्म कर चुके और लाश पर मिट्टी डाल दी गई, तब उस वृद्घ को वहीं छोड़कर सभी एक-एक कर चले गये। वृद्घ कब्र में पड़े उस आदमी को नहीं जानता था, जिसे उसने स्टेचर पर लेटे हुए देखा था। वह सिर्फ उस लड़के को जानता था, जो बाग में भागता-डोलता था। अपनी छड़ी उस खुरदरे पत्थर की सतह पर फिराते हुए वह बुदबुदाया, “”आज कहां है वह, नीली तितलियों का नन्हा शिकारी?”

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