परिश्रम

praying-to-hanumanjiकहा गया है कि ईश्र्वर भी उसी की सहायता करता है, जो खुद अपनी सहायता करता है। यानी अपने कार्यों को पूरा करने के लिए परिश्रम करता है। यदि हम अपने हर कार्य के लिए ईश्र्वर के करने का इंतजार करें, तो ईश्र्वर शायद ही हमारी मदद करेगा।

एक ग्रामीण हनुमानजी का भक्त था। एक बार वह बैलगाड़ी में कहीं जा रहा था कि रास्ते में एक नाला आया और उसमें उसके पहिए धंस गए। ग्रामीण बैलगाड़ी से उतरा और पास की भूमि पर बैठ कर हनुमानजी को याद करने लगा। उसकी श्रद्घा सच्ची थी।

आखिरकार उसकी प्रार्थना सुनकर हनुमानजी प्रकट हो गए। हनुमानजी ने उससे पूछा कि क्यों मुझे इतना याद कर रहे हो? ग्रामीण ने कहा- “भगवान्! मेरी बैलगाड़ी नाले में फंस गई है। आप उसे निकाल दीजिए।’ हनुमानजी ने कहा- “अरे भले आदमी! कोई भी देवता क्यों न हो, वह आलसी और निरुद्योगी की सहायता नहीं करता है। यदि इसी प्रकार से सहायता करने लग गए, तो फिर मनुष्य कोई काम ही नहीं करेगा। वह हमेशा देवताओं को पुकारता रहेगा।’ ग्रामीण ने कहा- “भगवान्! फिर मैं क्या करूं? मुझे नहीं लगता है कि मुझमें इतना बल है कि मैं बैलगाड़ी को बाहर निकाल सकूंगा।’

हनुमानजी ने कहा- “भले आदमी! दैवी सहायता के लिए श्रद्घा के साथ श्रम भी चाहिए होता है। तू बैलों को ललकार और कीचड़ में उतरकर पूरी शक्ति से पहियों को ठेल। मेरा बल तेरे में प्रवेश करके तेरी सहायता करेगा।’ उस ग्रामीण ने ऐसा ही किया और उसकी बैलगाड़ी नाले में से बाहर निकल गई। अब वह समझ गया कि यदि भगवान को याद करके वह पूरी तरह से श्रम करेगा, तो उसके हर कार्य सफल हो जाएंगे। परमात्मा का स्मरण आत्मविश्र्वास और शारीरिक ऊर्जा के रूप में सहयोग करता है।

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