बाल कथा

मिस्टर नाथ के पुत्र श्याम जी की उम्र इस समय लगभग चौदह वर्ष है। श्याम जी इस समय कक्षा दस में पढ़ते हैं। श्याम जी के पिताजी एक सरकारी ऑफिसर हैं और माताजी एक गृहिणी। इसके अतिरिक्त श्याम जी की एक बहन है दीपा। वह अभी छोटी है फिर भी तेज बुद्घि की लगती है। अपने घर से लेकर स्कूल तक सभी उसका गुणगान करते हुए नहीं थकते, क्योंकि वह समय की बड़ी ही पाबन्द है और दूसरे हैं श्याम जी, जिनके बारे में किसी से पूछने पर भी कोई उत्तर नहीं देता।

दीपा और श्याम जी एक साथ स्कूल जाते हैं। दीपा अपना सारा काम स्वयं करती है और श्याम जी अपनी मम्मी से सारा काम करवाते हैं। एक दिन तो श्याम जी के आलस्य ने हद कर दी। सुबह दस बजे का स्कूल था और श्याम जी पौने दस बजे सोकर उठे। दीपा तैयार होकर स्कूल चली गई थी और उनके पापा भी अपने ऑफिस। मम्मी रसोई में खाना बना रही थीं। श्याम ने ज्यों ही घड़ी देखी तो सिर पर अपना हाथ रखकर कहा, “”अरे बाप रे! आज तो हुई पिटाई।” किसी तरह से जल्दी से तैयार होकर वह स्कूल पहुँचे। तब तक दस बजकर पन्द्रह मिनट हो चुके थे। सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षा में थे। स्कूल गेट पर प्रधानाचार्य खड़े थे। श्याम जी को ज्यों ही गेट के अन्दर आते हुए देखा, तो उन्हें देर से आने की स़जा सुनाई गई, “”छुट्टी तक मुर्गा बने रहो।” बेचारे श्याम जी को काटो तो खून नहीं, स़जा तो मिली ही, साथ ही शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। आखिरकार छुट्टी हुई। पर यह क्या? दूसरे ही दिन से श्याम जी ठीक ढंग से काम करने लगे। एक ही दिन की स़जा में ही वह सचमुच बदल गए। अब श्याम जी से सभी प्रसन्न हैं और दीपा भैया को अपना आदर्श मानती है। टीचर अब दोनों को बराबर सम्मान और स्नेह देते हैं।

– डॉ. दुर्गाप्रसाद शुक्ल “आ़जाद’

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