बूमरेंग

भगवान विष्णु के सुदर्शन चा की यह विशेषता थी कि उनकी अंगुली से निकल कर अपने शिकार का काम तमाम कर वह वापस अपने स्थान पर आ जाता था। सुदर्शन चा तो नहीं, लेकिन कुछ- कुछ उसी की तर्ज पर अपना काम करके वापस अपने स्थान पर लौट आने वाला एक हथियार है, जिसे कहते हैं- बूमरेंग। दोस्तों, ऑस्टेलिया के आदिवासी भी एक ऐसे हथियार का प्रयोग करते हैं जो वार कर पुनः अपने स्वामी के हाथों में लौट आता है।

यह हथियार है “बूमरेंग’। जो अंग्रेजी के “वी’ अक्षर के आकार का होता है। लकड़ी का बना यह ऐसा हथियार है, जिससे लगभग 70 फीट तक की दूरी से शिकार पर निशाना लगाया जा सकता है। इस हथियार को विज्ञान के नए हथियारों ने कुछ वर्षों के लिए प्रचलन से बाहर कर दिया था। कुछ समय पहले तक बूमरेंग केवल ऑस्टेलिया के अजायबघरों में प्रदर्शित होते थे, किन्तु बूमरेंग ने एक बार फिर अपनी एक अलग पहचान बना ली है।

अब बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपने हाथ में तरह-तरह के बूमरेंग रखते हैं। सिर्फ ऑस्टेलिया ही नहीं ाांस, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, कनाडा, नार्वे, स्वीडन आदि देशों में बूमरेंग एक अनोखे खेल का दर्जा प्राप्त कर चुका है। बूमरेंग खेल को टीम बनाकर अंतर्राष्टीय स्तर पर खेला जाने लगा है। यही नहीं लगभग पांच देशों में बूमरेंग बनाने व फेंकने की कला को कई पाठ्य पुस्तकों में सम्मिलित किया गया है।

बूमरेंग फेंकने की स्पर्द्घा में भाग लेने वाले खिलाड़ी को पांच से सात मीटर के व्यास के घेरे में खड़े होकर बूमरेंग फेंकना पड़ता है। एक अंतर्राष्टीय खिलाड़ी ब्रायन ने बूमरेंग को तीन मिनट की अवधि में 129 बार 60 फीट दूर फेंका था, जो हर बार लौटकर उसके हाथों में ही आया। ब्रायन ने भगवान विष्णु के सुदर्शन चा जैसा गोल चानुमा बूमरेंग बनाया है तथा बूमरेंग कला के कई प्रशिक्षण केन्द्र खोले हैं। न्यूयॉर्क के “बर्नबायरूहे’ द्वारा बूमरेंग फेंकने की कुछ अलग ही कला है। वह अपने सिर पर सेब रखकर बूमरेंग को इस प्रकार फेंकते हैं कि वह वापस आकर इस सेब को दो भागों में बांट देता है।

You must be logged in to post a comment Login