मनी है तो हनी है

कलाकार- गोविंदा, हंसिका मोटवानी, उपेन पटेल, आफताब शिवदासानी, सेलिना जेटली, किम शर्मा

निर्देशक- गणेश आचार्य

नृत्य-निर्देशक गणेश आचार्य ने अपनी पहली निर्देशित फिल्म “स्वामी’ से दर्शकों में काफी अपेक्षाएँ जगाई थीं। उनकी दूसरी फिल्म “मनी है तो हनी है’ इन आशा-अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर सकी। इसका प्रमुख कारण है कमजोर कहानी।

वैसे गोविंदा जाने-माने हास्य कलाकार हैं और कितनी ही फिल्मों को उन्होंने स्वयं के बल पर यशस्वी बनाया है। क्या वे इस बार भी फिल्म को अपने बलबूते पर खड़ा कर सकते हैं? निर्देशक गणेश आचार्य को शायद इसमें कुछ संदेह था, तभी तो उन्होंने इस फिल्म में गोविंदा के साथ अन्य पांच कलाकारों को भी रखा है।

गोविंदा को बिना मेहनत के पैसा कमाने की आस है, उपेन पटेल को मॉडल बनना है, तो हंसिका मोटवानी को टी.वी. या फिल्म स्टार, आफताब को अपना विज्ञापन कार्यालय स्थापित करना है और सेलिना जेटली को बूटिक। इनके अलावा है व्यापारी मनोज बाजपेई, जो हरदम घाटे में रहता है। इन सारे पात्रों का दर्शकों से परिचय कराने में काफी समय बीत जाता है। इसके बाद फिल्म की कहानी शुरू होती है।

उद्योगपति प्रेम चोपड़ा इन सभी को बुलाता है। यह कहते हुए कि उसके हजार करोड़ के उद्योग का उन्हें वारिस बनाया गया है। हक के साथ एक-एक करके सभी लोग वहॉं पहुँचते हैं। अन्य लोगों को भी वारिस बनाये जाने की बात से वे कुछ ठंडे पड़ जाते हैं। परंतु उन पर बिजली तब गिरती है, जब उन्हें कहा जाता है कि उद्योग को बचाने के लिए उन्हें करोड़ों रुपये लगाने पड़ेंगे। और जब तक ये पैसे नहीं जुटाये जाते, तब तक उन्हें नजऱकैद में रखा जा रहा है। इस पेचिदा स्थिति का सामना वे लोग कैसे करते हैं, यह बताते हुए फिल्म में हंसी उपजाने का प्रयत्न किया गया है, परंतु हमेशा की भांति गोविंदा के संभाषण चटपटे नहीं बन पाये हैं। मनोज बाजपेई का हर बार नुकसान होना मजेदार बना है। एकता कपूर की नकल वाला दृश्य भी अच्छा है। बाकी कलाकारों का योगदान औसत है। ईशा देओल पर चित्रित किया हुआ “ता ना ता ना’ गीत पसंद आ सकता है। कमजोर संकलन होने के कारण फिल्म की लम्बाई अखरती है। कहानी की नीरसता फिल्म को भी नीरस बनाती है। अकेले गोविंदा भी करें तो क्या करें।

You must be logged in to post a comment Login