लालच बुरी बला

बहुत समय पहले की बात है। एक गॉंव में किशन नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह हर रोज पास के जंगल से लकड़ियॉं काट कर लाता। फिर वह उन लकड़ियों को बेचने के लिए पास के नगर में जाता। गॉंव में और लकड़हारे भी थे। इसलिए उसकी सभी लकड़ियॉं नहीं बिक पाती थीं। लकड़ियों का मोल भी पूरा नहीं मिलता था। इसलिए परिवार में घोर गरीबी थी। कई बार तो भरपेट भोजन भी नहीं मिलता था।

एक दिन एक फकीर किशन के द्वार पर भीख मॉंगने आया। किशन बोला, “”बाबा, मैं तुम्हें क्या दूँ, मेरा तो अपना ही पेट नहीं भर पाता। मेरे पास तो चूल्हे की राख के सिवा कुछ नहीं है।”

फकीर बड़ा दयालु था। उसने किशन का सारा दुःख-दर्द सुना। फिर उसने एक बड़ा-सा बोरा उसे देते हुए कहा, “”यह जादू का बोरा है। बाजार में बेचने के बाद तुम्हारे पास जो लकड़ियॉं बच जाएँ, उन्हें इस बोरे में डाल देना। यह बोरा तुम्हें उन लकड़ियों के सही मोल से दुगुने पैसे देगा। लेकिन दो बातों का ध्यान रखना – बोरे में लकड़ियॉं दिन में एक बार ही डालना, बार-बार नहीं और ध्यान रखना कि बोरा थोड़ा-सा भी फटना नहीं चाहिए। जिस दिन बोरा फट जाएगा, उसी दिन तुम्हारा सब सामान व धन-दौलत राख में बदल जायेगा।”

इतना कहकर फकीर अपनी राह चला गया। किशन जादू का बोरा पाकर बहुत खुश था। अगले दिन वह जंगल से लकड़ियॉं काट कर सीधा नगर में बेचने चला गया। जो दो-चार लकड़ियॉं बचीं, वे उसने फकीर द्वारा दिये गए जादू के बोरे में डाल दीं। कुछ देर बाद ही बोरे में लकड़ियों की जगह पैसे बन गए। किशन ने देखा, पैसे वास्तव में ही उन लकड़ियों के मोल से दुगुने थे। पैसे पाकर वह बहुत खुश हुआ। ़अब किशन रोज ऐसा ही करता। वह जितनी लकड़ियॉं काटता, उसे सबका मोल मिल जाता, वह भी कुछ ज्यादा ही। एक दिन लकड़ियॉं काटने के बाद बरसात शुरू हो गई। वह लकड़ियॉं बेचने नगर में नहीं जा सका। इसलिए उसने सारी लकड़ियॉं जादू के बोरे में डाल दीं। थोड़ी ही देर बाद बोरे में बहुत सारे पैसे देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। इतने पैसे तो उसे कभी भी नहीं मिले थे। उस दिन पूरे परिवार ने डटकर हलवा-पूड़ी की दावत उड़ाई।

धीरा-धीरे किशन लालची होता गया। अधिक पैसों के लालच में उसने नगर में लकड़ियॉं बेचने पर ज्यादा ध्यान देना छोड़ दिया। उसका प्रयास रहता कि उसकी लकड़ियॉं कम ही बिकें ताकि वह उनके बदले जादू के बोरे से दुगुना मोल प्राप्त कर सके। इस तरह वह आलसी व कामचोर होता गया। वह नगर में लकड़ियॉं लेकर जाता जरूर, लेकिन थोड़ी देर बाद ही उन्हें बिना बेचे घर लौट आता। फिर सारी लकड़ियॉं जादू के बोरे में डाल कर उनका दुगुना मोल प्राप्त कर लेता। ऐसा करने से उसके पास पैसा जमा होने लगा। जब उसके पास बहुत-सा पैसा हो गया तो उसने एक सुंदर मकान बना लिया। घर में सुख-सुविधाएँ हो गईं। घर आकर वह ़जरा भी काम नहीं करता। सारा दिन चारपाई पर लेटा रहता।

घर में आराम मिलने लगा तो किशन ने लकड़ी बेचने नगर में जाना भी बंद कर दिया। वह जंगल से लकड़ियॉं काटकर उन्हें घर ले आता और फिर जादू के बोरे में डाल देता। ऐसे में उसे लकड़ियों के दुगुने दाम मिल जाते। बैठे-बिठाए लकड़ियों के दुगुने दाम मिलने से वह और भी आलसी हो गया। मेहनत करने को उसका मन नहीं करता था। वह देर से बिस्तर से उठता और मन मार कर दोपहर बाद जंगल में जाता। आलस्य के कारण वह अधिक लकड़ियॉं भी नहीं काट पाता।

तब किशन को एक नई तरकीब सूझी कि क्यों न किन्हीं दूसरे लकड़हारों से लकड़ियॉं खरीद कर बोरे में डालकर खूब पैसे कमाये जाएँ। इस तरह करने से उसे लकड़ियॉं काटने जंगल में भी नहीं जाना पड़ेगा। उसने दो लकड़हारों से इस बारे में बात की। उन्हें भला इसमें क्या एतराज होता। उन्हें तो लकड़ी बेचने कहीं और नहीं जाना पड़ता। एक साथ दो लकड़हारों की लकड़ियॉं बोरे में डालने से किशन को खूब कमाई होने लगी। किशन का लालच बढ़ता गया। वह लकड़हारों को अधिक लकड़ियॉं लाने को कहता। घर में धन का ढेर लगा देख वह फूला न समाता। उसे अब जरा-सा भी परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं रह गई थी। उसने लकड़हारों से लकड़ियॉं खरीदने व उन्हें बोरे में डालने के लिए भी एक लड़के को नौकर रख लिया था। स्वयं वह सारा दिन चारपाई पर लेटा रहता।

एक दिन लकड़हारे आम दिनों से कुछ अधिक लकड़ियॉं काट कर ले आए। वास्तव में अगले दिन उन्हें मेला देखने जाना था। किशन अधिक लकड़ियॉं देखकर बहुत खुश हुआ। उसने नौकर लड़के से सारी लकड़ियॉं जादू के बोरे में डालने को कहा। लड़के ने लकड़ियों से बोरा ऊपर तक भर दिया। फिर भी कुछ लकड़ियॉं बच गईं। लड़के ने फिर प्रयास किया और कुछ लकड़ियॉं और बोरे में ठूंस दीं। एक लकड़ी फिर भी बची रह गई थी। उस लकड़ी के लिए बोरे में बिल्कुल भी जगह नहीं थी। जब नौकर उस लकड़ी को बोरे में डालने में असफल रहा तो किशन को बहुत ाोध आया। वह स्वयं चारपाई से उठा और उस लकड़ी को पूरा जोर लगाकर बोरे में ठूंसने लगा। जब वह इस काम में सफल नहीं हुआ तो उसने एक हथौड़ा लिया और लकड़ी बोरे के ऊपर रख एक जोरदार प्रहार किया। हथौड़े की चोट से वह लकड़ी बोरे में धंसी तो जरूर, पर बोरा फट गया। बस फिर क्या था, किशन का सारा घर राख में बदल गया। तब किशन को फकीर की कही बात याद आई कि अगर बोरा फट गया तो सब कुछ राख हो जायेगा। अब वह रो रहा था। उसके अंधे लालच और आलस्य के कारण सब कुछ चला गया था।

– श्याम सुन्दर अग्रवाल

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