शिष्टाचार की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद रेलगाड़ी के जिस डिब्बे में यात्रा कर रहे थे, उसी डिब्बे में अंग्रेज महिलाएँ भी बैठी हुई थीं और उनके साथ उनके छोटे बच्चे भी थे। उन्हीं बालकों में से एक बच्चा रो रहा था और उसकी माता के हर संभव प्रयास के बाद भी वह चुप नहीं हो रहा था। सामने की बर्थ पर स्वामी विवेकानंद शांतचित्त बैठे हुए चिंतन-मनन कर रहे थे। अंततः औपचारिकतावश स्वामी जी ने उस रोते हुए बालक की माता से अंग्रेजी में पूछा, “”आपका बच्चा निरंतर रोये जा रहा है और आपके निरंतर प्रयास के बाद भी वह चुप नहीं हो रहा है, क्या कारण है? उसे क्या तकलीफ है? कृपया आप निःसंकोच होकर बताये, शायद मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूं।” इसके उत्तर में उस बच्चे की मां ने कहा, “”इसे किसी प्रकार की शारीरिक व्याधि नहीं है। इसे भूख लगी है।”

कुछ क्षण बाद एक बड़े स्टेशन पर गाड़ी कुछ मिनटों के लिये रुकी। स्वामी विवेकानंद तुरंत कम्पार्टमेंट से बाहर आये और चारों ओर देखा। एक स्थान पर उन्हें फलों का स्टॉल दिखाई दिया। स्वामी जी तेज कदमों से वहॉं पहुँचे और कुछ संतरे खरीद कर कागज के लिफाफे में डलवा कर ले आये और डिब्बे में चढ़कर अपने स्थान पर बैठ गये। गाड़ी चल पड़ी। स्वामी जी ने बच्चे की मां से अनुमति लेकर लाये हुए संतरे बच्चे को देते हुए स्नेह भरे शब्दों में कहा, “”लो मुन्ना, इन्हें खाकर क्षुधा शांत करो।” बच्चे की माता ने स्वामी जी से संतरों का मूल्य लेने को कहा। स्वामी जी ने कहा, “”देवी क्षमा करें, बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं। अतः इसका कोई मूल्य नहीं लिया जायेगा।” भारतीय संस्कृति में बच्चों के भरण-पोषण का मूल्यांकन करने का निषेध है। वह अंग्रेज महिला भारतीय संस्कृति में बालक के भरण-पोषण की व्याख्या सुनकर भारतीय सभ्यता व संस्कृति के प्रति हृदय से नतमस्तक हो गयी। बच्चे को संतरे देकर स्वामी विवेकानंद पुनः अपने स्थान पर आकर बैठ गये और ध्यान मग्न हो गये।

बच्चा काफी भूखा था, उसने तुरंत संतरे को छील कर खाना शुरू कर दिया। इस पर बच्चे की मां ने उसे एक हल्की-सी चपत लगाकर डांटा। सामने की बर्थ पर अविचल ध्यान की मुद्रा में बैठे स्वामी विवेकानंद की बालक के रुदन से तन्द्रा भंग हुई। उन्होंने महिला से पूछा, “”देवी, बच्चा भूखा था और संतरा खाकर अपनी क्षुधा शांत कर रहा था फिर आपने इसे क्यों मारा?” इसके उत्तर में बच्चे की मां ने कहा, “”आप ठीक कहते हैं स्वामी जी, वह भूख से बेहाल था और संतरा खाकर अपनी क्षुधा शांत कर रहा था। किंतु संतरा खाने से पूर्व इसे आपको धन्यवाद देना चाहिए था। शिष्टाचार का पालन नितांत आवश्यक है, जिसका बीजारोपण बालपन से ही शुरू कर देना चाहिए। यह नितांत आवश्यक एवं सर्वोपरि तथा अच्छे संस्कारों का एक अंग है।” अंग्रेज महिला का तार्किक उत्तर सुनकर स्वामी विवेकानंद अत्यंत प्रसन्न हुए।

– प्रस्तुत : देवब्रत वशिष्ठ

 

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