श्रम का मधुरस

छोटे-छोटे पंखों वाली,

मधु की मक्खी बड़ी निराली।

फूल-फूल मंडराती है,

रस चूस कर लाती है।

बूंद-बूंद का करती संचय,

उसे नहीं किसी का भी भय।

मेहनत करती जाती है,

रस से शहद बनाती है।

मधुमक्खी से जीना सीखें,

श्रम का मधुरस पीना सीखें।

 

– रवीन्द्र कुमार ‘रवि’

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