सूरज रोटा

होली के बाद पहला रविवार आता है उस दिन सूरज रोटा होता है, लडकी की शादी के बाद या पहले उसको व्रत करवाकर उद्यापन करवाते हैं, इसमें सूरज भगवान की पूजा होती है।

उद्यापन में आठ लडकियों को खाना खिलाते है, गेहुँ का रोटा या पुडी बनाते हैं एक धान खाते हैं, उद्यापन के बाद हम सूरज रोटे का व्रत नहीं करते हैं, जब तक सूरज रोटे का उद्यापन नहीं हो जाता गणगौर का उद्यापन नहीं हो सकता है यह उद्यापन पीहर का होता है, साखिये से साख भरवाते हैं। कान पकड कर पूछते है साख भरी वरु देते हैं खाना खिलाते हैं।

सूरज रोटे की कहानी :-

दो माँ बेटी थी, दोनुं जण्या सूरज भगवान को व्रत करती, एक दिन माँ बोली कि में बारे जांउ तुं दो रोटा पो लिये बेटी दो रोटा पो लिया, एक जोगी भिक्षा मांग न आयो बा भिक्षा देवण लागी तो ली कोनी के मे तो रोटो लेवुं, बिरो रोटो सिक्यो कोनी, सो बा माँ के रोटे में से कोर तोड के दे दी माँ आई रोटे की कोर टुटयोडी देकर केवण लागी घी रोटे घी रोटे री कोर ला म्हारे सागी रोटे री कोर केवती-केवती गांव में फिरण लागगी बेटी डर के मारे पीपल के झाड पर चढर बेठगी चार-पाँच दिन हुं, गया सुरज भगवान ने दया आयी सुरज भगवान पाणी रो लोटो चुरमेरी बाटकी उण ने भेज दी, एक दिन राजा रो कंवर शिकार करण ने आयो और पीपल री ठण्डी छाया है, कोई ठण्डो पाणी पिवण ने देवे तो चोखो हुवे जणा बा छोरी उपरसू पाणी नाख्यो जणा पाछो राजा रो कंवर बोल्यो म्हने तो घणी भूख लागी है कोई खावण ने दे देवे तो चोखो हुवे, जणा बा छोरी उपरस्युं लाडु नाख्यो। राजा रे कंवर री भूख मिट गई कंवर खुद चढकर पते पते में देखण लाग्यो तो बिने दिखी बो बोल्यो कि तु कुण है भूत है कि प्रेत है, देवता है कि मानव है, जणा छोरी बोली म्हे मानव हूँ राजा रो कवंर छोरी ने पूछण लाग्यो कि तुं म्हारे सागे ब्याव करे कांई छोरी बोली राजाजी थे नगरी रा राजा म्हे एक अनाथ छोरी म्हारो तो कोई कोनी राजाजी मान्यो कोनी पडितान बुलाकर पिपल रे पेड रे नीचे फेरा फिरा कर ब्याव करके घरां गयो सुख से रेवण लागगा एक दिन बिकी माँ घी रोटी घी रोटी री कोर ला म्हारे सागी रोटे री कोर, करती करती जावे ही बेटी रुपर स्यूं देखली सिपाइया ने भेजर माँ न पकडकर एक कमरे मे बदं कर दी एक दिन राजाजी सगला कमरा री चाबी मांगी, या छ कमरा री चाबी तो दे दी सातवा कमरा री चाबी दी कोनी राजाजी हट करके सातवा कमरा री चाबी दी कोनी
राजाजी हट करके सातवा कमरा री चोबी ले ली कमरो खोल कर देखे तो आगे सोना री शिला पडी है राजाजी राणी ने पुछयो राणीजी ओ कांई राणी बोली म्हारे दुबला पोहर री भेंट है राजाजी बोल्या मने थारो पीयर देखणो है। राणी बोली राजाजी म्हारे कठे पीयर हे थे तो म्हाने पीपल के झाड के नीचे सुं लाया राजा जी हट करके बैठ गया जणा राणी सुरज भगवान सुं विनंती करी ओर सवा दिन को पीयर माग्यों। सूरज भगवान सपना में आपने राणी ने सवा पोर को पीयर बासो पीपल के झाड के नीचे दिया। राजा राणी, राणी रे पीयर गया सगला घणो ही लाड कोड करिया राजाजी ने धणो ही आनन्द हुयो राणी तो घरा चालण रो केवण लागी जणा राजा कियो कि इतो चोखो सांसरो है म्हे तो अठे रस्युं राणी हट करण लागगी, राजा राणी सीख भेर निकल्या, राजाजी आपरी पगारी मोचडी और घोडी रो ताजनो बठे ही भूल गया थोडा आगे गया जद ब्याने याद आयी, राजाजी पाछा फिरया जार देखे तो झाड रे नीचे मोचडी ओर घोडी रो ताजनो पडयो हो बाकी कुछ भी कोनी जणे राजाजी कियो राणी ओ कोई, जणा राणीजी बोली म्हारे पीर कोनी थो, सो में सुरज भगवान कने सवा पोर को पीर वासो मांग्यो म्हारी माँ रोटो खांडो हुयो जिके सुं गेली हुयगी वा नगरी में आयी ही, जणा म्हे उणाने कमरे में बंद कर दी उरी सोनारी शिला हुयगी, या सुण के राजा नगरी मेें ढिढोरो पिटवा दिया कि सगला कोई सुरज रोटे रो व्रत करियो, हे सुरज भगवान जिसो बिने पीर बासो दिया बिसो सबने दिया, कहत सुणत हुंकारा भरत आपणे सारे परिवार ने दिया म्हाने भी दिया। (हर कहानी केबाद विनायक जी कहानी कहते हैं।)

विनायक जी की कहानी

विष्णु भगवान लक्ष्मीजी ने ब्याहण जावण लाग्या, जदसगला देवता न बरात मेले जावण ने बुलाया जावण लाग्या जणा सब कोई देवता बोल्या कि गणेशजी न कोनी लेजावां क्युंकि सवा मण मूंग, सवा मण चावल, घी को तो करे कलेवो-जीमण फेर बुलावो दुन्द दुन्दालो, सुन्ड सुन्डालो उखला सा पांव-छाजला सा कान मस्तक मोटो, लाजे भीम कुमारी लाजे कुनणा पुर री नारी, याने सागे ले जाके काई करांगा याने तो घर की रखवाली तांई छोड जावां, पिछें सारा बरात में चला गया। बठीने नारद जी गणेश जीन न आकर लगा दिया कि थारो तो भोत अपमान कर दियो, बारात बुरी लागती जिके सु थाने अठेही छोडगा जद गणेश जी चुहा न आज्ञा देई, कि सारीधरती न थोथी कर देवो थोथी हो न स बठी न भगवान क रथ का पहिया धरती में घंसगा, सब कोई निकालने वास्ते लाग्या, पर पहिया निकल्या कोनी, जद किसने खाती न बुलाया बो आकर पहियो क हाथ लगा करबोल्यो जयगणेश जी की और रथ निकलगो, सब कोई पुछ्या कि गणेशजी न क्यूं सुमरया, खाती बोल्यो- गणेशजी न सुमेर बिना कुछ भी काम सिद्ध कोनी दूबे, सब कोई सोचा कि म्हे तो सदेही गणेशजी न छोड आया, पिछे सब कोई उंना न बुलाकर लाया,पहले गणेशजी न रिद्धि-सिद्धि परणाई पिछे विष्णु भगवान न लक्ष्मीजी परणाई है बिन्दायक महाराज जिसो भगवान को कारज सिद्ध करियो बिसो सबको करियो, कहतां सुणता हुंकारा भरता आपणे सारे परिवार को करियो म्हारो भी करियो।
(चैत्र वदी चोथ को आस चोथ आती है वो हम नहीं करते है)

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