असंभव नहीं है भ्रष्टाचार उन्मूलन

भ्रष्टाचार आज हमारी जीवनशैली बन गया है। इसे दिन-प्रतिदिन के जीवन का सामान्य अंग मान लिया गया है। अब तो बस कहने भर के लिए भ्रष्टाचार की निन्दा-भर्त्सना की जाती है। कोई सोचना भी नहीं चाहता कि इससे छुटकारा भी पाया जा सकता है। कोई असरदार प्रयास होता भी कहीं नजर नहीं आता। गत दशकों में काण्डों, घपलों, घोटालों की ऐसी बाढ़-सी आई है, ऐसा अटूट ाम सामने आया है कि रोजमर्रा के जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार गौण हो कर रह गया है। करोड़ों-अरबों के घोटालों के सामने भला सैकड़ों-हजारों की बिसात ही क्या है। अब तो आम आदमी की मानसिकता ही यह बनती जा रही है कि बिना घूस दिए कहीं कोई काम नहीं होता। कुछ लोग तो यह कहते हैं कि पैसा देकर कम से कम काम तो हो जाता है, चक्कर तो नहीं काटने पड़ते। जूतों के तल्ले तो नहीं घिसाने पड़ते, गोया बुराई में भी अच्छाई तलाश ली गई है। भ्रष्टाचार को भी महिमामंडित कर दिया गया है।

कुछ सरकारी विभाग तो हमेशा से घूसखोरी व भ्रष्टाचार के लिए बदनाम रहे हैं मगर अब तो हम्माम में सभी नंगे हो गए हैं। अन्य विभाग भी अब इस दौड़ में सबसे आगे निकलने हेतु पूरा जोर लगा रहे हैं। छोटे-छोटे सरकारी मुलाजिमों के यहां छापा पड़ने पर जब लाखों की सम्पत्ति उजागर होती है तो भ्रष्टाचार की व्यापकता एवं परिणाम की एक झलक मिल जाती है। यह अनुमान भी आसानी से लगाया जा सकता है कि इस रोग की जड़ें कितनी गहरी फैली हैं। वर्षों पहले तब के प्रधानमंत्री से जब देश में बढ़ते- फैलते भ्रष्टाचार की चर्चा की गई तो उन्होंने इसे गंभीरता से न लेते हुए कहा था कि पैसा एक जेब से दूसरी जेब में ही तो जा रहा है। देश के बाहर तो नहीं जा रहा। अब तो वह स्थिति भी नहीं रही। अब तो देश का अरबों-खरबों रुपया विदेशों के गुप्त खातों में धड़ल्ले से जमा कराया जा रहा है।

कहावत है कि “यथा राजा तथा प्रजा।’ नेता नामधारी आज के राजा-महाराजा भ्रष्टाचार को नित नए आयाम दे रहे हैं। राजनीति में घुसते ही कंगला बंगला बना लेता है, भिखारी के पास गाड़ी आ जाती है। टूटी चप्पल चटखाने वाला हवाई जहाजों में उड़ने लगता है। जन-साधारण से तो सदैव नेताओं के पदचिह्नों पर चलने का आठान किया जाता रहा है। अतः आम आदमी भी इसी को सही मान कर अपने स्तर पर घुस जाता है, इसी भेड़ियाधसान में।

भ्रष्टाचार के चलते अब कोई भी काम असंभव नहीं रह गया है। कोई कानूनी अड़चन, कोई व्यावहारिक कठिनाई, कोई सामाजिक वर्जना अब कोई मायने नहीं रखती। पैसा दो और कुछ भी करा लो। पैसे के आगे और तो और अब राष्टहित, देश की सुरक्षा तक गौण हो गई है। शत्रु देशों को गोपनीय सूचनाएं देशवासियों द्वारा बेचे जाने का ाम निरंतर जारी है। यह भी सामान्य मान्यता है कि घूस लेते पकड़े जाएँगे तो घूस देकर छूट भी जाएँगे। यूँ भी भ्रष्टाचारियों को स़जा होते कम ही देखने में आती है, तथाकथित नेताओं को तो सम्भवतः कभी भी नहीं।

गत वर्षों में जिस अनुपात में नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ, उसी अनुपात में देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ लोगों ने अच्छे-बुरे सबके लिए स्वयं को स्वच्छंद मान लिया। समाज का अंकुश ढीला होता गया। सामाजिक कार्यकर्ता कम होते गए। समाज सुधार के मुकाबले टुच्ची राजनीति का आकर्षण बढ़ता ही चला गया। सत्ताधारी नैतिकता से दूर होते गए। सत्ता प्राप्ति और सत्ता में बने रहना उनके लिए सर्वोपरि होता गया और इस हेतु वह कुछ भी करने के लिए तत्पर होते गए। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला, फलने-फूलने का अवसर मिला, महत्व प्राप्त हुआ। भ्रष्टाचार अब कोई ढकी-छुपी बात नहीं है। आज इसके चर्चे हर जुबान पर हैं। गली-मुहल्ले से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में इसकी गूंज-गुहार सुनाई देती है। कैसी विडंबना है कि हर कोई इसका रोना भी रोता है और इसको बढ़ावा भी देता है। उत्तर प्रदेश में आईएएस अधिकारियों की एसोसिएशन गत कई वर्षों से हर साल अपने सदस्यों में से 3 महाभ्रष्ट अधिकारियों का चयन गुप्त मतदान द्वारा करती आ रही है।

विश्र्व स्तर पर भ्रष्टाचार से आाांत देशों की श्रेणी में हमारे देश का नाम काफी ऊपर आता है। अब भ्रष्टाचार को नकारना या इसके अस्तित्व से इन्कार करना मात्र अपने आपको धोखा देना है। इसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार ने अब ऐसा विकराल रूप ले लिया है कि इस पर काबू पाना भी आसान नहीं रहा। कामचलाऊ उपाय तो किए जाते रहे हैं मगर वह सब अब प्रभावहीन हो गए हैं। अब केवल एक ही उपाय है-लोगों के अन्तःकरण को, उनके सद्विवेक को जगाने का। काम बहुत कठिन है किंतु असंभव नहीं। स्वतंत्रता संग्राम में, एक आवाज पर हमारे देशवासी तन-मन-धन न्योछावर करते रहे हैं। मान लिया कि वह बात पुरानी हो गई, बीच में पीढ़ियों का अन्तराल आ गया मगर 1962, 1965, 1971 के युद्घों तथा कुछ वर्षों पहले हुए कारगिल युद्घ में भी तो पूरा देश सारे आपसी भेदभाव भुला कर एकजुट होकर उठ खड़ा हुआ था, देश के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर होकर। वह भावना हमारे भीतर जीवित है, बस सोई पड़ी है। आवश्यकता है उसे झिंझोड़ कर जागृत कर देने की। इसी संदर्भ में दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु है – इस अभियान में महिलाओं का सिाय समर्थन और सहयोग जुटाना। देश की आधी आबादी महिलाओं की है। उन्हें साथ लिए बिना कोई भी अभियान सफल नहीं हो सकता। यह भी कोई ढकी-छुपी बात नहीं है कि कई लोगों की पत्नियॉं कपड़े, गहने की लालसा में, पड़ोसियों से स्त्री सुलभ प्रतिस्पर्धा में एक सीधे-सादे ईमानदार पति को भी कोंच-कोंच कर भ्रष्टाचार के रास्ते पर लगा देती हैं। गृहिणियॉं जब भ्रष्टाचार के विरुद्घ उठ खड़ी होंगी तो इसका उन्मूलन कठिन नहीं रहेगा। जरूरत आज की तड़क-भड़क और दिखावे की जिंदगी से हट कर अपनी जड़ों की ओर लौटने की भी है। इस खोखली आधुनिकता ने हमें कुछ नहीं दिया सिवाय नए-नए रोगों के।

 

– ओमप्रकाश बजाज

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