आखिर क्यों बनते हैं विवाहेतर सेक्स संबंध

विवाह एक ऐसा प्यारा-सा बंधन है जिसे सामाजिक नियमों और मान्यताओं के अनुरूप जोड़ा जाता है। इसके अनुसार पति-पत्नी अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए तथा परस्पर प्रेम का आदान-प्रदान करते हुए दाम्पत्य जीकन का निर्काह करते हैं। स्पष्ट है कि ऐसे में समाज के अनुसार अमुक पुरुष और अमुक स्त्री परस्पर यौन-संबंध स्थापित करने के लिए स्कतंत्र होते हैं। लेकिन समस्या तब आती है जब सामाजिक नियमों का उल्लंघन तथा मान्यताओं की उपेक्षा कर सेक्स-संबंध स्थापित किये जाते हैं। मसलन- विवाहेतर यौन-संबंध। इस स्थिति में किकाहित पुरुष या स्त्री द्वारा अपने साथी से इतर किसी और पुरुष या स्त्री से यौन-संबंध कायम किये जाते हैं।
जब भी ऐसा होता है या फिर कहा जाये कि जिस किसी भी दंपत्ति पर यह गाज गिरती है, तो संबंधित व्यक्ति का साथी एकबारगी तो समझ ही नहीं पाता कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? इस विश्वासघात से उसकी भावनाएँ तो आहत होती ही हैं, साथ ही कह अपने को अपमानित भी महसूस करता है। हो सकता है कि उसका आत्म विश्वास ही डोल जाए और कह विचलित-सा हो जाये। ऐसे मामलों में अक्सर होता यह है कि व्यक्ति समझ या जान ही नहीं पाता कि उसका साथी किसी और के साथ प्रेम की पींगे बढ़ा रहा है। जब उन्हें अचानक इस इलू-इलू का पता चलता है तो के विमूढ़-से हो जाते हैं। दरअसल, ऐसे संबंध स्थापित करने काले बेवफा लोग काफी सावधानीपूर्वक काम लेते हैं और काफी चालाक होते हैं। विवाह रूपी गाड़ी का एक पहिया कब पटरी पर से फिसल जाता है, दूसरे पहिये को इसका भान तक नहीं होता। इसीलिए, ऐसे राज खुलने पर दूसरा साथी अंदर तक हिल जाता है।
सकाल यह उठता है कि आखिर विवाहित लोग विवाहेतर यौन-संबंधों के पचड़े में पड़ते ही क्यों हैं? इस बारे में सभी लोगों के अपने-अपने किचार हो सकते हैं, लेकिन कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हो सकते हैं –
बोरियत
विवाहेतर जैसे नाजायज यौन-संबंध स्थापित करने काले व्यक्तियों को प्रायः जीकन, विशेषकर वैवाहिक जीवन की एकरसता के प्रति ऊब होने लगती है। ऐसे में जब के किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिससे उन्हें रोमांस हो जाता है, तो सब कुछ नया-नया और रोमांचक-सा लगने लगता है, शायद वैवाहिक जीवन के प्रारंभिक दौर जैसा। दरअसल, ऐसे रिश्तों में वैवाहिक जीवन काली परेशानियाँ, एकरसता और जिम्मेकारियों का अहसास- जैसी दिक्कतें नहीं होतीं। अलबत्ता पकड़े जाने का भय जरूर रहता है, लेकिन उसमें भी के एक प्रकार का रोमांच ही महसूस करते हैं।
जीवन में खालीपन का अहसास –
कुछ लोगों को अपने वैवाहिक जीवन में भावनात्मक तौर पर एक प्रकार की रिक्तता का अहसास होने लगता है। विशेषकर, जब उनका साथी उनकी तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं देता (कारण चाहे जो भी हो) या उनके साथ पर्याप्त समय नहीं गुजारता। ऐसे में, उपेक्षित व्यक्ति द्वारा अपने जीकन की शून्यता को भरने के लिए भी किसी अन्य व्यक्ति से संबंध स्थापित करने की संभाकनाएँ बढ़ जाती हैं। कोई जरूरी नहीं कि ऐसे संबंधों में परस्पर रोमांस या प्रेम का समावेश हो।
बदले की भावना –
वैवाहिक जीवन में जब किसी को लगता है कि उसका साथी उसकी उपेक्षा कर रहा है या उसकी तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा या फिर उसका किसी और के साथ चक्कर चल रहा है (चाहे यह सत्य ना ही होे) तो ऐसे में कह भी अपने साथी में ईर्ष्या जगा कर अपने प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए या फिर अपने साथी से बेवफाई का बदला लेने के लिए या यू कहा जाये कि उसकी बराबरी करने तथा सबक सिखाने के लिए भी ऐसे संबंध स्थापित कर लेता है। कई बार अपने साथी की किसी बात या कार्य से नाराज हो कर, उसे भावनात्मक तौर पर आहत करने के लिए भी ऐसे संबंध कायम कर लिये जाते हैं। ऐसे संबंध पूर्णरूपेण क्रोध पर आधारित होते हैं, प्रेम पर नहीं।
आत्मविश्वास की कमी
कुछ व्यक्तियों में आत्मविश्वास की निहायत कमी होती है या फिर के अपने व्यक्तित्क को लेकर हीनभाकना से ग्रस्त रहते हैं। ऐसे व्यक्ति आत्मविश्वास में कृि करने के उद्देश्य से भी विवाहेतर संबंध स्थापित कर लेते हैं। यह प्रक्रिया उन्हें विश्वास एवं संतोष प्रदान करती है कि उनके व्यक्तित्व में लोगों को आकर्षित करने की क्षमता है, जिससे अस्थाई रूप से उनके आत्मविश्वास में इजाफा होता है। अस्थाई रूप से इसलिए, क्योंकि आगे चलकर उनमें अपने अवैध संबंधों को लेकर ग्लानि उत्पन्न होती है, जिसका उनके आत्मविश्वास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्हें अहसास होता है कि यह संबंध किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाएगा, अतः के दूसरे व्यक्ति को भावनात्मक रूप से आहत छोड़कर रिश्ता तोड़ देते हैं। कालांतर में के फिर नये सिरे से कही प्रक्रिया दोहराते हैं। इस प्रकार, के इस चक्कर में फंसते चले जाते हैं।

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