आंवला नवमी

कार्तिक सुदी नवमी को आंवला नवमी होती है। आंवले की पूजा करना, आंवले का दान देना आवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना तथा आंवले की 108 परिक्रमा करनी चाहिए।

आँवला नवमी की कहानी

avala-navmi-pujaएक आँवलियो राजा थो, जिको रोजिना सोना का सवा मन आँवला दान कर क जीमतो। एक दिन ऊँका बेटा-बहु सोच्या कि अगर यो इतना आँवला रोजिना दान करेगो, तो सारे धन खतम हो जासी। बेटो, बाप कन गयो और बोल्यो कि थे अईयाँ तो सारो धन लुटा देवोगा, सो अब आँवला दान कोनी कर न सको। राजा-रानी दूख क मारे बावनी उजाड म जा कर बैठगा। ऊँना न बठ भूखा-प्यासा बैठ्या सात दिन होगा। राजा आँवला दान कर न सक्यो कोनी और दान करे बिना खायो कोनी। जद भगवान सोच्चो कि अगर अब म इनाको सत नहीं राखूंगा तो आपाँ न दुनिया म कोई मानसी कोनी।भगवान राजा न सपना म बौल्या कि तूँ उठ और देख, तेर पहले क जैयाँ ही राज-पाट हो रया ह, आँवला का गाछ उघ रया ह, उठ कर आँवला दान कर और जिम। राजा-रानी उठ कर दे खा, तो पहले सभी बेसी राज-पाट, सोना का आँवला हो रयाथा। वे लोग फेर रोजिना सवा मन आँवला दान कर न लाग्या। खूभ सुख से रेवण लाग्या। बठी न बेटा-बहुक अन्नदाता बैर पडगो। आस-पास का लोग बोल्या कि जंगल म एक आँवलियो राजा रे वेहे, थे वठ चल्या जावो, बो थारा दुख दूर करदेसी। ब लोग बठ पहूँचा, तो रानी बिनान उपर से देख लिया और आपका आदमियाँ न बोल्या कि इना न काम पर राख ल्यो, काम तो कमती करायो, मजूरी ज्यादा दियो। एक दिन रानी आपकी बहू न बुला कर बोली कि मेरो सिर नहलादे। बहू सिर नहला न लागी, तोबहु क आँख म आँसू रानी कीपाठ पर गिरगो। रानी पूछी कि तू रो न कैयाँ लागी, ह जिसी बात बता। बहु बोली कि मेरी सासु की पीठ प भी इसो ही मस थो,बा भी सवा मन आँवला रोजिना दान करती। म्हे बिना ने आँवला कोनी दान कर न दिया और घर स निाकल दिया। जद सासु बोलि कि म्हे ही तेरा सासु सुसरा हाँ, थेतो म्हा न निकाल दिया, लेकिन भगवान म्हारो सत राख्यो। हे भगवान, जिसो राजा-रानी को सत राख्यो जिसो सबको राखियो, कहताँ, सुनता, हुंकारा भरताँ को, आपना सारा परिवार को राखिये।

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