इंटरनेट शादियॉं तोड़ रही हैं मन और मानसिकता की हदें

internet-marriagesसदियों से भारतीयों का सबसे बड़ा पुरुषार्थ या दायित्व अपने बच्चों की शादियां करना रहा है। लोग अपने कॅरियर को लेकर कभी उतना परेशान नहीं होते, जितना अपने बच्चों की शादियों को लेकर चिंतित रहते हैं। शायद इसीलिए हिन्दुस्तानियों के बारे में कहा जाता रहा है कि वह अपने बच्चों की शादियों के लिए ही कमाते हैं और उसी के लिए जीते हैं।

लेकिन बहुत धीमी शुरूआत के बाद अब बड़ी तेजी से शादी-ब्याह की इस पारंपरिक अवधारणा में बदलाव हो रहा है। यह बदलाव निश्र्चित रूप से इंटरनेट के जरिए आ रहा है। 2007 में किए गए एक व्यापक अध्ययन सर्वेक्षण के बाद अमेरिका की इलिनोइस यूनिवर्सिटी की ब्रिगेट कोलाको कहती हैं, “”इंटरनेट भारत में क्रांतिकारी सामाजिक बदलाव का जरिया बन गया है।” जी, हां! इंटरनेट ने शादी-ब्याह के मामले में सिर्फ पारंपरिक मेल-मिलाप के तरीकों को ही नहीं बदला बल्कि इसने शादी की पारंपरिक मान्यताओं और अवधारणाओं में भी क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है। एक ऐसे देश में जहां विवाह से पहले किसी जमाने में लड़का-लड़की एक-दूसरे को देख तक नहीं सकते थे, उस देश में इंटरनेट ने न सिर्फ विवाह को मन मिलने का मेल बना दिया है, बल्कि इसने बेहिचक शादी के पहले लड़का-लड़की को अपनी तमाम भावनाओं और विचारों को साझा करने का भरपूर और बेझिझक मौका भी उपलब्ध कराया है।

इंटरनेट ने अपने ढंग से महिला सशक्तिकरण में जबरदस्त योगदान दिया है। यही वजह है कि इंटरनेट के जरिए होने वाली शादियों ने, शादियों को लेकर सदियों से चली आ रही मानसिकताओं को झिंझोड़कर रख दिया है। इंटरनेट ने वह कर दिखाया है, जिसे करने का दावा बड़े-बड़े समाज सुधारक भी नहीं कर सकते थे। मसलन-

 

  • इंटरनेट के जरिए होने वाली शादियों में 60 फीसदी से ज्यादा पुरुषों के लिए अपने साथी का सजातीय होना जरूरी नहीं रह गया।
  • 70 फीसदी से ज्यादा पुरुषों को शादी के बाद भी अपनी पत्नी को कामकाजी होने में कोई परेशानी नहीं दिखती।
  • 41 फीसदी से ज्यादा लड़कियां अंतर्जातीय शादियां करने को तैयार हैं।
  • इंटरनेट में किसी के भी लिए कम से कम एक दर्जन से ज्यादा मैच उपलब्ध मिलते हैं, जो सामान्य स्थितियों के अवसरों के मुकाबले 500 फीसदी से भी ज्यादा है।
  • इंटरनेट के जरिए होने वाली शादियों में 95 फीसदी मैच लड़के-लड़की खुद अपनी रजामंदी से तय करते हैं। यही कारण है कि 80 फीसदी से ज्यादा ऐसी शादियों में लड़का-लड़की दोनों को अपनी पसंद और इच्छा का मैच मिल जाता है।
  • इंटरनेट से होने वाली शादियां सही मायनों में अखिल भारतीय या ग्लोबल शादियां होती हैं। 70 फीसदी शादियां करने वाले लड़के-लड़की अलग-अलग शहरों, समुदायों के होते हैं।
  • इंटरनेट से होने वाली शादियां कई क्रांतिकारी पहल भी कर रही हैं। मसलन- यहां अपने लिए साथी तलाश रहे 20 फीसदी युवक-युवतियों को अपंग साथी भी स्वीकार हैं। यह सिर्फ आदर्श की बात नहीं है, बल्कि हाल के सालों में ऐसी कई सौ शादियां हुई हैं जिसमें लड़का या लड़की कोई एक किसी शारीरिक अपंगता का शिकार रहा है।

इंटरनेट भले ही अभी भारत की महानगरीय जीवन-शैली का ही हिस्सा बना हो, लेकिन इसका प्रभाव बहुत व्यापक है। उदाहरण के लिए भारत में इंटरनेट के उपभोक्ता 4.40 करोड़ के ऊपर पहुंच चुके हैं, जबकि इन उपभोक्ताओं में से महज 80 लाख के पास ही अपना इंटरनेट कनेक्शन और पर्सनल कंप्यूटर है। इसका मतलब यह है कि इंटरनेट क्रांति के दायरे में वो लोग भी आते हैं, जिनके पास फिल्हाल न तो अपना पर्सनल कंप्यूटर है और न ही नेट कनेक्शन। इंटरनेट महज तेजी से संपर्क स्थापित करने का माध्यम बनकर ही नहीं उभरा बल्कि इसने वाकई मूल्यों, परंपराओं और सरोकारों में भी आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है। शादी के मामले में तो यह कुछ ज्यादा ही उपयोगी बनकर उभरा है। यही कारण है कि देखते ही देखते इंटरनेट इधर से उधर खत पहुंचाने से कहीं ज्यादा बड़ा शादी के लिए मैच मिलाने का जरिया बन गया है।

ऑनलाइन विवाह कारोबार की रफ्तार ई-बिजनेस के किसी भी दूसरे क्षेत्र के मुकाबले तेज है। 2006 में जहां ऑनलाइन विवाह कारोबार महज 55 करोड़ रुपये के आसपास था, वह आज बढ़कर 250 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो गया है। जहां बाकी ई-कारोबार में सालाना वृद्घि दर महज 15 से 20 फीसदी है, वहीं ई-मेटीमोनियल कारोबार की सालाना वृद्घि दर 50 से 80 फीसदी है। यह हैरान कर देने वाला आंकड़ा है कि शहरी भारत के तकरीबन 1.5 करोड़ लोग आज विवाह के लिए ऑनलाइन सर्च करते हैं। देश में कई सौ मेटीमोनियल वेबसाइटें आस्तत्व ग्रहण कर चुकी हैं, जिसमें 100 साइटें ऐसी हैं, जहां 2,000 से लेकर 25,000 तक शादी के लिए साथी ढूंढ़ रहे लोगों ने अपने आपको रजिस्टर्ड करा रखा है। कई साइटों में तो हर दिन कई लाख लोग सर्च करते हैं। जीवन-साथी डॉट कॉम का दावा है कि उसे 1.2 करोड़ लोग खोलते हैं। प्रतिदिन 50 जोड़ियां मिलाने का दावा करने वाली शादी डॉट कॉम नामक पोर्टल 1997 में बोस्टन से एमबीए करके लौटे अनुपम मित्तल द्वारा खोला गया था, आज इसका दावा है कि वह देश की सबसे बड़ी वैवाहिक साइट है, जहां तकरीबन 2 करोड़ लोगों के बायोडाटा मौजूद हैं।

देश में जिस तेजी से इंटरनेट शादियां बढ़ रही हैं, उससे शादी की पारंपरिक व्यवस्था में बेहद क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। पहले जहां मां-बाप शादी के लिए दिन-रात चिंतित रहते थे और उनकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों की शादी करने में गुजर जाता था, फिर भी अधिकतर मामलों में लड़के और लड़की का मैच सही नहीं बैठता था। शक्ल-सूरत, पारिवारिक हैसियत और रूतबा भले ही मेल खाता हो, लेकिन अक्सर इन शादियों की सबसे बड़ी खामी यही होती थी कि लड़का और लड़की एक-दूसरे को विचारों और चाहतों के मामले में समान नहीं पाते थे, लेकिन इंटरनेट से होने वाली शादियों में बिल्कुल इसके उलट है। यहां पारंपरिक शादियों के मुकाबले कई मायनों में मेल बिल्कुल नहीं दिखता। मसलन- जाति, उम्र, कौमार्य का आग्रह, परिवार की आर्थिक हैसियत, रूतबा, रंग और खूबसूरती। इंटरनेट के जरिए होने वाली शादियों में ये तमाम चीजें भले मेल न खाती हों, लेकिन लड़के और लड़की के समान विचारों की मौजूदगी 90 फीसदी से ज्यादा शादियों के मामले में देखी गई है। यह नयी पीढ़ी का एक नये किस्म का क्रांतिकारी विद्रोह है, जिसमें पहले जैसे भावनात्मक सुरूर की गलती देखने को नहीं मिलती।

पहले मर्जी से शादी करने वाले ज्यादातर युवा ऐसे होते थे, जो मानसिक स्तर पर बहुत ज्यादा परिपक्व, कॅरियर के स्तर पर सफल और अपनी चाहतों व भावनाओं को लेकर इतने स्पष्ट नहीं होते थे, जितने कि आज के युवा हैं। पहले शादी एक सीमित दायरे का संबंध होती थी, लेकिन आज शादी सीमित दायरे या अपनी कर्मभूमि के साथी तक ही सीमित नहीं है बल्कि कानपुर की लड़कियां कराकास तक में और शिमला के लड़के सैनफ्रांसिस्को तक में अपने लिए मैच ढूंढ़ते हैं और पाने में सफल भी रहते हैं। इंटरनेट ने शादी के मायने बदल दिए हैं। अब शादी महज एक जीवन मूल्य तक ही सीमित नहीं रही बल्कि यह अपने अंदाज में जीने का ढंग भी बन गयी है। पिछले 10 सालों में भारत में लगभग 40 लाख शादियां इंटरनेट के जरिए हो चुकी हैं और अंदाजा लगाया जा रहा है कि अगले 10 सालों में होने वाली कुल शादियों की लगभग 60 फीसदी शादियॉं इंटरनेट के जरिए होंगी। गौरतलब है कि देश में हर साल लगभग डेढ़ करोड़ शादियां होती हैं। इंटरनेट ने शादी के उस बड़े दायित्व को अपने सिर पर ले लिया है, जो भारत में सदियों से लोगों के जीने का सबसे बड़ा आधार और दूसरे संदर्भों में जिंदगी का सबसे बड़ा बोझ भी रहा है।

लेकिन असली बात यह है कि इंटरनेट शादी के लिए व्यापक संपर्क का महज सुविधासूत्र भर नहीं है, अपितु यह सही मायनों में लड़के और लड़की को अपनी इच्छा और चाहत के मुताबिक जीवन-साथी चुनने का जो रचनात्मक आधार मुहैया कराता है, वह बेहद क्रांतिकारी है। इंटरनेट में लड़के-लड़कियां न सिर्फ पहली मुलाकात में ही अपनी तमाम चाहतों का बेझिझक जिा कर देते हैं बल्कि बड़ी निर्ममता से एक-दूसरे की उन चाहतों के प्रति धारणाओं को परखते हैं। यहां न तो संकोच का पर्दा है और न ही यह चिंता की बात कि कहीं बिगड़ न जाए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इंटरनेट ने एक ऐसी सुविधा दी है जिसके चलते आप जब चाहें अपनी पहचान स्पष्ट करें, जिससे चाहें उससे अपने बारे में सच बताएं और जिससे चाहें न बताएं। इंटरनेट की इतनी बड़ी दुनिया है कि यहां जरूरी नहीं है कि आप जिससे एक बार मिले हों, उससे दोबारा किसी मोड़ पर मुलाकात हो ही। इंटरनेट ने सिर्फ भौगोलिक दूरियां ही नहीं खत्म कीं, बल्कि समय और अंतरंग संपर्क के लिए भी व्यापक आधार मुहैया कराया है। आप जिस समय चाहें इंटरनेट के जरिए अपने भावी साथी से संपर्क साध सकते हैं और डेटिंग कर सकते हैं।

इंटरनेट ने पहली बार शादियों में मां-बाप की दादागिरी कम की है। अब शादी करने वाले लड़के-लड़कियां ही एक-दूसरे से सीधे-सीधे मुखातिब होते हैं। बीच के तमाम दलाल गायब हो चुके हैं। यही वजह है कि इंटरनेट शादियों के मामले में न सिर्फ चाहतों की मंजिल बन रहा है बल्कि शादी से संबंधित यह मन और मानसिकता की तमाम हदें भी तोड़ रहा है।

 

 

लेकिन भूल-भुलैया भी है यह जाल

इंटरनेट जहां मेल-मिलाप और संपर्क के लिए शानदार मौका मुहैया कराता है, वहीं यह दुष्चा में फंसने का चाव्यूह भी साबित हो सकता है। इसलिए नेट पर अपने अवसरों की तलाश के समय सावधान भी रहने की जरूरत है। नहीं तो इंटरनेट भूल-भूलैया वाला जाल भी साबित हो सकता है। अतः इंटरनेट में जब अपने जीवनसाथी की तलाश करें तो इन बातों को कभी न भूलें-

  • संपर्क के शुरूआती चरण में ही किसी पर पूरी तरह से विश्र्वास न करें और उसे अपना वास्तविक नाम बताने, पता व फोन नंबर देने से बचें।
  • कभी भी ऐसे संपर्क के लिए अपनी पर्सनल आईडी, जिसे आपके घर के दूसरे लोग भी जानते हों या अपने दफ्तर की आईडी का इस्तेमाल न करें वरना आपका संपर्क उजागर हो जाएगा और संभव है, इससे आपको नुकसान भी हो जाए।
  • समय से पहले अपने नेट साथी के करीब न आएं। यहां तक कि ऑनलाइन नजदीकी भी परेशानी में डालने वाली हो सकती है।
  • महज इंटरनेट में अपने अदृश्य साथी की बातों पर ही विश्र्वास न करें। उसके संवाद कौशल से अपने निजी निष्कर्ष भी निकालें और अपनी कसौटियों पर उन निष्कर्षों को कसें।
  • अगर आपको पता चले कि इंटरनेट साथी ने आपको तमाम बातें झूठी बतायी हैं तो इसको दिल में न लें। यह झूठ-फरेब और असंगत जानकारी की भी एक भरी पूरी दुनिया है।
  • अगर पहली बार मिलने का कार्याम बना रही हों, तो एकांत में मिलने से बचें और सार्वजनिक जगहों को चुनें। पहली मुलाकात को लेकर सावधान रहने की जरूरत भी होती है।
  • शुरू-शुरू में शादी संबंधी पोर्टलों की निःशुल्क सेवाओं का इस्तेमाल करें और देखें कि क्या जैसा साथी आप ढूंढ़ रहे हैं, वह यहां उपलब्ध है? अगर हो तो पैसा खर्च करके सदस्यता लेने की क्या जरूरत है।
  • अगर किसी का बायोडाटा पहली नजर में ही पसंद आ जाए, तो तुरंत संपर्क करें। देर करना सही नहीं होता।
  • सहज और स्पष्ट खूबियों वाला साथी पाने के लिए खुद भी सहज और स्पष्ट रहें। अपनी खूबियों का अलंकृत बायोडाटा पेश न करें।

 

– वीना सुखीजा

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