ईमानदार राजनीति ही लड़ सकती है आतंकवाद से

भारत का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और विपक्ष भी आतंकवाद के मुद्दे पर भ्रमित दिखता है। हालॉंकि अब घटित होने वाली आतंकी घटनाओं की जिम्मेदारी “इंडियन मुजाहदीन’, जिसे प्रतिबंधित सिमी के ही एक धड़े का उत्पाद माना जा रहा है, अपने ऊपर ले रहा है। साथ ही हमारी जॉंच एजेंसियॉं भी इसी सूत्र को हाथ में लेकर अपनी जॉंच-पड़ताल को आगे बढ़ा रही हैं, लेकिन इन्हें कितना भी खंगाला जाय ये सूत्र हमें आतंकवाद के केन्द्र-विन्दु तक नहीं पहुँचा सकते। इस बात को स्वीकार कर आगे बढ़ना होगा कि आतंकवाद किसी समुदाय विशेष का तात्कालिक विद्रोह नहीं है। वह अपनी प्रकृति में कल भी प्रायोजित था और आज भी प्रायोजित है। हमें पाकिस्तान की उस घोषणा को कदापि नहीं भूलना होगा कि उसने भारत से ह़जारों साल तक लड़ने और जख्म पर जख्म देते रहने की चेतावनी बहुत पहले से दे रखी है। पिछले तीस वर्ष से वह हमें आतंकवादी गतिविधियों के जरिये जख्म पर जख्म देता जा रहा है। हमारे नेतृत्व को आतंकवाद के ़िखलाफ किसी भी तरह की रणनीति बनाने के पहले यह मान कर चलना होगा कि इसके केन्द्र में न लश्करे-तैयबा है, न जैशे-मुहम्मद, न हरकतुल-मुजाहदीन और न ही सिमी अथवा इंडियन मु़जाहदीन। इसके केन्द्र में सदैव से पाकिस्तान रहा है और अभी तक हर आतंकवादी संगठन उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की रणनीतिक चाल के मोहरे के तौर पर ही काम करता रहा है। अब भारत में घटने वाली आतंकवादी घटनाओं के संदर्भ में पाकिस्तानी मूल के आतंकी संगठन नेपथ्य में चले गये हैं और आईएसआई ने इसके लिए अपना नेटवर्क भारत में तैयार कर लिया है। अंतर्राष्टीय दबाव के चलते उसने भारत के खिलाफ अब अपनी ़जमीन से आतंकवाद का संचालन लगभग बंद कर दिया है। अब वह दुनिया के सामने पुरजोर आवा़ज में कह सकता है कि आतंकवादी घटनायें भारत की घरेलू राजनीति का परिणाम हैं, पाकिस्तान पर वह झूठी तोहमत लगा रहा है।

लेकिन सच यही है कि भारत की प्रत्येक आतंकवादी घटना के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है। अतएव यह मानकर चलना होगा कि पाकिस्तान पर लगाम कसे बिना हम आतंकवाद को रोक नहीं सकेंगे। क्योंकि भारत को हर तरह से तबाहो-बर्बाद करना उसका छिपा एजेंडा है। उसकी दोस्ती विश्र्वास के काबिल नहीं है। एक ओर वह दोस्ती का हाथ बढ़ायेगा तो दूसरी ओर वह हमारी पीठ में छुरा घोंपने से परहेज भी नहीं करेगा। पिछले 13 सितम्बर को दिल्ली की आतंकवादी घटना के बाद राजनीतिक स्तर पर आतंकवाद के ़िखलाफ कड़े कानून बनाने और खुफिया एजेंसियों को कारगर और सक्षम बनाने की बहस तेज हो गई है। ये उपाय अवश्य होने चाहिएं। लेकिन यह भी मानकर चलना होगा कि ये उपाय आतंकवाद को समाप्त नहीं कर सकेंगे। आतंकवाद अगर हमारी जमीन पर पनप रहा है तो उसकी एकमात्र व़जह यह है कि हमारी ़जमीन उन्हें इतनी उपजाऊ समझ में आ रही है कि वे अपने जेहादी आतंकवाद के पौधे को इस ़जमीन पर भरपूर लहलहाता देख सकते हैं।

इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि हमारी मौजूदा घरेलू राजनीति उन्हें हमारी ़जमीन पर पॉंव पसारने का नायाब मौका मुहैया कर रही है। हमारा राष्टीय समाज खंड-खंड विभाजित समाज बन गया है। इस स्थिति में जो सबसे खतरनाक विभाजन हुआ है वह सांप्रदायिक विभाजन है। देश के दो बड़े संप्रदायों, हिन्दू और मुसलमानों के बीच इस कदर एक-दूसरे के प्रति अविश्र्वास की भावना “वोट बैंक’ की राजनीति ने बढ़ाई है कि दोनों एक-दूसरे को शक की निगाह से देखने लगे हैं। ऐसी स्थिति पैदा करने की जिम्मेदार जिस हद तक तथाकथित हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक ताकते हैं, उनसे कम अपने को सेकुलर कहने वाली ़जमातें भी नहीं हैं। यह सही है कि आतंकवाद का यह सियासी चेहरा जेहाद के नाम पर एक मजहबी शक्ल भी लिए है, लेकिन इसके लिए हर मुसलमान को आतंकवाद का परिपोषक मान लेना, इस देश के इतिहास के साथ अपघात जैसा है। दुःख इस बात का है कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजनीतिक कारणों से यह अपघात हो भी रहा है। इसका फायदा सीधे तौर पर पाकिस्तान को मिल रहा है। उसने पूरे देश में इस स्थिति का फायदा उठाते हुए अपना संजाल प्रसारित कर लिया है। जब तक यह संजाल नहीं तोड़ा जाएगा तब तक हम आतंकवाद के ़िखलाफ निर्णायक युद्घ नहीं लड़ सकेंगे। अन्य जो भी उपाय हम कर सकते हैं, वह करना चाहिए, लेकिन पाकिस्तान के इरादों को नाकामयाब बनाने के लिए राष्ट-समाज को विभाजित करने वाली सांप्रदायिक परिस्थितियों को पहले हमें परास्त करना होगा। इसके लिए ़जरूरी है कि हमारे राजनीतिक दल “वोट बैंक’ की राजनीति से बाहर आकर इसकी धारा को राष्ट-हित की जमीन पर उतारें। पाकिस्तान हमारे प्रति कभी मैत्रीभाव रखेगा, इसकी गुंजाइश तनिक भी नहीं है। राजनयिक स्तर पर हम उससे दूरी भी बना कर नहीं रख सकते। लेकिन हम उसकी बातों पर मुकम्मल तौर पर य़कीन कर लें, यह हमारे लिए घातक होगा। फिलहाल उसके आतंकवादी दरिंदों के लिए भारत सबसे नरम चारा साबित हो रहा है। उसकी नापाक और घिनौनी सा़िजशों को नाकाम करने के लिए हमें अपने बीच के सांप्रदायिक विभाजन को हर हाल में समाप्त करना होगा।

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