ऊंटों की दौड़

‘बाबा, आप मेरे और भैया के बीच संपत्ति का बंटवारा अपनी ज़िंदगी में ही कर देना।’

‘क्यों क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं।’

‘फिर यह बंटवारे की बात कहां से आ गयी?’

‘दरअसल, मैं बाद में झगड़ा नहीं चाहती।’

‘क्यों, क्या भैया से लड़ाई हो गयी?’

‘नहीं।’

‘फिर क्या बात है?’

‘बाबा, देखो न संपत्ति के बंटवारे को लेकर कितने झगड़े होते हैं। छोटे किसानों में ज़मीन को लेकर झगड़े होते हैं, खूनखराबा भी होता है और बड़े-बड़े उद्योगपति भी बचे हुए नहीं हैं। अम्बानी बंधुओं का झगड़ा तो अखबारों की सुर्खियों में छाया रहा और कई कंपनियां तो बंटवारे के झगड़े को लेकर बंद हो गयीं, जैसे मोदी और इलाहाबाद का मित्र प्रकाशन।’

‘हां, यह बात तो सही है।’

‘तो फिर आप हमारा बंटवारा कर दें ताकि हम में आपस में झगड़ा न हो और आपसी प्यार बना रहे।’

‘अच्छा कर देंगे, पहले तुम्हारे पापा से तो बात कर लें।’

‘बात को टालिए मत।’

‘मैं बात को टाल नहीं रहा, पहले तुम दोनों बालिग तो हो जाओ।’

‘यही तो टालने की बात है।’

‘अच्छा, पहले मेरी एक बात सुनो।’

‘क्या?’

‘बंटवारे से मुझे याद आया… ’

‘आप फिर कोई सवाल ही मालूम करेंगे।’

‘हां, है तो सवाल-सा ही।’

‘लेकिन पहले हमारा बंटवारा करें।’

‘सवाल का सही ज़वाब दे दो, अभी कर दूंगा।’

‘प्रॉमिस?’

‘हां, प्रॉमिस। गॉड प्रॉमिस।’

‘ज्यादा मुश्किल सवाल तो नहीं है?’

‘नहीं, आसान है। बस अक्ल का खेल है।’

‘तो कीजिए।’

‘अरब का एक बहुत बड़ा रईस शेख था। उसके दो बेटे थे। लेकिन वह अपनी संपत्ति का बंटवारा नहीं चाहता था। वह चाहता था कि उसकी संपत्ति की देखभाल करने के लिए उसका एक बेटा वारिस बने और वही अपने भाई की देखभाल भी करे। वारिस बनाने के लिए उसने एक अनोखी तरकीब सोची। उसने अपने दोनों बेटों को बुलाया और कहा कि वे अपने-अपने ऊंट के साथ उसके पास आयें। फिर उसने अपने बेटों से कहा कि वे अपने ऊंटों पर सवार होकर रियाद से जेद्दा तक की दौड़ लगायें, लेकिन जिसका ऊंट धीमा व बाद में पहुंचेगा, वही विजेता होगा और वही उसकी संपत्ति का वारिस बनेगा।’

‘यानी यह स्लो रेस थी, लास्ट आने वाला फर्स्ट माना जायेगा।’

‘हाँ। अब दोनों भाई कई दिन तक यही सोचते रहे कि अपने ऊंट को फिसड्डी कैसे बनाया जाए? फिर आखिरकार उन्होंने एक होशियार व्यक्ति से मशविरा किया। होशियार व्यक्ति से सलाह मिलने के बाद वे रियाद में जल्दी से ऊंटों पर सवार हुए और जितनी तेजी से जेद्दा पहुंच सकते थे, उतना प्रयास करने लगे। अब सवाल यह है कि होशियार व्यक्ति ने उन्हें क्या मशविरा दिया था?’

‘जब स्लो रेस थी, तो वे तेजी से क्यों दौड़े?’

‘इसी सवाल में तो होशियार व्यक्ति का मशविरा छुपा है। देखो, मैंने तुम्हें उत्तर का हिंट भी दे दिया।’

‘लेकिन मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा।’

‘कोशिश करो, आखिर तुम्हें अपनी संपत्ति का हिस्सा भी तो चाहिए।’

‘मेरी समझ में नहीं आ रहा।’

‘तो तुम्हें बंटवारा नहीं चाहिए।’

‘नहीं। आप उत्तर बतायें। मैंने हार मान ली।’

‘होशियार आदमी ने उन दोनों भाइयों से अपने-अपने ऊंट बदलने को कहा था। अब एक का ऊंट दूसरे के पास था और वह उसे जल्दी से जल्दी जेद्दा पहुंचाना चाहता था ताकि उसका खुद का ऊंट पीछे रहकर जीत जाए।’

 

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