कथा लक्ष्मीवाहन की

हे भक्तों! जो लोग लक्ष्मी की पूजा- अर्चना करना चाहते हैं और लक्ष्मी को प्रसन्न रख कर अपने घर की वृद्घि करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि वे लक्ष्मीवाहन उलूक की अभ्यर्थना करें। सेवा-पूजा करें क्योंकि यदि वाहन खुश है तो सवारी करने वाली अपने आप प्रसन्न होंगी।

जो व्यक्ति इस उलूक अध्याय को पढ़ेगा, वह स्वयं उलूकवत हो जायेगा और उसके पास धन, सुख, आठों सिद्घियां तथा नवों निधियां हमेशा रहेंगी। देवताओं ने मृत्यु लोक में इस पक्षी को यह वरदान दिया है कि वह लक्ष्मी को अपने कन्धों पर सवार कर पूरे विश्र्व में भ्रमण कराये और चूंकि लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हैं, अतः चंचला हैं और चंचला के चोंचले सहना उल्लू के ही बस की बात है।

मैं उलूक महाराज को बार-बार प्रणाम करता हूँ कि वे प्रसन्न हों और लक्ष्मी को कुछ समय के लिए ही सही मेरे घर पर रोक दें, और कुछ नहीं तो उनके दर्शन ही करने दें।

भक्तों! अब मैं इस पक्षी के बारे में आपको विस्तार से बताता हूँ। उलूक महाराज का सिर पृथ्वी की तरह गोल है। अन्य पक्षियों की तरह नहीं, इनकी आँखें मनुष्य की तरह हैं। जब उड़ते हैं तो बिल्कुल आवा़ज नहीं करते, ऐसे सरक जाते हैं जैसे आतिशबाजी में रॉकेट, जो आवाज बाद में आती है वो हवा की होती है, इनकी नहीं। ये महाराज जिस वृक्ष पर बैठते हैं, वहॉं नियमित रूप से उदासी दिखाई देती है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे कोई विद्वान देश की स्थिति पर चिन्तन कर रहा हो। कई बार मैंने उलूकों को चुपचाप घन्टों बैठे देखा है। ऐसा लगता है जैसे राज के गलियारे में अजनबी घूम रहे हैं।

लक्ष्मीवाहन शिकार का शौकीन होता है और इसका वार दरिद्रों पर ज्यादा होता है। शिकार को दबोचते ही लक्ष्मीवाहन उसका सेवन कर जाते हैं। उलूक को पाला नहीं जा सकता। ये बात अलग है कि इनके पालने में लक्ष्मीपति भी समर्थ नहीं हो पाये।

उलूक महाराज की आवाज को सुन-सुनकर बड़े-बड़े लोगों के होश फाख्ता हो जाते हैं। लेकिन तान्त्रिक लोग उलूक पूजा दिवाली की रात को करके कई शक्तियों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

आपकी जानकारी हेतु बता दूं कि हमारे देश में किसी घर के ऊपर उलूक बैठना या रात को इसका बोलना अशुभ माना जाता है, लेकिन ऐसा हमारे देश में होता है। यूनानी लोग उल्लू को ज्ञान का प्रतीक मानते हैं। यानि हमारे यहॉं जो महत्व मोर का है वही यूनान में उल्लू का है और वैसे भी लक्ष्मी और सरस्वती सदा की वैरी हैं और यह भी सच है कि वीणा-पुत्रों को लक्ष्मी कभी नहीं मिलती।

आीका वाले उल्लू को जादू-टोने, तंत्र-मंत्र आदि कार्यों में प्रयोग करते हैं। किसी आीकी के घर पर यदि उल्लू आ जाये तो उसके पंख नोंच डाले जाते हैं। ताकि उल्लू को भेजने वाले का नाश हो जाए। सफेद उलूक बहुत कम देखने को मिलता है। यह प्रेतात्मा का रूप माना जाता है।

उलूक की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि उल्लू से आप डरें नहीं। यदि आप चाहते हैं कि लक्ष्मी आएं तो उलूक की भी वन्दना करिये।

अपने घर-आंगन को लीप-पोत कर माण्डणे बनाइये। लक्ष्मी तथा लक्ष्मीवाहन का इन्तजार करें। यदि आप “ओम नमों उलूकाय’ मन्त्र का जाप करेंगे तो उलूक आप पर अवश्य कृपा करेंगे। ऐसा मेरा विश्र्वास है। अतः आप कृपा कर इस मन्त्र की माला जपें।

उलूकों के इस मौसम में मुझे एक और वस्तु की याद बड़ी ते़जी से आ रही है और वो है सुरसा…. सुरसा का सीधा सम्पर्क महंगाई से है और महंगाई का लक्ष्मी से, इस त्रिकोणात्मक समीकरण को समझना आसान नहीं है क्योंकि-

एक ही उल्लू काफी है,

बरबादे गुलिस्तां करने को।

हर शाख पे उल्लू बैठा है,

अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा।।

 

 

– यशवन्त कोठारी

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