कहानी हैदराबाद की

सन् 1592 तक शहर के केन्द्र-बिन्दु चारमीनार, कुछ महल, मस्जिद, आशुरखाना, चार कमाने और फुव्वारा तैयार हो चुके थे। मीर मोमिन ने शहर में हरियाली पर खास जोर दिया था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शहर का काम शुरू होने से पहले ही पौधों को रोप दिया गया था। इसलिए जब तक शहर तैयार हुआ, तब तक ये छोटे-छोटे पौधे भी काफ़ी बढ़ चुके थे।

सुल्तान जल्द से जल्द इस नए शहर में स्थानांतर करना चाहता था। इसलिए जैसे ही शहर की मुख्य इमारतें तैयार हुईं, उसने अपने दरबार के तबादले के आदेश जारी कर दिए। इस मौके पर एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया, जिसमें नगर के सम्मानित लोगों को आमंत्रित किया गया। सुल्तान ने उसे संबोधित किया और अपना भाषण अपने ही इस शेर पर समाप्त किया-

“मेरा शहर लोगों सू मामूर कर

रख्या जूं तूं दरया में मीन या समी’

मतलब, ऐ खुदा! तू मेरे शहर को लोगों से इस तरह भर दे, जिस तरह से नदी में मछलियां भर रखी हैं।

लोगों ने खुले दिल से उसकी भावनाओं का स्वागत किया। रिवाज के अनुसार चारमीनार के पूरा होते ही कई ाोनोग्राम तैयार किए गए। ाोनोग्राम एक श्लोक, दोहा, सूक्ति या केवल एक या दो अक्षरों को जोड़कर किसी खास मौके की सार्थकता को अभिव्यक्त करता है। हर अक्षर को एक संख्या द्वारा दर्शाया जाता है, इन्हीं को जोड़कर अवसर की तिथि निर्धारित की जाती है। तत्कालीन समय में, जो लोग ाोनोग्राम तैयार कर चुके होते थे, उन्हें कविता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया जाता था। हर कविता की खुले दिल से प्रशंसा होती थी, क्योंकि हर कविता में भाषा और व्याकरण की पटुता होती थी। अधिकतर ाोनोग्राम शासक के जन्म, राजसिंहासन पर बैठने पर, विवाह अथवा मृत्यु आदि पर लिखे जाते थे।

इस सभा में एक युवा कवि हसन ने सिर्फ दो शब्द कहकर सबसे ज्यादा वाहवाही लूटी। उसने पहले कुली को और फिर लोगों को झुककर सलाम किया और कहा, “”जहॉंपनाह निवेदन करता हूँ।”

लोगों की तरफ़ से आवा़ज आई, “”पेश कीजिए।”

सुल्तान ने भी गर्दन को हल्का-सा हिला कर अनुमति दी।

हसन ने चारों ओर ऩजर घुमाई और कहा, “”या हफी़ज”। यह कहकर वह चुप हो गया। यह पूरी कविता की शुरुआत हो सकती थी या फिर पहली पंक्ति की शुरुआत, इसलिए लोग इन्त़जार करने लगे कि वह आगे क्या कहने वाला है? लेकिन वो इतना ही कह कर बैठ गया। सम्मेलन के उद्घोषक ने जल्दी से हिसाब लगाया और उठ कर घोषणा की, “”हुजूर, इसका जोड़ सन् 1000 हिजरि निकलता है (यह सन् 1592 ईस्वी के बराबर है)।” सभा में चारों तरफ खुशी की लहर दौड़ गई। हर तरफ से मिल रही वाह-वाही को देख कर हसन समझ नहीं पा रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? एक यंत्रचालित खिलौने की तरह वह सलाम करता रहा। सुल्तान ने उसे ह़जार मुद्राओं की थैली और लबादा देकर सम्मानित किया।

स्मारक को अपना कालानुामिक (ाोनोग्रामेटिक) नाम मिल गया था। सब समझ गए थे कि युवा कवि दरबार में भी कदम रख चुका है। यहॉं से सुल्तान सीधे अपने महल गया। जहॉं शाही तरीके से सुल्तान का स्वागत किया गया। लग-भग दर्जन भर लड़कियों ने उस पर चारों तरफ से गुलाब के फूल बरसाये और उसी की लिखी एक कविता गाई।

तुम्हीं मेरे मन्दिर सू ओ अज लाला

तुम ऊपर थे जोबन वारुंगी सौ बाला

(मेरे प्रीतम, तुम आज मेरे मन्दिर में आओ। मैं तुम पर अपनी जवानी सौ बार वारी करूँगी।

महल ह़जारों दियों की रोशनी से जगमगा रहा था। आंगन में एक ह़जार युवतियॉं नृत्य की मुद्रा में खड़ी थीं। मोहम्मद कुली जैसे ही अपनी राजगद्दी पर बैठा, उसके दरबारियों ने भी उसके दोनों तरफ अपना स्थान ग्रहण कर लिया।

मोहम्मद के दोनों तरफ खड़ी दो दासियॉं मोरद्दल झल रही थीं।

नगाड़े की हल्की थाप पर नृत्य शुरू हुआ। थाप धीरे-धीरे ते़ज और नर्तकियों की संख्या कम होने लगी। अंत में केवल दो नर्तकियां बचीं और वे नृत्य करते-करते सुल्तान की तरफ़ बढ़ने लगीं। नाच-गान की समाप्ति पर वे दोनों सुल्तान के पैरों में गिर पड़ीं। सुल्तान उठा और अपने निजी कक्ष की तरफ़ चल दिया।

इस प्रकार नगर के उद्घाटन का सार्वजनिक समारोह समाप्त हुआ।

महल के बाहर मुख्य-द्वार पर दस घुड़सवारों का पंक्तिबद्घ दल आकर रुक गया। इसी प्रकार दस-दस घुड़सवारों की 50 पंक्तियां मुख्य-द्वार तक पहुँचीं। तत्पश्र्चात, आठ आदमियों द्वारा उठाई गई पालकी में भागमति का आगमन हुआ। पालकी के पीछे भी दस-दस घुड़सवारों की 50 पंक्तियां थीं। भागमति को मिले विशेषाधिकार के तहत, वह सुल्तान से मिलने ह़जार घुड़सवारों के जुलूस के साथ ही आती थी। उसे पालकी के स्थान पर हाथी की सवारी की अनुमति दी गई थी, किंतु उसने सुरक्षित और जनाना सवारी पालकी को ही पसंद किया। पालकी में उसका रहस्य भी बरकरार रहता। हाथी पर आने से सभी उसे आसानी से देख सकते थे, जबकि पालकी में आने से मात्र महल में प्रवेश करते और बाहर आते हुए ही उसे देखा जा सकता था। इस प्रकार उसके खास सेवकों अथवा हरम के हीजड़ों और सुल्तान ने ही उसे देखा था। अपने इसी रहस्य के चलते ही वह लोगों के बीच अपने रूप-लावण्य, पोशाक तथा चाल-ढाल के लिये चर्चा का विषय बनी रही। बरसों तक सुल्तान और भागमति की मुलाकातें चलती रहीं।

कुली भाग का स्वागत हमेशा अपनी लिखी किसी कविता से करता था। कई बार पूरी कविता कहता तो कभी कुछ शेर। उसके बाद पूरी शाम दोनों अपनी अलग रंगीन दुनिया में लीन हो जाते।

इन रंगीन शामों में सुल्तान हमेशा नशे के आलम में रहता था। भाग पीने की इतनी शौकीन नहीं थी, बस कभी-कभी एक आध-घूंट भर लेती, वो भी सिर्फ कुली का दिल रखने के लिए। कुली ने चाहे कितनी भी पी रखी हो, पर भागमति के आने के बाद उसकी जिद्द रहती कि उसका जाम वह ही बनाए और साथ ही उसका पहला घूंट भी वही पिए। उसकी यह जिद्द देख कर वह अक्सर कहती, “”सरकार, मुझे इसकी कोई ़जरूरत नहीं, आपको देख कर ही मुझ पर नशा तारी हो जाता है।” सुल्तान को उसके मुंह से ये शब्द बार-बार सुनने अच्छे लगते थे। वह कहता कि जाम से उसका म़जा दुगना हो जाता है।

उन शामों के दौरान झीने पर्दों से छन कर मधुर संगीत आकर उनकी महफ़िल को एक नया स्वाद प्रदान करता। उस संगीत की लय पर भागमति गीत गुनगुनाती और हाथ व आँखों से बैठे-बैठे ही नृत्य की तरह-तरह मुद्राएं बनाती। बैठे-बैठे इसलिए, क्योंकि कुली उसे अपने पास से कभी उठने ही नहीं देता था। धीरे-धीरे पूरा समां इतना मदहोश हो जाता कि संगीत, गीत, नृत्य एक-दूसरे में समा जाते। संगीतकारों को कमरे में हो रही हलचल से पता चल जाता कि कब सब-कुछ थम-सा गया है। उस समय संगीत शांत हो जाता एवं रौशनी मद्घम.. और भागमति सुल्तान के आगोश में समा जाती। अगर कुली दिन में राज्य का सुल्तान राज्य था, तो भागमति उसकी रातों की रानी थी।

आज भागमति के नए महल में आने से पहले ही कुली ने कई जाम पी रखे थे। भाग के आने की खबर मिलते ही वह दौड़ कर दरवाजे के पास पहुँच गया और इससे पहले कि वो झुक कर उसे सलाम कर पाती, उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया।

“”भाग, आज तुमने हमें बड़ा इंतजार करवाया।” कुली ने शिकायत के लहजे में कहा।

“”मुझे आप ने इसी व़क्त आने के लिए आदेश दिया था, मेरे सरकार।”

“”मैंने कब कहा कि तुमने देर की है? मैं ही कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ?”

“”यह मेरा सौभाग्य है सुल्तान।”

“”आज से पहले किसी ने किसी को इतना नहीं चाहा, जितना हम तुम्हें चाहते हैं।” कुली ने भाग का हाथ पकड़ते हुए कहा।

“”लगता है सरकार आज काफी नशे में हैं।”

“”अभी कहॉं! अभी तो मैंने ़खुद पी है, नशा तो तब आए, जब तुम हमें पिलाओगी और तुम तो जानती हो कि नशे की हालत में हम बात नहीं करते।”

“”लेकिन खामोश रहते हुए भी आपके शब्द हमेशा मेरे कानों में गूंजते रहते हैं।”

तभी कुली छोटे बच्चे की तरह भाग का हाथ पकड़ कर उसे मुख्य हाल की मेहराब के पास ले गया, जहॉं दीवार पर कुछ लिखा हुआ था।

“”यह तुम्हारा महल है भाग, देखो क्या लिखा है?”

भागमती ने ध्यान से देखा, दीवार पर प्लस्तर से बड़े-बड़े अक्षरों में “हैदर महल’ लिखा हुआ था

“”लेकिन..” भाग ने धीमे-से कुछ कहना चाहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है?

“”हॉं, यह हैदर महल है, आज से यह तुम्हारा है, क्योंकि आज से हम तुम्हें हैदर महल का खिताब देते हैं।”

भागमति ने झुक कर कृतज्ञता प्रकट करनी चाही, लेकिन कुली ने आगे बढ़ कर उसे गले सेे लगा लिया। फिर दो कदम पीछे हटकर राजसी अंदा़ज में ऐलान किया, “”हम यह महल और यह शहर, तुम्हारे नाम अर्पित करते हैं ताकि आने वाली नस्लों को भी पता चले कि तुम कभी यहॉं रहती थीं और हम तुमसे प्यार करते थे।”

“”वो सब तो ठीक मेरे हुजूर पर…”

“”श…श…” कुली ने अपनी उंगली उसके होंठों पर रख कर उसे चुप करवा दिया।

 

– श्री नरेन्द्र लूथर

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