किसके लिये देशभक्ति

एक रिपोर्ट इन दिनों अखबार और टीवी में लगातार पढ़ने-देखने को मिल रही है कि फौज से अफसरों का मोह भंग हो रहा है और फौज छोड़ने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। फौज छोड़ने के कई कारण गिनाये जा रहे हैं जिनमें प्रमुख है कि छठे वेतन आयोग ने उन्हें कोई खास लाभ नहीं पहुँचाया है। फौज छोड़ने के मुद्दे पर टीवी में एक परिचर्चा देखने को मिली जिसमें एक बात को बार-बार कहा जा रहा था कि फौज छोड़ने का प्रमुख कारण ये है कि अब फौजियों में देशभक्ति का वह जज्बा नहीं रहा जो कभी हुआ करता था। यह आरोप मुझे अपनी सेना के मुंह पर धमाकेदार तमाचा लगा। कहीं युद्घ हो, दंगे हों, बाढ़ आए, भूकम्प आए या कोई गड्ढे में गिर जाए, रेल पटरी से उतर जाए या आतंकी हमला हो तो हमें सेना की याद आती है। वह सेना जिसका हर अंग गोली खाने को तत्पर रहता है, वह सेना जिसके सरहदों पर होने से हम नागरिक चैन की बंसी बजा रहे हैं, वह सेना जो बर्फ, उजाड़, रेगिस्तान, समुद्र तट पर रात-दिन, हर मौसम में चौकसी कर रही है और हम हैं कि कह रहे हैं कि उनमें देशभक्ति कम हो रही है। चलो मान भी लिया जाए कि उनके जज्बे में कहीं थोड़ी-बहुत कमी आई भी है, तो सवाल यह नहीं बनता कि कमी क्यों आई है, सवाल बनता है कि वे किस बात की देशभक्ति करें? उन नेताओं के लिये जो देश का जान-माल लूट रहे हैं और ठेकेदारों से मिलकर करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। उस न्यायपालिका के लिये जो करोड़ों केसों पर कुंडली मारे बैठी है? उन अफसरों के लिये जिनके पास आम आदमी की अर्जी तक लेने के लिये टाइम नहीं है लेकिन नेताओं की चापलूसी में वे घंटों खड़े रह सकते हैं। उस उद्योगपति के लिये जो कालाबाजारी, टैक्स चोरी और घूसखोरी को धर्म मानता है? उस किसान के लिये जिसने क़र्ज माफी को अपना अधिकार मान लिया है? उस धार्मिक नेता के लिये जो धार्मिक कम और साम्प्रदायिक ज्यादा है, उस आम आदमी के लिये जो वोट के लिये कभी भी बिक सकता है? उस जनता के लिये जो अपने स्वार्थों के लिये जन-सम्पत्ति को फूंकती रहती है और तोड़फोड़ करने से कभी परहे़ज नहीं करती? उस शिक्षक के लिये जो अूंगठा तो नहीं काट रहा पर जेब काटने में दक्ष हो गया है? पूरा देश प्रॉपर्टी डीलर बना हुआ है और सब कुछ बिकाऊ हो गया है। फिर भी हमारे जांबाज योद्घाओं की जान बिकाऊ नहीं है। वह ़जरूरत पड़ने पर बिल्कुल मुफ्त में इस देश के लिये निछावर हो जाते हैं।

एक बार की बात है कि नत्थू हीरो, सुरजा सेठ अर पार्टी की नेता रामप्यारी की कार में जबरदस्त टक्कर हो गई। लोगों ने तीनों को अस्पताल पहुँचा दिया। अस्पताल पहुँचते ही रामप्यारी अर सुरजा तो दम तोड़ गए पर नत्थू बच गया। थोड़ी देर में डॉक्टर आया तो उसने पूछा, “क्या हुआ था?’ नत्थू बोल्या, “जी, होना तो क्या था? हम तीनों अप-अपनी कार में जा रहे थे अर कसूत्ता भिड़न्त हो गया। टक्कर होते ही यूं लगा कि हम तीनों स्वर्ग के दरवाजे पर खड़े हैं। तभी यमराज आया अर हमसे बोला कि तुम तीनों टाइम से पहले आए हो, यदि पचास-पचास हजार रुपये दे दो तो तुम्हें दुबारा धरती पर भेज दूंगा। यमराज की बात सुनते ही मैंने तो पचास ह़जार दे दिये अर जब आँख खुली तो देखा कि यहॉं पड़ा हूँ।’ डॉक्टर बोल्या, “और उन दोनों का क्या हुआ?’ नत्थू बोल्या, “वे तो अभी तक वहीं स्वर्ग के दरवाजे पर खड़े हैं। सुरजा सेठ कह रहा है कि भाव कुछ ठीक लगा लो अर रामप्यारी कह रही है कि ये रुपये तो सरकार को देने चाहिए।’

 

– शमीम शर्मा

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