गैर-पारंपरिक ऊर्जा साधनों को दिया जाए बढ़ावा

देश में दिनोंदिन बिजली संकट गहराता जा रहा है। खपत और मांग लगातार बढ़ रही है। उत्पादन लगभग स्थिर बना हुआ है। उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को देखें तो उम्मीद नजर नहीं आती कि देश में क्रांतिकारी घटनाक्रम के बिना ऊर्जा की मांग को पूरा किया जा सकेगा। आने वाले एक-दो दशक में ऐसी संभावना नजर नहीं आती।

देश में बिजली उत्पादन का अभी भी 60 फीसदी से अधिक भाग परंपरागत स्रोत कोयले के ताप बिजली घरों से ही हासिल हो रहा है। पनबिजली का अनुपात अभी कम है। इसके अलावा परमाणु बिजली, पवन ऊर्जा या सौर बिजली की तो भागीदारी लगभग नगण्य है।

देश में ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों को पूरा करना है तो इस परिदृश्य में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा। पनबिजली उत्पादन के लिए देश के पर्वतीय भागों में काफी गुंजाइश है। पर्यावरण को कम से कम क्षति पहुंचाकर उसके दोहन की रूपरेखा बनानी होगी। यह देश में वर्तमान समय में ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने का सबसे सरल और सस्ता साधन हो सकता है। अभी देश को 25 से 35 फीसदी बिजली पन बिजली से ही प्राप्त हो रही है, लेकिन इसमें अपार संभावनाएं हैं और इसका हिस्सा काफी बढ़ सकता है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वेत्तर राज्यों में इस बिजली के दोहन पर जोर देना चाहिए।

वहीं पवन ऊर्जा द्वारा बिजली उत्पादन का लक्ष्य, भविष्य की ऊर्जा जरूरतों की दृष्टि से दीर्घकालिक योजना के तौर पर आज से सामने रखकर काम शुरू करना होगा। राजस्थान, तमिलनाडु, अन्य तटीय प्रदेशों, मध्यप्रदेश, गुजरात में पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं, लेकिन इन पर पर्याप्त ध्यान देकर काम नहीं किया जा रहा है। कई इलाकों में थोड़ा-बहुत काम हुआ है और मामूली बिजली, पवन ऊर्जा द्वारा पैदा की जा रही है, लेकिन प्रचुर संभावनाएं अब भी छिपी हुई हैं, जिनका लाभ उठाया जा सकता है। गैर परंपरागत ऊर्जा मंत्रालय ने मध्यप्रदेश में ही 40 स्थानों का चुनाव पवन ऊर्जा से बिजली बनाने की दृष्टि से उपयुक्त मानकर किया है, लेकिन जमीनी काम अभी शुरू नहीं हो पाया है। यह पर्यावरण की दृष्टि से एक बेहतर ऊर्जा विकल्प भी है। भविष्य की इस ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए शुरू में अवश्य बड़े निवेश की आवश्यकता होगी, लेकिन लंबी अवधि में यह कारगर ऊर्जा स्रोत साबित होने वाला है।

सौर ऊर्जा के साधनों से बिजली की जरूरत की पूर्ति ग्रामीण अंचलों में बेहद प्रभावी हो सकती है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों की छोटी-छोटी इकाइयों में सौर ऊर्जा से बिजली आपूर्ति न केवल बड़ी मात्रा में ऊर्जा का स्रोत बन जाएगी, बल्कि इससे उत्पादन के दूसरे साधनों पर पड़ रहा बोझ भी कम होगा।

गैर परंपरागत ऊर्जा मंत्रालय ने देश में कई गांवों को सौर ऊर्जा से रोशन किया है। इस योजना का और विस्तार होना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में इनका ज्यादा से ज्यादा दोहन न केवल बिजली, बल्कि अन्य ऊर्जा जरूरतों के लिए भी किया जा सकता है। देश में सौर ऊर्जा पर आधारित मॉडल ग्रामों का उसी तरह से विकास किया जा सकता है जैसे स्वच्छ ग्रामों का किया गया है। पुरस्कार और प्रोत्साहन योजनाओं से ग्रामवासियों को सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसमें सरकार को सौर ऊर्जा साधन मुहैया कराने के लिए आगे आना होगा। छात्रावासों, नवोदय स्कूल जैसे रिहायशी आवासीय परिसरों, कार्यालयों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर ज्यादा से ज्यादा बिजली इसी गैर परंपरागत स्रोत से लेने को प्रेरित किया जा सकता है। परंपरागत साधनों के खत्म होते जाने को देखते हुए भी गैर परंपरागत ऊर्जा की जरूरत बढ़ती जा रही है। कोयले की लगातार कमी, इसके निकालने की बढ़ती लागत और प्रदूषण संबंधी समाचारों के चलते अब इस पर निर्भरता कम करना होगी। भविष्य, कम प्रदूषण और सतत् रूप से बिजली देने वाले साधनों और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का होगा। इसके लिए निवेश और योजना बनाने का वक्त आ गया है।

 

– आशिमा अवस्थी

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