जीवन गीता

जब तुम अपने काम का दमन करते हो, तो यह तुम्हें पागल करता है। तुम्हें मनोवैज्ञानिक उपचार की ़जरूरत है। जैविक प्रेम देर-सबेर तुम्हें पागल करेगा। तुम किसी भी मनोवैज्ञानिक के पास जा सकते हो, मनोविश्लेषक के पास जा सकते हो और वहॉं तुम जैविक प्रेम के रोगियों को देख सकते हो। आत्महत्याएं, बलात्कार, हत्याएं आदि सारे अपराध जैविक प्रेम के कारण होते हैं। एक बार तुम अपनी इच्छाओं के प्रति सचेत हो जाते हो, तो करने को बहुत शेष नहीं रहता। अपनी इच्छाओं के प्रति अधिक से अधिक सचेत होवो, और उनसे लड़ो मत। बस, इच्छा का प्रत्येक चरण होशपूर्वक देखो, कैसे यह उठती है, कैसे यह तुम पर छा जाती है, कैसे यह तुम्हें पागल कर देती है और कैसे यह तुम्हें कमजोर, परेशान, हारा हुआ छोड़ देती है। इस सारी प्रिाया को देखो और यह देखना मात्र स्वतंत्रता लाएगा।

जितने अधिक शब्द तुम्हारे मन में होंगे, उतना ही कम रस तुम्हारे जीवन में होगा और यदि मन सतत आंतरिक बकवास में लगा रहता है, तब यह तुम्हें पागल किए देता है। स्वस्थ होने का एकमात्र रास्ता है शांत होना, और ध्यान की सारी कला यही है कि पूर्ण शांत हो जाओ। समाज तुम्हें पागल करता है और धर्म तुम्हें वैसा ही बने रहने देता है, जैसे तुम हो, समायोजित। समाज ऐसे रीति-रिवाज तुम पर थोपता है, जो तुम्हें पगला देते हैं और तब पिछले दरवाजे से धर्म तुम्हें सांत्वना देता है, तुम्हें चुप रखता है। तुम्हें सिखाता है कि कैसे आज्ञाकारी होवो, तुम्हें सिखाता है कि विद्रोही न बनो, तुम्हें नर्क से डराता है, स्वर्ग की आशा से भरे रखता है। यह तुम्हें सतत रीति-रिवाज दिए जाता है, जो तुम्हारी मदद करते हैं, लेकिन यह मदद बहुत अल्प अवधि की होती है।

You must be logged in to post a comment Login