जीवन गीता

नन्द वंश का साम्राज्य बहुत प्रसिद्घ रहा है। उसका प्रधानमंत्री था शकडाल। वह बहुत बुद्घिमान था। उसके दो पुत्र थे- स्थूलप्रद और श्रीयक। महामंत्री ने सोचा, “श्रीयक के विवाह पर मैं राजा को आमंत्रित करूंगा। उस समय मुझे सम्राट को कुछ उपहार देना होगा। उन्हें क्षत्रियोचित उपहार देना ज्यादा उचित रहेगा।’ यह सोचकर उसने छत्र, चामर, कृपाण, त्रिशूल आदि अनेक प्रकार के शस्त्र और राज-चिह्न बनवाने शुरू किए। शकडाल के विरोधियों को मौका मिल गया। वे महाराज नन्द के पास पहुँचे। उन्होंने कहा, “महाराज! हम जिस बात को लेकर आए हैं, यदि उस बात को न कहें, तो हम आपेक प्रति गद्दार बनेंगे।’ सम्राट यह सुनकर चौकन्ना हो गया। उसने पूछा, “क्या बात है?’ उन्होंने कहा, “शकडाल अपने पुत्र के विवाह को निमित्त बनाकर विविध प्रकार के शस्त्रास्त्रों का निर्माण करा रहा है, ताकि आपको सत्ताच्युत कर अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठा सके।’ राजा के मन में इस बात के प्रति विश्र्वास जम गया। अब शकडाल जो भी कार्य करता, सम्राट को लगता, यह राज्य उखाड़ने का प्रयत्न कर रहा है। जॉंच में सारे निष्कर्ष उस धारणा के आधार पर निकाले गए। राजा ने निर्णय लिया, “उचित समय पर शकडाल के पूरे वंश का उच्छेद करना है।’ शकडाल को राजा का यह निर्णय ज्ञात हो गया। उसने सोचा- “सम्राट ने कुपित होकर अन्याय करने का निश्र्चय किया है। मुझे अपना बलिदान देकर राजा को अन्याय से और वंश को विनाश से बचाना है।’ उसने अपने पुत्र श्रीयक से कहा, “तुम मेरे पुत्र हो, सम्राट के अंगरक्षक हो। यह लो तलवार। इसके वार से राजसभा में मेरा गला काट देना।’ सम्राट को अन्याय का भान हो, इसीलिए शकडाल ने अपने पुत्र के हाथों अपना गला कटवाया। यह ज्ञान और दर्शन के अन्तर का निदर्शन है। व्यक्ति का ज्ञान, निर्णय, उसके दृष्टिकोण और धारणा से प्रभावित होता है।

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