झुंझला जाते है पुरुष ऐसे कार्यों से

बात चाहे शादी से पहले की हो या बाद की, देखा गया है कि थोड़ा समय बीत जाने पर महिलाएं अपने साथी को अक्सर हल्के ढंग से लेने लगती हैं। बात पुरुषों की रुचि या अरुचि की नहीं हो रही है बल्कि यहॉं सरोकार उन कामों या बातों से है, जिनसे पुरुषों को कोफ्त तो होती ही है, साथ ही वे हास्यप्रद स्थिति में भी घिर जाते हैं।

अधिकांश महिलाएं शॉपिंग मॉल या दुकानों में शॉपिंग के समय टॉयल रूप में जाते वक्त या वॉश रूम (टायलेट) जाते वक्त अपना बड़ा सा लैडीज पर्स या बैग तथा दुपट्टा इत्यादि अपने साथी के कंधे पर लाद जाती हैं। अब सोचिए, जरा लैड़ीज बैग लादे या दुपट्टा उठाए पुरुष की स्थिति उस वक्त कैसी होगी? लोग शालीनता के चलते उस पर फब्तियां चाहे ना भी कसें, लेकिन उसे उपहास भरी निगाहों का सामना तो जरूर करना पड़ेगा। कितनी शर्मिंदगी महसूस होगी उसे? क्या यह ठीक नहीं होगा कि अपने साथी को अपना गुलाम समझने की हिमाकत ना करते हुए अपनी वस्तुएं स्वयं ही संभाली जाएं। आखिर, बाथरूम या टॉयल रूम जैसे स्थानों पर इतने सारे हुक एवं हैंगर्स किसलिए होते हैं? वैसे महिलाओं की इस आदत से उन्हें एक लाभ तो होता है कि ऐसी स्थिति में पुरुष उनकी अनुपस्थिति में फलर्टिंग करने या किसी अन्य महिला पर लाईन मारने की स्थिति में नहीं रहते। क्योंकि एक तो शर्मिंदगी का एहसास उन्हें नजरें उठाने ही नहीं देता तो वे निगाहें क्या खाक मिलायेंगे? दूसरे, उन पर लदे लेड़ीज बैग या दुपट्टे इत्यादि दूर से ही “नो वेकेंसी’ के बोर्ड का कार्य करते हैं।

दूसरी आदत महिलाओं में यह रहती है कि वे किसी पार्टी-समारोह या अन्य किसी अवसर पर अपने स्कूल या कॉलेज के सहपाठी अथवा पूर्व परिचित के मिलते ही न केवल स्वयं बातें करने लगती हैं बल्कि अपेक्षा करती हैं कि उनका साथी भी उनके साथ गॉसिप में शामिल हो। जरा सोचिए, आपका तो वह पूर्व परिचित अथवा दोस्त है किंतु आपके साथी के लिये तो नितांत अपरिचित और अजनबी है। आप तो अपनी पुरानी यादों और बातों में मशगूल हो जाएंगी किंतु वह बेचारा तो महाबोर हो जाएगा और स्वयं को अलग-थलग एवं उपेक्षित महसूस करेगा। इसके अतिरिक्त, आपके पुराने परिचित या दोस्त के साथ आपकी घनिष्ठता उसे असहज ही बनायेगी। हो सकता है, थोड़ी-बहुत जलन भी हो। अतः ऐसी परिस्थिति भी बेहद नागवार लगती है, पुरुषों को। जहॉं तक महिलाओं की बात है तो उन्हें फायदा यह होता है कि उनका साथी सतर्क हो जाता है। पुरुषों में उत्पन्न यह असहजता अथवा जलन या अपनी प्रेयसी को खो देने का डर उन्हें मजबूर करता है कि वे अपनी प्रिया पर अधिक ध्यान दें।

हुई ना एक तीर से दो शिकार करने वाली बात। पहली स्थिति में आप पूर्णरुपेण निश्र्चिंत होकर टॉयल रूम या बाथरूम जा सकती हैं और दूसरी स्थिति में पूर्व परिचित से मुलाकात के साथ-साथ अपने साथी द्वारा भी अधिक प्यार-दुलार मिलने लगता है।

इसके अतिरिक्त, महिलाएं उदारमना कहें या संवेदनशील बनने के लिये अथवा सही रूप में अपनी सहेली की मदद करने के लिये अपने साथी को मजबूर करती हैं। फिर चाहे स्थिति उक्त सहेली और उसके साथी के अलगाव की हो या और कुछ। ऐसे में पुरुष अत्यंत दुविधापूर्ण स्थिति में फंस जाता है। उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे और कैसे वह उक्त महिला की सहायता करे? वैसे अपने साथी को इस स्थिति में धकेलना हो सकता है कि स्व़यं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो। हो सकता है कि जिस स्थिति से उक्त सहेली गुजर रही है, उसकी सहायता करवाने के प्रयास में आप स्वयं उस स्थिति में आ जाएं। कहने का तात्पर्य है कि उक्त सहेली को संभालते-संभालते या उसकी समस्याओं का समाधान करते-करते अगर उन दोनों के बीच कुछ हो गया, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता तो आप टापती रह जाएंगी। अतः अपना स्वार्थ कहता है कि आग के पास घी को ना ही ले जाया जाये तो ठीक।

इतना ही नहीं, कई बार महिलाएं अपने साथी को ब्यूटी पॉर्लर या कूकिंग क्लासेज के बाहर प्रतीक्षा करवाती हैं या फिर ऐसे आयोजनों में ले जाती हैं, जहॉं सिर्फ महिलाओं का वर्चस्व रहता है। ऐसे में भी पुरुष ऑकवर्ड और बोरियत महसूस करते हैं। यहॉं भी खतरा महिलाओं के लिये ही है, क्योंकि ऐसी जगहों पर स्वाभाविक है कि महिलाएं ही होंगी और उनमें कुछ अत्यधिक स्मार्ट और खूबसूरत भी होंगी। अब स्वयं ही सोचिए कि क्या नहीं हो सकता है, ऐसे में? हो सकता है कि पुरुष बोरियत के नाटक की आड़ में अपनी आँखें सेंकें या फिर कोई चक्कर ही चल जाए। अतः ऐसा खतरा मोल लेना भी ठीक नहीं।

अतः अपने साथी का साथ हर वक्त चाहते हुए भी उसे ऐसी जगह ले जाना ठीक नहीं, जहॉं सिर्फ महिलाओं संबंधी कार्यकलाप चल रहे हों और उसे वहॉं जाने से चिढ़ लगती हो। आखिर, कुछ तो उसकी भी पसंद-नापसंद का ख्याल रखा ही जाना चाहिये।

– डॉ.नरेश बंसल

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