टिप्पणी

कितने प्यारे जूते हैं

देखो किसको पड़ते हैं

शैम्पो कितने बदले हैं

बाल अभी तक झड़ते हैं

बेगम को समझाते हैं

आप भी कितने भोले हैं

मैच वो देखने जाए क्यों

जिसके ग्यारह बच्चे हैं

जब से बजट ये आया है

बटवे सूखे-सूखे हैं

मोहम्मद मुमताज़ राशिद की ऐसी ग़ज़लें पढ़ते-पढ़ते हम लोटपोट हो जाते हैं। हमने पंकज उधास को गाते हुए मुमताज़ राशिद का नाम सुना था, लेेकिन ये वो मुमताज़ राशिद नहीं हैं। खाड़ी के शहर ़कतर में रहते हैं और ज़िन्दादिलाने हैदराबाद और लाहौर से अपना रिश्ता रखते हैं। पत्रकारिता उनका पेशा है, लेकिन हास्य-व्यंग्य की शायरी में उन्होंने अपना खास स्थान बनाया है। अपने नमकीन शेरों के बारे में उन्होंने कहा था-

नमकीन शेर मेरे

हंसाते ज़रूर हैं

ऐसा ना हो तो

मुस्कुरवाते ज़रूर हैं

बात में बात पैदा करना राशिद साहब को खूब आता है। अधिकतर सामाजिक विषयों पर ही उन्होंने रचनाएं की हैं और भरपूर हास्य पैदा किया है। लोग अपनी आदतों से किस तरह मजबूर होते हैं, इसका उल्लेख करते हुए वे एक ग़ज़ल में कुछ यूँ कहते हैं-

मिलते हैं अनपढ़ों में कुछ ऐसे भी नासमझ

भेजें ना भेंजें खत प’ लिखाते ज़रूर हैं

देखे गये हैं ऐसे गुलूकार भी कई

आवाज़ फट रही है प’ गाते ज़रूर हैं

शोहर अगरचे खुद किसी काम के ना हों

बीवी पे अपना रौब जमाते ज़रूर हैं

मोहम्मद मुमताज़ राशिद सत्तर के दशक से ़कतर में रह रहे हैं। वहाँ उन्होंने अपनी साहित्यिक गतिविधियों को विस्तार देते हुए एक पत्रिका ‘ख्याल-व-़फन’ का प्रकाशन भी शुरू किया है। 1975 से शायरी के क्षेत्र में सिाय हैं और अब तक लगभग 5 काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। ग़ज़ल, नज़्म, पेरोडी और ़कता लिखने में उन्हें कमाल हासिल है। उनका एक ़कता ‘खतरनाक वेबसाइट’ काफी मशहूर हुआ है-

सौ कमांड हैं कंप्यूटर में

राज़ को बेऩकाब करती हैं

ऐसी वेबसाइस्ट भी हैं इसमें

जो बुढ़ापा ख़राब करती हैं

फिल्मी दुनिया पर काफी हास्य-व्यंग्य रचनाएं लिखी गयी हैं। एक अभिनेत्री की विशेषताओं को गिनवाते हुए राशिद साहब ने एक ़कता लिखा था-

वो है ़फनकारा हज़ारों ़खूबियाँ रखती हैं

कुछ लड़कपन के ज़माने की तो

कुछ हैं हाल की

बा़की सारी छोड़िये बस एक देखिए

पिछले नौ बरसों से हैं

अबतक वो सोलह साल की

बात पति-पत्नी की हो या ससुराल की, नेताओं की हो या अभिनेताओं की हँसी के नुस्खे निकालने में मोहम्मद मुमताज़ राशिद माहिर हैं।

 

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