तुम बहुत कुछ हो

तुम कुछ नहीं हो मेरी, और बहुत कुछ हो,

और सच क्या होगा? जब तुम ही एक सच हो

खुशियों की कली हो या, रात चांदनी तुम हो,

हार नहीं तुम गले पड़े जो, एक पुष्प गुच्छ तुम हो

तुममें देखा मंदिर मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा भी

संदेश तुम्हीं हो जीवन का, तुम हो मेरी जीवनधारा,

साथ दिया है तुमने जिसका, समझो कहीं नहीं वो हारा,

मैं साथ पाकर धन्य हुआ, तुम हो जीत की एक धारा,

क्या कहूँ तुम्हें समझ न आये, एक अनजान सुधा तुम हो,

तुम कुछ नहीं हो मेरी, और बहुत कुछ हो

 

–     संतोष कुमार पाण्डेय

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