दिल लगाने की उम्र में

26 वर्षीय सुरभि मिश्रा ने जब सुबह-सुबह दफ्तर में बैठे हुए अपनी बायीं छाती में रह-रह कर दर्द महसूस किया, तो उन्हें तुरंत यही लगा कि कल जो उन्होंने अपनी सहेली के साथ सड़क किनारे चाट खायी थी, यह दर्द उसी का नतीजा होगा। लेकिन जब दर्द सुबह से लेकर दोपहर बाद तक भी जारी रहा और धीरे-धीरे बढ़ता ही गया तो उनका मूड अपसेट हो गया और अपने स्तर पर उन्होंने पेट दर्द की कुछ टैबलेट्स भी खायीं, मगर बात नहीं बनी और दर्द धीरे-धीरे बढ़ने लगा। इससे सुरभि को दफ्तर से घर और घर से फिर अस्पताल का रुख करना पड़ा।

अस्पताल पहुंचकर जो कुछ सुरभि और उसके परिवार के लोगों को पता चला, उससे उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं। वास्तव में यह पेट का दर्द नहीं, बल्कि एक मध्यम किस्म का दिल का दौरा था। यह तो अच्छी बात थी कि अक्सर दर्द को छिपा लेने वाली सुरभि ने उस दिन घरवालों को बताया और समय रहते अस्पताल का रुख कर लिया। नहीं तो डॉक्टर के मुताबिक काफी गंभीर स्थिति बन सकती थी। डॉक्टरों के मुताबिक सुरभि के गाल ब्लैडर में लगातार जलन बनी रहने से हृदय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

यह एक अकेली सुरभि का किस्सा नहीं है। अस्पतालों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में बड़ी तेजी से युवा हृदय संबंधी अनेक नयी-पुरानी बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं। पिछले 4-5 सालों में 25 से 35 के बीच के युवाओं को बड़े स्तर के हार्ट अटैक पड़ रहे हैं। इसका खुलासा इस आंकड़े से भी किया जा सकता है कि हृदय रोगों के मरीज 40 फीसदी से ज्यादा वे हैं, जिनकी उम्र अभी 40 की सीमा को पार नहीं की। डॉक्टरों को चिंता है कि जिस तरह से युवा तेजी से हार्ट अटैक जैसी बीमारियों के दायरे में आ रहे हैं, वह स्थिति खतरनाक है।

ऐसा नहीं है कि ऐसी बीमारियों की गिरफ्त में सिर्फ वही लोग आ रहे हैं, जो लेट नाइट पार्टियों में नियमित शिरकत करते हैं, अक्सर शराब पीते हैं और तला-भुना भोजन तथा मांस खाते हैं। हकीकत यह है कि साग-भाजी खाने वाले, कभी शराब को हाथ न लगाने वाले युवा भी इस तरह की समस्याओं का तेजी से शिकार बन रहे हैं। बड़े शहरों में यह समस्या शायद छोटे शहरों के मुकाबले कहीं बड़ी है। वोकहार्ट हॉस्पिल, बैंगलोर के चीफ कार्डियक सर्जन डॉ. विवेक जावाली कहते हैं, “”ऐसा कोई महीना नहीं जाता, जब मैं किसी ऐसे मरीज की बाईपास सर्जरी न करूं, जिसकी उम्र 30 साल से कम होती है।” उनके मुताबिक उनके 20 फीसदी मरीज ऐसे होते हैं, जिनकी उम्र 40 साल से कम होती है और इनमें ज्यादातर खतरनाक किस्म के पहले या दूसरे हार्ट अटैक से गुजरे होते हैं।

विभिन्न रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत में कॉरोनरी आर्टरी डीजिज का पैटर्न चेंज हो रहा है। हृदय संबंधी बीमारियां बहुत तेजी से आाामक, गुस्सैल और बेहद सिाय युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रही हैं। यही वजह है कि बाईपास सर्जरी आज न सिर्फ अधेड़ उम्र के मरीजों के लिए बल्कि युवाओं के संदर्भ में भी एक प्रचलित शब्द बन गया है। खासकर उन लोगों के लिए तो यह लाइफ स्टाइल का हिस्सा ही बन गया है, जिनकी कम उम्र में पहली बाईपास सर्जरी हुई हो।

विदेशों में हृदय संबंधी मरीजों का उम्र समूह भारत से बिल्कुल अलग है। वहां सिर्फ 4 फीसदी युवा ही हृदय संबंधी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, जबकि हमारे यहां इनकी तादाद 40 है यानी 9 गुना हमारे यहां पश्र्चिमी युवाओं के मुकाबले हृदय संबंधी बीमारियों का ज्यादा हमला हो रहा है। सवाल उठता है आखिर युवा भारत को इस कदर हृदय संबंधी बीमारियां अपनी गिरफ्त में क्यों ले रही हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि शायद इसकी सबसे बड़ी वजह बड़े पैमाने पर भारतीय युवाओं का मधुमेह की गिरफ्त में होना है यानी मधुमेह भारतीय युवाओं के लिए हृदय संबंधी बीमारियों का प्रवेशद्वार है। एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली के डायरेक्टर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. उपेन्द्र कौल कहते हैं, “”हार्ट अटैक की सबसे ज्यादा घटनाएं बड़े शहरों के युवाओं के बीच घट रही हैं। शायद इसकी वजह यह है कि उन पर परफॉर्मेंस का दबाव सबसे ज्यादा है। यह परफॉर्मेंस कई स्तरों का है। स्कूल के दिनों में अच्छे नंबरों का, स्कूल के बाद अच्छे कॉलेज में एडमिशन का, पढ़ाई के बाद अच्छे कॅरियर का और अच्छे कॅरियर के बाद लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते रहने का। सेलफोन, गर्लफ्रैंड/ब्वॉयफ्रैंड, समय पर काम पूरा करने की चिंता यानी डेडलाइन प्रेशर, अच्छे जिस्म की ख्वाहिश, अपनी गाड़ी और अपना घर बनाने की तमन्ना और इसी तरह की तमाम दूसरी महत्वाकांक्षाएं भी युवाओं को बड़ी तेजी से बीमार बना रही हैं, खासकर बड़े शहरों के युवाओं को।

इसमें एक भूमिका तेजी से खान-पान की संस्कृति का हिस्सा बन रहे जंक फूड को लेकर भी है। जंक फूड आमतौर पर बहुत सारे नमक में बनता है यानी इसमें सामान्य खाने के मुकाबले कहीं ज्यादा नमक डाला जाता है, जो कि शरीर में तनाव को बढ़ाता है। हाई कैलोरी डायट इस सबमें करेले में नीम चढ़ा जैसा है। …और हां, प्रदूषण भी तो एक बड़ी समस्या है, जो बड़े शहरों के युवाओं को तेजी से बीमार बना रहा है। ये सब चीजें मिलकर शरीर के रक्त-संचरण और रक्त-वाहिकाओं के सामान्य कामकाज को प्रभावित करते हैं जिसका निर्णायक नतीजा होता है हार्ट अटैक या हृदय संबंधी कोई दूसरी बड़ी समस्या।

सवाल है, ऐसे में युवा इस सबसे बचने के लिए क्या करें? मुंबई के प्रसिद्घ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. असित भगवती के मुताबिक युवाओं को बेतरतीब लाइफ स्टाइल से बचना चाहिए। उन्हें हर समय किसी वाहन में सवार रहने के बजाय जितना हो सके पैदल चलना चाहिए और सबसे बड़ी कोशिश लगातार सिाय रहने की करनी चाहिए। लेकिन जिन युवाओं के घरों में हृदय संबंधी बीमारियों का इतिहास हो, उन्हें नियमित रूप से अपना चैकअप कराना चाहिए, जंक फूड बिल्कुल नहीं खाना चाहिए, दबाव से बचना चाहिए, कम से कम वसा लेनी चाहिए, अधिक से अधिक फाइबर डायट का इस्तेमाल खाने में करना चाहिए, सिगरेट से दूर रहना चाहिए और उतनी ही दूरी शराब से भी बनाकर रखनी चाहिए। अगर इस तरह के उपायों को आजमाया जाए तो हृदय संबंधी समस्याओं से बचा जा सकता है। इस सिलसिले में कुछ और बातें याद रखनी चाहिए-

  • नियमित रूप से एक्सरसाइज करनी चाहिए। सबसे आसान एक्सरसाइज मॉर्निंग वॉक है। अगर इसके लिए वक्त न मिले तो बस-स्टॉप तक पैदल जाएं, ऑफिस में लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों से चढ़कर जाएं और अपने वजन को नियंत्रण में रखें। हां, मोटापे को लेकर भी इसी तरह के नियंत्रण की जरूरत होती है।
  • जंक फूड न खाएं, अच्छी तरह नींद लें, अपने काम की व्यवस्थित योजना बनाएं ताकि डेडलाइन के लिए संघर्ष न करना पड़े। अगर मधुमेह से पीड़ित हैं तो इस सबको लेकर सामान्य से ज्यादा सजग रहें। खासकर हाई ब्लड शुगर वाले युवाओं को यह सावधानी जरूर बरतनी चाहिए।
  • अगर सिगरेट पीते हों, तो तुरंत छोड़ दें। अगर नहीं पीते हों, तो इसकी शुरूआत न करें। शराब पीना भी छोड़ें और साल में एक बार पूरे शरीर का चैकअप जरूर कराएं।

– मधु सिंह

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