निःशुल्क

स्कूल का पहला दिन था। सभी बच्चे उत्साह के साथ स्कूल पहुँचे। मास्टर जी ने बड़े प्यार से बच्चों का स्वागत किया और उन्हें दालान में बिछी दरियों पर बैठने का इशारा किया। कुछ ही देर बाद बड़े अधिकारी की कार आकर रुकी। मास्टर जी ने लपक कर दरवाजा खोला और मंच की तरफ ले आये। एक-एक करके बड़े अधिकारी ने बच्चों के बीच पुस्तकों का निःशुल्क वितरण किया और निःशुल्क शिक्षा पर लंबा-चौड़ा भाषण देकर विदा हो गये, जब कार ने स्कूल के गेट को पार किया। तभी मास्टर जी ने रौद्र रूप धारण कर अन्य शिक्षकों को बच्चों से किताबें वापस लेने का निर्देश दिया और कहा, ‘‘कल सभी बच्चे 100-100 रुपये लेकर आना तभी किताबें मिलेंगी, समझ गए…’’ उनकी बात सुनकर बच्चों के खिले चेहरे मुरझा गये और निःशुल्क का अर्थ वह भलीभांति समझ गये।

 

You must be logged in to post a comment Login