निम्नतम वर्ग और उच्चतम शिक्षा

हर सुबह आकाशवाणी का तिरुअनन्तपुरम् केन्द्र अपने दैनिक कार्याम “सुभाषितम्’ से आरंभ करता है। इसके अंतर्गत कई बुजुर्ग विद्वान किसी घटना, सूक्ति या काव्यांश के सहारे कोई विचारोत्तेजक मुद्दा प्रस्तुत करते हैं। यद्यपि यह चंद मिनट का ही कार्याम होता है, किंतु बहुत ही ज्ञानवर्द्घक एवं प्रेरणाप्रद होता है। मैं प्रायः यह प्रसारण सुना करता हूं। दिवस का शुभारंभ।

अभी कुछ दिन पहले इस सुभाषितम् के अंतर्गत एक सत्यकथा सुनने को मिली। उसका सारांश यूं है- एक गरीब कृषक था, यूरोप में। शायद इंग्लैण्ड में। एक दिन सुबह वह अपने बच्चे के साथ खेत में काम कर रहा था। कुछ दूरी पर देखा कि कीचड़ भरे पानी में पड़ा एक छोटा बालक ऊपर चढ़ने की विफल चेष्टा कर रहा है। हाथ-पैर पटक कर वह ज्यों-ज्यों ऊपर आना चाहता था, त्यों-त्यों कीचड़ में धंसता जा रहा था। वह त्राहि-त्राहि पुकारने लगा, रोने लगा। कृषक से रहा न गया। उसने झट वहां पहुंच कर बच्चे को उबार लिया। वह उस बच्चे के शरीर के कीचड़ को धोने लगा कि इतने में एक बाबू वहां घोड़े पर आ पहुंचा। वह उस बालक का पिता था। उसने जब सारा हाल समझ लिया तो वह इतना खुश हुआ कि उसने उस कृषक को एक रकम इनाम के रूप में देनी चाही। कृषक ने कहा, “”मैंने बस अपना मानव धर्म निभाया। इसके बदले कोई इनाम लेना मैं उचित नहीं मानता। बच्चे के प्राण बचा सका, इसी में मैं संतुष्ट हूं। यही मेरे लिए इनाम है।” तब बच्चे के पिता ने कहा, “”तो ऐसा करो! तुम्हारे इस बच्चे को मेरे साथ भेज दो। तुम इसे अच्छी शिक्षा नहीं दिला पाओगे। मैं इसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाऊंगा, जिससे उसमें निहित क्षमताओं का पूरा-पूरा विकास होगा।” कृषक मान गया। उसका नाम था अलैग्जेंडर फ्लेमिंग।

उसके बच्चे को उस अमीर सज्जन ने इतनी उत्तम शिक्षा दिला दी कि कुछ ही वर्षों में वह विख्यात वैज्ञानिक बन गया। उसी ने “पेन्सिलिन’ नामक दवा का आविष्कार किया। अलैग्जेंडर फ्लेमिंग का नाम पूरी दुनिया में विख्यात हो गया।

यह सत्य कथा इस बात की ओर इशारा करती है कि निम्न वर्ग में भी ऐसी कई प्रतिभाएं जन्म लेती हैं, जो अनुकूल परिस्थिति के अभाव में कुम्हला जाती हैं। यदि प्रारंभ से ही उन्हें अनुकूल वातावरण और उचित प्रोत्साहन दिया जाए, तो वे किसी न किसी क्षेत्र में ऊंचाइयां छू सकती हैं। उनकी विकसित प्रतिभा का लाभ न केवल उन्हें और उनके परिवार को मिलेगा, बल्कि पूरे मानव समाज को मिलेगा।

“जनपथम्’ नामक मलयालम मासिक पत्रिका का अंक मेरे सामने है, जिसमें केरल के प्रमुख शिक्षाविद् आर.वी.जी. मेनोन का एक लेख है, केरल के उच्च शिक्षा जगत पर। उसमें उन्होंने एक ऐसी तालिका दी है, जो यह बताती है कि निम्न वर्ग के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर कितने दुष्प्राप्य हैं।

केरल तो साक्षरता और शिक्षा में भारत के अन्य राज्यों से काफी आगे रहा है। इसके बावजूद केरल की यह स्थिति है तो उन राज्यों का क्या कहना जो शिक्षा और साक्षरता में पिछड़ते रहे हैं। क्या “शिक्षा का माध्यम’ संबंधी हमारी नीति निम्न वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा देने में बाधक है? प्रायः हर राज्य में अंग्रेजी माध्यम स्कूल और प्रान्तीय भाषा माध्यम स्कूल भी हैं। चूंकि अंग्रेजी माध्यम स्कूल की शिक्षा अधिक खर्चीली है, इसलिए निम्न वर्ग के बच्चे तो अधिकांशतः प्रान्तीय माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ते हैं। देश भर में उच्च शिक्षा का मुख्य माध्यम अंग्रेजी ही है। यह स्थिति निम्न वर्ग के बच्चों की प्रगति के लिए बिल्कुल प्रतिकूल है।

-के. जी. बालकृष्ण पिल्लै

 

 

बॉक्स

उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति विभिन्न आर्थिक समूहों में (ज्ञ्)

आर्थिक तकनीकी      कॉलेज  व्यावसायिक    कुल उच्च

विभाग  डिप्लोमा           शिक्षा           शिक्षा प्राप्त

निम्नतम      0.7   2.6        0.2    3.5

निम्न  1.8   5.1        0.1    7.00

निम्न-मध्य    4.8   14.8       1.4    21.1

उच्च-मध्यम व उच्च   9.7   40.5       8.4    58.6

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