पानी का रंग एक जैसा

आजकल जिसे देखो, वह पानी से छेड़खानी कर रहा है। नेतागण सिंचाई पानी के लिए किसानों से आंदोलन करवा रहे हैं, दूसरे नेता शहर में शुद्घ पेयजल की मांग कर रहे हैं। यह सिद्घ कर रहे हैं कि आज वाटर वर्क्स से नल के द्वारा आने वाला पानी ही प्रमाणित अशुद्घ पेयजल है। लोग भूल गये हैं कि युद्घ “जर-जोरू-जमीन’ के लिए होते रहे हैं। अब तो जल बुद्घिजीवी यह घोषणा कर रहे हैं कि अगला विश्र्व युद्घ “पानी’ के लिए होगा। नहरों के किनारे और नलों के आगे लोग-लुगाई, छोटे-बड़े युद्घाभ्यास करने भी लगे हैं।

वैसे पानी के लिए युद्घ पुराने जमाने में होते भी रहे हैं। पांडवों ने भी पेयजल के लिए एक यक्ष से पंगा लिया था। पानी पीने की जिद के कारण पांच में से चार पांडव अस्थाई मृत्यु को प्राप्त हो गये थे। वह तो युधिष्ठिर को पता लग गया था कि इस यक्ष को प्रश्र्न्नोतरी की बीमारी है, उसकी वजह से सारे बच गये वरना उस दिन महाभारत का आखिरी अध्याय तालाब के किनारे पूरा हो जाता।

यक्ष ने कहा, “”युधिष्ठिर, तुमने धर्मराज की उपाधि धारण कर रखी है। पर डॉक्टरेट की इस उपाधि के लिए तुमने अभी तक वाइवा क्लियर नहीं किया है। मेरे प्रश्र्न्नों का सही-सही उत्तर दोगे, तभी तुम इस तालाब का पानी पी सकोगे, वरना तुम्हें भी तुम्हारे इन भाइयों की तरह पानी पिला दूंगा”, कहते हुए यक्ष ने पूछा, “”शहादत सबसे ज्यादा फायदेमंद कब होती है?”

धर्मराज ने कहा, “”चुनाव-वर्ष की शहादत महत्वपूर्ण होती है। वह चाहे सीमा पर शहीद हुआ हो या आतंकवादी हमले का बाजार में शिकार हुआ हो, यदि चुनाव-वर्ष में शहीद होता है तो लाखों रुपये मुआवजा, पेटोल पंप, गैस एजेंसी या कोई और परमिट, उसके परिवार के पास तत्काल पहुंच जाते हैं।”

यक्ष-“”क्या अवैध शराब पीकर मरने वाले भी फायदे में रहते हैं?”

युधिष्ठिर, “”वे तो सदा ही फायदे में रहते हैं। वैध ठेके से वैध शराब पीकर मरने वाले, अवैध शराब के तस्करों से लड़-झगड़ कर मरने वाले वैध ठेकेदार के कारिंदे कभी मुआवजा नहीं पाते हैं। अवैध जहरीली शराब पीकर मरने वाला अपनी मौत के लिए शहीद की-सी सहानुभूति प्राप्त कर ही लेता है।”

यक्ष, “”जब भी कहीं आतंकवादी घटना होती है, मीडिया तत्काल ही विभिन्न नेताओं की प्रतििाया कैसे बता देता है?”

युधिष्ठिर, “”उसे पता होता है कि किस अवसर पर कौन-सा नेता क्या बात कहेगा। जैसे केंद्रीय गृह मंत्रालय कहेगा, इस घटना के होने की सूचना हमने राज्य को कई महीने पहले दे दी थी। राज्य के विपक्षी दल कहेंगे, यह सरकार की असफलता है। सरकार इस्तीफा दे। सरकार कहेगी, यह उनकी कायराना हरकत है। हम किसी को छोड़ेंगे नहीं।”

यक्ष, “”युधिष्ठिर, तुमने मेरे हर प्रश्र्न्न का उत्तर ठीक-सटीक दिया है। यह कैसे किया तुमने? क्या मेरी प्रश्र्न्नावली आउट हो गयी थी?”

युधिष्ठिर, “”यक्षदेव, आप अपनी सीमा से बाहर आ रहे हैं। आप मुझ पर आरोप लगा रहे हैं। आपके ये आखिरी सवाल आउट ऑफ कोर्स हैं। मैं आपकी वीसी से शिकायत करूंगा।”

यक्ष (हंसते हुए), “”जब तक तुम्हारी शिकायत वीसी कार्यालय तक पहुंचेगी, हो सकता है तब तक मैं ही वीसी बन जाऊँ। फिर तुम्हारी इस शिकायत का क्या हश्र होगा?”

युधिष्ठिर, “”फिर तो वही होगा, जैसा होता है। किसी आरोपी के मंत्री बनते ही उसके खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस ले लिये जाते हैं।”

यक्ष, “”लेकिन मैं तुम्हारी शिकायत वापस नहीं करूंगा। मैं जांच करूंगा और खुद को निर्दोष साबित करूंगा और तुम्हें झूठी शिकायत करने का दोषी बना दूंगा।”

युधिष्ठिर, “”यक्षराज, आप बार-बार पाठ्याम से बाहर की बातें पूछ रहे हैं। आप मर्यादा भंग कर रहे हैं। आप नियमों की रेखा पार कर रहे हैं और स्वयं ही उत्तर दे रहे हैं।”

यक्ष, “”धर्मराज, तुम्हारे उत्तरों से स्पष्ट हो गया है कि ये उत्तर उसी गाइड से उड़ाये गये हैं, जहां से मैंने प्रश्र्न्न उठाये थे। यह तुम्हारी चोरी-सीना जोरी है। फिर भी उत्तर सही होने के कारण तुम्हें मार्क्स तो दूंगा ही। तुम चाहो तो पानी पी सकते हो और तुम्हारे इन भाइयों में से किसी एक भाई को जीवित करवा सकते हो। बताओ, किसमें प्राण फूंकूं?”

युधिष्ठिर, “”सिर्फ एक? फिर तो नकुल ही ठीक रहेगा।”

यक्ष, “”धर्मराज इसमें क्या रा़ज है। यहॉं अर्जुन जैसे धनुर्धर, भीम जैसे गदाधर मरे पड़े हैं। तुमने इनमें से किसी को जीवित करवाने के लिए नहीं कहा?”

युधिष्ठिर, “”यक्षराज व्यक्तिगत प्रश्र्न्न पूछ कर मेरे दोस्त या रिश्तेदार मत बनिए। आपकी इक्जामिनरशिप खतरे में पड़ सकती है।”

यक्ष, “”धर्मराज, नियमों, सीमाओं मर्यादाओं का हवाला देकर तुम मुझे टरका रहे हो। तुम समझते हो कि ये ताकतवर भाई कभी भी तुम्हारी गद्दी के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए तुमने अपनी सेवा के लिए अपेक्षाकृत शांत भाई को चुना है। इस कारण से मैं तुमसे…. नाराज हूं। मैं तुम्हें फेल तो नहीं करूंगा, शाप जरूर दूंगा कि तुम्हारे सब भाई मरते दम तक तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हारे सिर पर सवार रहेंगे।”

यह कहकर यक्ष ऐसे गायब हो गया जैसे फरियादी को देखकर अफसर-मंत्री कुर्सी से गायब हो जाते हैं। युधिष्ठिर ने तालाब का पानी पिया और अपने भाइयों के चेहरों पर पानी के छींटे मारते हुए कहा, “”अरे उठो, अभी अपनी दिल्ली दूर है। तुम लोग अभी से ऐसे सो रहे हो जैसे सत्ताधारी बन गये हो।”

– गोविंद शर्मा

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