बाढ़ की विभीषिका

बिहार और उत्तर प्रदेश इस समय बाढ़ की भयंकर विभीषिका से जूझ रहे हैं। बिहार की हालत सर्वाधिक खराब है। वहाँ कोसी और गंडक ने जो तबाही मचाई है उससे बिहार का एक बहुत बड़ा हिस्सा पूरी तरह जलमग्न हो गया है। चारों तरफ पानी ही पानी। नगर, कस्बा, गाँव और ज़मीन इस जल समुद्र में कहीं-कहीं सिर्फ टापू की शक्ल में दिखाई दे रहे हैं। बाढ़ के चलते इस प्रदेश के सात जिले गंभीर आपदा के शिकार हैं। गाँव के गाँव और बस्तियाँ चारों तरफ पानी से घिरी हैं। लोग शरण खोजते यहाँ-वहाँ भाग रहे हैं, लेकिन न खाने को अन्न है और न पीने को पानी। सरकारी सहायता जो मिल रही है वह ऊँट के मुँह में जीरा जैसी नाकाफी सिद्ध हो रही है। सही अर्थों में जिन्दगी पंगु बनकर रह गई है। यह विनाशलीला जिसे स्थानीय लोग ‘कोसी मइया का कोप’ कह कर पुकारते हैं, पिछले लगभग 12 दिनों से लगातार बनी हुई है। इसने अब तक सरकारी आंकड़े के अनुसार 55 लोगों की जीवन-लीला समाप्त की है। अन्य तरह के नुकसान का आकलन फिलहाल किया भी नहीं जा सकता। पानी बढ़ता भी जा रहा है और नये-नये इलाकों में अपना फैलाव भी करता जा रहा है। यह कहानी है बिहार की, वैसे बाढ़ की तबाही को झेल तो उत्तर प्रदेश भी रहा है, लेकिन यह आपदा प्रतिवर्ष दुहराई जाने वाली कहानी जैसी ही है।

बिहार की उफनती नदियों ने तो खंडप्रलय जैसा दृश्य उत्पन्न कर दिया है। संभवतः इसी के चलते प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस इलाके के हवाई सर्वेक्षण के बाद तत्काल इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया है। इतना ही नहीं, बाढ़ प्रभावित लोगों की सहायता के लिए 1000 करोड़ रुपये की केन्द्रीय सहायता तथा 1.25 लाख टन खाद्यान्न मुहैया कराने की फौरी तौर पर उन्होंने घोषणा इस शर्त के साथ की है कि ज़रूरत के अनुसार इसे और बढ़ाया जा सकता है। सहायता के लिए सेना और अन्य सक्षम संगठनों की भी सहायता ली जा रही है। लेकिन आपदा इतनी बड़ी है कि सहायता के सभी उपाय इसके सामने बौने साबित हो रहे हैं। कोसी जो इस समय 13 कि.मी. का फैलाव लिए बह रही है, मौसम विभाग के अनुमान के अनुसार सिर्फ दो-तीन दिनों तक अगर पानी का बढ़ना इसी तरह जारी रहा तो, इसके 30 कि.मी. तक के फैलाव की आशंका है। नेपाल में कोसी पर बना बाँध टूट चुका है और गंडक नदी भी अपना सारा पानी इधर ही ढकेल रही है। अतएव सिवा इसके दूसरा कोई विकल्प नहीं है कि डूबते लोगों को फिलहाल बचाया जाय। एक दिक्कत यह भी है कि अगर आदमी को किसी तरह बचा भी लिया जाय तो बड़ी संख्या में पशुओं की रक्षा कर पाना तो किसी हालत में मुमकिन नहीं है।

वैसे तो बिहार के जिन जिलों में बाढ़ की यह तबाही बरपा हुई है, वे सैकड़ों साल से बाढ़ प्रभावित माने जाते रहे हैं। हर साल कोसी और गंडक इस तबाही का इतिहास लिखती रहती हैं। लेकिन इतनी बड़ी तबाही जिसे जलप्रलय कह कर भी पुकारा जा सकता है, कई सौ वर्षों के इतिहास में नहीं देखने को मिली है। इसका एक प्रमुख कारण नेपाल के और उत्तरी बिहार के इलाके में असामान्य मूसलाधार वर्षा तो है ही, नेपाल की वनसंपदा का समाप्त हो जाना भी एक बड़ा कारण है। बहुत पहले नेपाल ने अपनी हिमालयी वनसंपदा को कई दूसरे देशों को बेंच दिया, जिसके कारण पहाड़ नंगे हो गये हैं। और पहाड़ों से उतरने वाली नदी के वेग को रोक पाना अब असंभव हो गया है। इसलिए इसे सिर्फ प्राकृतिक विनाशलीला कह कर नहीं टाला जा सकता क्योंकि इसमें आदमी भी उसी हद तक दोषी है।

इन्हें रोकने के कारगर उपाय बहुत बार सुझाये जाते हैं लेकिन बाढ़ की त्रासदी बीत जाने के बाद फिर इसे कभी याद नहीं किया जाता। बिहार आज जिस त्रासदी से जूझ रहा है, इस संबंध में केन्द्र सरकार ने इसे रोकने अथवा सीमित करने की लिए योजना बनाने को कहा था। उसका यह भी कहना था कि इस तरह की किसी भी योजना का खर्च केन्द्र सरकार पूरा का पूरा वहन करेगी। लेकिन बिहार सरकार ने इस तरह की कोई भी योजना आज तक केन्द्र सरकार के सामने नहीं प्रस्तुत की। इस प्रकरण पर बिहार सरकार केन्द्र सरकार पर यह प्रतिवाद उछालने में नहीं चूकती कि केन्द्र सरकार बिहार की चिन्ता करने की जगह राजनीति कर रही है। उसका कहना है कि कोसी और गंडक नदियों के वेग को नेपाल सरकार के साथ कोई समझौता कर इन नदियों पर सक्षम बाँध बनाकर ही रोका जा सकता है और यह समझौता केन्द्र सरकार ही कर सकती है। उसके अनुसार कोसी नदी पर भीमनगढ़ में 1956 में जो बाँध बाँधा गया था, वह अब बहुत पुराना पड़ चुका है। बाँध की दीवारें अब बिल्कुल जर्जर हो चुकी हैं। इन दीवारों को सिर्फ मरम्मत के सहारे नहीं रोका जा सकता। बिहार सरकार का कहना इस अर्थ में सही है कि इस बांध की दीवारों की उम्र निर्माण के समय विशेषज्ञों ने सिर्फ 30 साल आंकी थी। कोसी की मौजूदा वेगवती धारा ने इस बाँध को तहस-नहस कर दिया है जिसके कारण इस नदी ने अपनी धारा भी बदल दी है और वह लगभग 200 कि.मी. दूर बहने लगी है। सबसे बड़ी त्रासदी तो यह है कि देश का बहुत बड़ा इलाका प्रतिवर्ष बाढ़ की तबाही भोगता है, भारी मात्रा में धन-जन की हानि होती है लेकिन इस बारे में आज तक कोई समन्वित राष्ट्रीय योजना नहीं बनाई जा सकी है। पिछली केन्द्र सरकार ने बाढ़ नियंत्रण को दृष्टि में रख कर देश की सभी प्रमुख नदियों को जोड़ने का एक प्रस्ताव रखा था, लेकिन सरकार बदलने के बाद उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

 

You must be logged in to post a comment Login