बिच्छू का जहर कैंसर के निदान में

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि बिच्छू के जहर में उपस्थित एक पदार्थ क्लोरोटॉक्सिन कैंसर कोशिकाओं की पहचान में मदद कर सकता है। यह खोज कैंसर उपचार में एक महत्वपूर्ण औजार साबित हो सकती है।

आमतौर पर कैंसर की सर्जरी में सर्जन के सामने समस्या यह होती है कि कैंसर की कोशिकाओं को कैसे पहचानें। शल्य-िाया के समय मुख्य गठान निकालने के बाद हो सकता है कि कुछ कैंसर कोशिकाएं आसपास बिखरी रह जायें। ये फिर से कैंसर के रूप में वृद्घि कर सकती हैं। प्रायः शल्य चिकित्सक सामान्य कोशिकाओं व कैंसर कोशिकाओं के बीच भेद करने के लिए उनमें दिखने वाले ऊपरी अंतरों का सहारा लेते हैं। मगर इसमें दिक्कत यह आती है कि चीरफाड़ के बाद ऊतक ठीक वैसे नहीं दिखते, जैसे वे स्कैन में दिखते हैं। इस समस्या का समाधान बिच्छू का जहर कर सकता है। यह देखा गया है कि कैंसर गठान की कोशिकाएं जैव-रासायनिक दृष्टि से थोड़ी अलग होती हैं। अर्थात् वे कुछ ऐसे रसायन बनाती हैं, जो सामान्य कोशिकाएं नहीं बनातीं। इनमें से एक पदार्थ है जिलेटिनेज, जो सिर्फ कैंसर कोशिकाओं में बनता है और यह इन कोशिकाओं को ऊतक में फैलने में मदद करता है। अनुसंधान से यह भी पता चला है कि जिलेटिनेज की उपस्थिति में क्लोरोटॉक्सिन कैंसर कोशिका से जुड़ जाता है।

इन तथ्यों का फायदा उठाकर सीएटल शिशु अस्पताल के जेम्स ओल्सन व उनके साथियों ने एक तरीका खोज निकाला है। उन्होंने क्लोरोटॉक्सिन के साथ एक चमकता रंजक (फ्लोरेसेंट रंग) जोड़ दिया और इस तरह बने अणु को उन्होंने चूहों के शरीर में इंजेक्ट किया।

ये चूहे मस्तिष्क, प्रोस्टेट अथवा आंतों के कैंसर से पीड़ित थे। क्लोरोटॉक्सिन जाकर इन कैंसर कोशिकाओं से जुड़ा और साथ में फ्लोरोसेंट रंग भी। तब ये कोशिकाएं चमकने लगीं। प्रयोगों से पुष्टि हुई कि सारी रंगीन चमकती कोशिकाएं वास्तव में कैंसर कोशिकाएँ थीं।

इस तकनीक का फायदा यह है कि कैंसर कोशिकाओं को चुन-चुनकर मारा जा सकता है। इसके अलावा इसकी मदद से कैंसर का पता काफी शुरूआती अवस्था में लगाया जा सकता है।

प्रयोगों के दौरान यह पता चला कि मात्र 100 कोशिका की अवस्था में भी यह तकनीक कैंसर निदान में कारगर रहती है। यदि इस तकनीक का उपयोग एम.आर.आई. के साथ किया जाये तो यह कैंसर निदान की एक अत्यंत महत्वपूर्ण तकनीक साबित हो सकती है।

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