बिना शिक्षा के विकास कैसे?

नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौढ़ शिक्षा संघ के न्यूज लेटर का अंक मेरे सामने है, जिसमें “नेशनल कमीशन फॉर एन्टरप्राइजिस इन दि अनओर्गनाइज्ड सेक्टर’ की एक रिपोर्ट के आधार पर बताया गया है कि देश के जो श्रमिक केवल अल्प शिक्षित रह गए हैं उनको अच्छे रोजगार नहीं मिल पाते। रिपोर्ट के अनुसार असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में अनुसूचित जन जाति वालों की औसत स्कूली शिक्षा की अवधि केवल दो दशमलव आठ सालों की रही है। मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों की केवल तीन दशमलव आठ साल की तथा हिन्दू अनुसूचित जातियों की केवल चार दशमलव एक साल की।

उक्त बुलेटिन से यह भी पता चलता है कि दुनियां भर के निरक्षरों में 34 प्रतिशत केवल भारत में हैं तथा सन् 2015 तक भारत में सबके लिए प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य हासिल करने की योजना है। चूंकि प्रौढ़ों की बढ़ती निरक्षरता का निवारण सबसे प्रभावी उपाय प्राथमिक शिक्षा को सुलभ बनाना है इसलिए आशा करें कि सन् 2015 तक निरक्षरता के घोर अभिशाप से हमारा देश लगभग मुक्त हो जाएगा। ज्ञातव्य है कि महज प्राथमिक शिक्षा देकर हम व्यक्ति की क्षमताओं का पूरा विकास नहीं कर पाएँगे। शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने का कार्य बहुत खर्चीला है। नये-नये स्कूल खोलने होंगे। नए-नए अध्यापकों की नियुक्ति करनी होगी। गरीब छात्रों को पाठ्य पुस्तकों और अन्य पाठ्य सामग्री निःशुल्क उपलब्ध करवानी होगी। यही नहीं सभी जरूरतमंद छात्रों को मध्याह्न भोजन निःशुल्क देने का प्रबंध भी करना ही होगा।

उक्त बुलेटिन में इस बात का भी उल्लेख है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने योजना आयोग से अस्सी हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि मांगी है। इसमें चालीस हजार करोड़ रुपए की राशि सर्वशिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन के लिए मांगी गई है। यह भी संकेत है कि योजना आयोग का मानना है कि स्कूली शिक्षा कमोबेश राज्यों का दायित्व होना चाहिए और शिक्षा में निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ये सारी बातें पढ़ने पर मेरा मन शंकाकुल हो जाता है। एक ओर हम चाहते हैं कि भारत को सन् 2020 तक विकसित देशों की कोटि में पहुँचा देना है और दूसरी ओर हम शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए आवश्यक राशि का प्रावधान बजट में कर नहीं पाते। मलयालम में एक कहावत है, जिसका मतलब है “हाथ भिगोए बिना मछली कैसे पकड़ें?’ याने मछली पकड़नी है तो हाथ भिगोना ही पड़ेगा। हमें विकास के क्षेत्र में चरण बढ़ाना है तो शिक्षा के द्वार सभी के लिए खोल देने होंगे। विशेषकर उनके लिए जो शिक्षा से वंचित रखे जाने के कारण दलितों की कोटि में आ गए हैं। अनुसूचित जन जातियों, अनुसूचित जातियों, अन्य पिछड़े वर्गों आदि के हर बच्चे को कम से कम दसवीं तक की निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए वस्तुस्थिति के अनुसार जितनी राशि मानव संसाधन मंत्रालय मांगे उतनी राशि उपलब्ध करवाने की मानसिकता योजना आयोग के कर्णधारों में विकसित होनी चाहिए। क्योंकि देश का विकास सबसे पिछड़े वर्गों के विकास पर आधारित है और उसकी आधारशिला है सर्वसुलभ माध्यमिक शिक्षा।

 

-के.जी. बालकृष्ण पिल्लै

 

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