ब्लॉग हो तो हर कोई बांचे

किसी जमाने में एक गाना बहुत चलता था, “चिट्ठियॉं हों तो हर कोई बांचे, भाग न बांच्यो जाय।’ जमाना बदला। कम्प्यूटर आए। चिट्ठियां ई-मेल हो गईं। ई-मेल एसएमएस हो गए। एसएमएस एमएमएस हो गए। इधर नेट ने ब्लॉग बनवा दिए। हर व्यक्ति को अपने दिल की भड़ास निकालने का सुनहरा अवसर मिल गया। ब्लॉगों की दुकानें सज गईं। लोग घरों की चौपाल की तरह ब्लॉगों का उपयोग करने लग गए। इधर हर छोटे-बड़े शख्स ने अपना ब्लॉग बना लिया और लोगों से अपनी यारी निभाने लगा या दुश्मनी पूरी करने लगा। फिल्मों के बेताज बादशाह अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग की मार्फत सरकार के विरुद्घ मोर्चा खोल दिया। लालू प्रसाद यादव रेल पर बैठ कर ब्लॉग लिखने लगे। शाहरुख खान और आमिर खान ने अपने-अपने ब्लॉगों के माध्यम से एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का राष्टीय कार्याम प्रारंभ कर दिया। ब्लॉगों की इस दुनिया में ह़जारों, लाखों नए लेखक, पत्रकार, कवि, कहानीकार पैदा हो गए।

हर व्यक्ति अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए एक अदद ब्लॉग बनाकर तैयार हो गया। व्यंग्यकारों ने अपनी तोपों के मुंह अखबारों से हटाकर इंटरनेट की ओर कर दिए। ब्लॉग ही ब्लॉग। हर साइट पर ब्लॉग। जो कूड़ा, कचरा, कविता, गाली, गलौज, कहीं भी स्थान न पा सके उसे ब्लॉग पर डाल दो, अश्र्लील हो तो क्या कहने? यदि सरकार के खिलाफ हो तो सोने पर सुहागा। ब्लॉगों का भारतीयों ने भारतीयकरण भी कर दिया। इसे चिट्ठीकारिता कहा जाने लगा। ब्लॉग लिखो और विरोधी खेमें के कवि, लेखक, आलोचक की धोती खींच दो। लत्ती मार दो। खुद गुलाटी खा जाओ। सब चलता है। हिन्दी ब्लॉगों की दुनिया अत्यंत विचित्र, अनोखी और घटिया है। हर लेखक अपने आपको सर्वश्रेष्ठ साबित करने में जुटा हुआ है। प्रगतिशील जनवादियों को गरिया रहे हैं, जनवादी भगवा झण्डे को कोस रहे हैं। भगवा झण्डे वाले परिमल वालों के पीछे पड़े हुए हैं। जो इन सबमें शामिल नहीं हैं, वे तो बेचारे जीतेे हुए भी मरे के समान हैं। वे लेखक ही नहीं हैं।

ब्लॉग लिखो। ब्लॉग भोगो। ब्लॉग खाओ। ब्लॉग बिछाओ। ब्लॉग पिओ। ब्लॉग को हर व्यक्ति को पढ़ना है क्योंकि ब्लॉग किस्मत नहीं है जिसे बांचा नहीं जा सकता है। ब्लॉग पीत-पत्रकारिता के ताजा उदाहरण हैं। नीली पत्रकारिता भी ब्लॉगों पर जारी है। लेकिन साहित्यिक ब्लॉगों के अलावा भी अच्छे ब्लॉग हैं जिनमें अच्छे काम हो रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इंटरनेट एक निःशुल्क माध्यम सबके लिए उपलब्ध है। ब्लॉगों पर रक्तदान किया जा सकता है। ब्लॉगों पर गंभीर बीमारियों पर चर्चा होती है। ब्लॉगों पर शहरों की साहित्य, संस्कृति, कला एवं राजनीति पर गंभीर चर्चा होती है। इसलिए ब्लॉग पढ़ें और पढ़ायें। यह भविष्य का जीवंत माध्यम है। ब्लॉग से कागज बचता है। पेड़ बचते हैं। पर्यावरण बचता है। ब्लॉग केवल भड़ास निकालने की जगह नहीं है। ब्लॉग भविष्य है और भविष्य को संवारने का आधार भी। ब्लॉग आम आदमी का माध्यम है। मैंने भी ब्लॉग पर यह रचना लिख दी, सो सनद रहे और हिन्दी साहित्य के इंटरनेटी इतिहास में वक्त जरूरत काम आए।

 

– यशवन्त कोठारी

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