भगवान बदरी का धाम

पुराण प्रसिद्घ भगवान बदरी विशाल अनादिकाल से बदरीधाम में विराजते हैं। प्राचीन काल में जैसे-जैसे हिन्दू राजा पहाड़ों की ओर बढ़ते गये, वैसे-वैसे वे अपने प्रभुत्व एवं पूर्व-स्थायित्व को बरकरार रखने के लिए श्रीबदरीनाथ जी की मूर्ति स्थापित करते गये। वे राजा श्रीबदरीनाथ जी को अपने इष्टदेव के रूप में पूजते थे। इनमें पंचबदरी प्रमुख हैं।

विशाल बदरी – आदि बदरी ही विशाल बदरी हैं। वैसे तो तिब्बत में स्थित थोलिंगमठ को आदि बदरी का मंदिर कहा जाता है। किन्तु पुराण प्रसिद्घ भगवान बदरीनाथ की आदि मूर्ति बदरीपुरी में विराजमान है। अतः जहॉं भगवान बदरी विशाल की आदि मूर्ति है, वहीं आदि यानी विशाल बदरी है।

योगध्यान बदरी-योगध्यान बदरी पाण्डुकेश्र्वर के मंदिर में विराजमान हैं। यहां भगवान् बदरीनाथ की अष्टधातु की मूर्ति है, जो अत्यंत मनोहर व आकर्षक है। इस मूर्ति के नीचे स्फटिक का शिवलिंग बताया जाता है। स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड में यह शिवलिंग पण्डीश्र्वर के नाम से प्रसिद्घ है। राजा पाण्डु ने यहां पण्डीश्र्वर महादेव की आराधना की थी। इसलिए इस स्थान का नाम पाण्डुकेश्र्वर पड़ा। कहा जाता है कि यहां शिवलिंग के ऊपर धातु का अष्टदल कमल-पत्र युक्त सिंहासन स्थापित किया गया है और सिंहासन के ऊपर भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति स्थापित कर दी गयी है। जनश्रुति है कि भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति इन्द्रलोक से उस समय लायी गयी थी, जब अर्जुन इन्द्रलोक से गंधर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे। यहॉं पूरे वर्ष दैनिक पूजा हुआ करती है। पूजा आदि के लिए बदरीनाथ मंदिर से दस्तूरात मिलते हैं। यहॉं के पुजारी सरोला डिमरी ब्राह्मण होते हैं।

भविष्य बदरी – यह स्थान जोशीमठ से उन्नीस किलोमीटर आगे नीती घाटी मार्ग पर सुभांई बदरी के नाम से प्रसिद्घ है। यहॉं मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति है। स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड के अध्याय 57 में आख्यान आया है कि घोर कलियुग के आने पर मनुष्य अल्प शतायु होने से दुर्गम-पथ पर चलने में असमर्थ हो जायेंगे, तब दयालु भगवान बदरीनारायण विष्णु प्रयाग में दूसरे द्वार (पूर्व-द्वार) से प्रवेश कर भविष्य बदरी में निवास करेंगे। पुरातन काल में अगस्त्य जी की आराधना पर भगवान विष्णु ने इस स्थान पर निवास करने का आश्र्वासन दिया था। मार्ग में तपोवन नामक स्थान पड़ता है, जहॉं उष्ण एवं शीतल जल की धारायें हैं जिनमें स्नान करने से प्राणी पापों से मुक्त हो जाते हैं। भविष्य बदरी से लगभग तीन किलोमीटर आगे लाता नन्दा देवी का प्रसिद्घ मंदिर है। यह स्थान देवी का सिद्घपीठ माना जाता है। कहा जाता है कि देवी के मंदिर में जो तलवार है, वह आकाश से गिरी हुई है।

वृद्घ बदरी – इस स्थान के लिए हेलंग चट्टी से डेढ़ मील आगे जोशीमठ की ओर चलने पर खणोटी चट्टी से मील भर नीचे गंगा नदी की ओर चलना पड़ता है। यह स्थान अणिमठ नाम से जाना जाता है। यहां लक्ष्मी नारायण की बहुत प्राचीन किन्तु दर्शनीय मूर्ति है। वृद्घ बदरी के विषय में एक कथा प्रचलित है कि एक बार देवर्षि नारद मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे थे। भ्रमण करते हुए वह बदरी धाम की ओर चले। मार्ग की विकटता को देखते हुए वह ज्योर्तिमठ के कुछ नीचे अणिमठ नामक स्थान पर विश्राम के लिए ठहर गये और भगवान बदरीनारायण के ध्यान में लीन हो गये। साधना और भक्ति को फलीभूत करने की दृष्टि से उन्होंने भगवान विष्णु से दर्शन देने की प्रार्थना की। तब भगवान बदरीनारायण ने एक वृद्घ के रूप में दर्शन देकर नारद जी को कृतार्थ किया, तब से इस स्थान का नाम “वृद्घ बदरी’ हो गया।

ध्यान बदरी – यह मंदिर उर्गम गांव में पड़ता है। यहां के लिए हेलंग चट्टी से होकर पैदल मार्ग जाता है। ध्यान बदरी के मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर कल्पेश्र्वर शिव जी का मंदिर है। ध्यान बदरी के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति है। इस स्थान पर उर्ग्व ऋषि ने तपस्या की थी, इसलिए इसका नाम उर्गम पड़ा। स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड में आख्यान आया है कि एक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर कैलाश भ्रमण पर निकले। वहॉं दुर्वासा ऋषि ने उन्हें फूल-माला भेंट की। इन्द्र ने अभिमानवश माला को हाथी के सिर पर रख दिया। दुर्वासा ऋषि ने इसे अपना अपमान समझ कर इन्द्र को शाप दे दिया कि तुम श्रीहीन हो जाओ। इन्द्र की प्रार्थना पर दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र को महादेवजी की शरण में जाने की आज्ञा दी। तब इन्द्र ने इस स्थान पर शिवजी और विष्णु की आराधना कर कल्पतरू की प्राप्ति की। तब से शिवजी यहां कल्पेश्र्वर (कल्पनाथ) महादेव के नाम से विख्यात हुए। यह स्थान बहुत शांत, एकांत एवं रमणीय है।

पंच बदरी के अतिरिक्त भगवान बदरी नारायण के कई अन्य मंदिर हैं। जैसे- कर्ण प्रयाग से आगे रानी खेत मार्ग पर आदि बदरी गांव में आदि बदरी मंदिर, टेहरी नरेश के यहॉं टेहरी में, ऋषिकेश में, नैमिषारण्य में तथा वृन्दावन के आदि बदरी मंदिर में तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को साक्षात बदरीनारायण के दर्शन कराये थे। देव प्रयाग में भी बदरीनाथ जी का मंदिर है। सहारनपुर एवं अम्बाला के बीच जगाधरी रेलवे स्टेशन से लगभग बीस किलोमीटर बस मार्ग पर चल कर तरूपुंजों के बीच भी आदि बदरी का मंदिर है। वहीं कपाल मोचन तीर्थ भी है।

– निर्विकल्प विश्र्वहृदय

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