भाई-बहन के नेह का पर्व रक्षा-बन्धन

रक्षा-बंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला भाई-बहन के स्नेह का पर्व है। भारतीय-संस्कृति में प्रत्येक पर्व एवं त्योहार के पीछे कोई न कोई कथा अवश्य होती है। रक्षा-बंधन भी इससे अछूता नहीं है। कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण से उपाय पूछा तो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इन्द्र-इन्द्राणी की कथा सुनाई, जिसके अनुसार असुरों से लगातार हारने के बाद इन्द्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इन्द्राणी ने श्रावण-मास की पूर्णिमा को इन्द्र के दाहिने हाथ पर रक्षासूत्र (रक्षाकवच) बांधा। इस रक्षासूत्र में इतना अधिक प्रताप था कि इन्द्र ने असुरों को बुरी तरह से पराजित कर दिया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से रक्षासूत्र की महत्ता बताते हुए कहा, “”रक्षासूत्र से सुसज्जित व्यक्ति के सभी रोगों का नाश होता है तथा कोई भी अशुभ शक्ति उस पर आामण नहीं कर सकती।”

भारतीय-संस्कृति में पॉंच वस्तुएँ (जल, पुष्प, अक्षत, औषधि और सूत्र) अति शुभ हैं। इनके बिना हमारा कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता है। हल्दी, कुश, दूर्वा आदि औषधि के अंतर्गत आते हैं। सूत्र के रूप में यज्ञोपवीत, कलावा, मंगलसूत्र और रक्षासूत्र आजीवन जीवन की रक्षा करते हैं। सूत्र के रेशे-रेशे में हमारी परंपरा, मर्यादा, आचरण, वचनबद्घता, पवित्रता आदि समाहित रहती है।

पुरातन काल में श्रावणी पूर्णिमा के दिन से शिक्षा का नया सत्र शुरू होता था। छात्रों को गुरुओं से रक्षासूत्र प्राप्त होता था। रक्षाबंधन से संबंधित एक किंवदंती प्रचलित है कि एक बार श्रीकृष्ण के दाहिने हाथ में चोट लग गई और रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बांध दिया, जिससे रक्त का बहना बंद हो गया। इस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को विपत्ति के समय रक्षा प्रदान करने का वचन दिया था। इस वचन का पालन श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय किया था। इसी पावन रक्षा के प्रतीक स्वरूप रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।

प्राचीन काल में यज्ञ के अवसर पर उपस्थित लोगों की कलाइयों पर एक सूत्र बांधा जाता था। यह सूत्र यज्ञ में उपस्थिति का सूचक माना जाता था, साथ ही यज्ञ से प्राप्त शक्ति का प्रतीक भी था। आज भी सत्यनारायण की कथा, यज्ञ-अनुष्ठान आदि के समय लोगों को कलावा बांधा जाता है। पहले यज्ञ के समय बांधा जाने वाला सूत्र “यज्ञ-सूत्र’ और बाद में “रक्षासूत्र’ कहलाने लगा। आज यही रक्षाबंधन या राखी के नाम से जाना जाता है।

रक्षा-बंधन पर्व को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। श्रावण के महीने में मनाये जाने के कारण इसे कहीं-कहीं श्रावणी कहते हैं। रक्षा-बंधन पर्व को महाराष्ट में श्रावणी पूर्णिमा, दक्षिण भारत में नारली पूर्णिमा, बंगाल व बिहार में गुरु पूर्णिमा, नेपाल में जने पूणे या जनेऊ पूर्णिमा आदि नामों से जाना जाता है। नाम की भिन्नता के साथ इसके मनाने की विधियों में भी कुछ विभिन्नताएँ हैं।

प्रायः रक्षा-बंधन के अवसर पर बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं और मिठाई खिलाती हैं। बदले में भाई बहनों को उपहार देकर आजीवन रक्षा करने का वचन देते हैं। गुजरात में इसके अलावा गरबा नृत्य एवं नाटकों का मंचन भी होता है। बिहार और बंगाल में रक्षाबंधन को राखी बांधने के अलावा गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने गुरुओं को घर पर आमंत्रित करके उन्हें भोजनादि करवाते हैं और दक्षिणा के रूप में धन, वस्त्र इत्यादि देते हैं।

दक्षिण भारत में इस दिन लोग निराहार व्रत रहते हैं तथा सवा लाख गायत्री मंत्र का जाप करते हैं, तदुपरांत ब्राह्मणों से नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। सायंकाल विविध पकवान ग्रहण कर उपवास का समापन करते हैं। रात्रि में नृत्य, संगीत, नाटक आदि का आयोजन होता है। वैसे इस दिन सम्पूर्ण हिन्दुओं में नया यज्ञोपवीत धारण करने की परंपरा है।

नेपाल में इस दिन पवित्र नदियों, सरोवरों में नहाकर पुरुषगण नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन पंडित या ब्राह्मण घर-घर जाकर परिवार के सभी सदस्यों को राखी बांधते हैं और भेंट स्वीकार करते हैं। इस परंपरा के संबंध में कहा जाता है कि जब सम्पूर्ण सृष्टि में अनैतिकता, अधर्म, अनाचार का बोलबाला था, तब ब्रह्माजी पृथ्वी पर आये और उन्होंने ब्राह्मणों को धर्म की रक्षा हेतु पवित्र रक्षासूत्र सभी जनों को बांधने का आदेश दिया, ताकि लोग अच्छाइयों की ओर चलें।

रक्षा-बंधन के दिन अमरनाथ धाम में विशेष पूजा-अर्चना के साथ स्वनिर्मित हिमशिवलिंग के दर्शनार्थ की गई अमरनाथ-यात्रा का समापन किया जाता है। यद्यपि रक्षा-बंधन हिन्दुओं का पर्व है, किन्तु लाखों की संख्या में मुस्लिम बहनें हिन्दू भाइयों को तथा हिन्दू बहनें मुस्लिम भाइयों को राखी बांधती हैं, अतः रक्षा-बंधन राष्टीय एकता का भी पर्व है।

– निर्विकल्प विश्र्वहृदय

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