भागनगर की कीर्तिगाथा

वो जिसे चार मीनार कहते हैं, एक चौकोर भवन है, जो हर तरफ से दस फैदम (एक फैदम 6 फुट) चौड़ा और लगभग सात फैदम ऊंचा है। ये चारों ओर से, चार मेहराबों से खुला हुआ है, जो चार या पांच फैदम ऊंची और चार फैदम चौड़ी हैं और हर एक मेहराब के सामने सड़क है, जिसकी चौड़ाई मेहराब जितनी है। यहां पर एक दूसरे के ऊपर दो गैलरियॉं हैं, और इन सबके ऊपर छत है, जिसके किनारों पर पत्थर की बनी हुई बालकनी और भवन का प्रत्येक कोना एक दशकोणीय मीनार है, जो लगभग दस फैदम ऊंचा है, और हर मीनार में चार गैलरियॉं हैं, जिनके बाहर छोटी मेहराबे हैं। पूरा भवन सुंदर और बेहतरीन कटाव वाले गुलाबों और झालरों सेें सजा हुआ है। यह एक गुम्बद की तरह दिखाई देता है, जिसके अन्दर चारों तरफ पत्थरों के जंगले लगे हैं और बाहर की तरफ गैलरी की तरह खुले हैं। प्रवेश करने के लिये दीवारों में अनेकों दरवाजे हैं।

इस गुम्बद के नीचे दीवान के ऊपर एक बड़ी शिला रखी हुई है, जो जमीन से लगभग सात से आठ फुट ऊंची है, जिस तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ी है। भवन की सभी गैलरियॉं पानी को ऊपर उठाने का काम करती हैं, ताकि उसके बाद वे राजा के महल तक पहुंचाया जा सके और शायद उसके बाद सबसे ऊंचे कोष्ठ तक भी पहुंच सके। इस शहर में इस भवन के बाहरी हिस्से जितना खूबसूरत और कुछ भी नहीं है, हालांकि इसके चारों तरफ भद्दी दुकानें हैं, जो कि घास-फूंस से ढकी लकड़ी से बनी हुई हैं, जहां पर फल बेचे जाते हैं, जो पूरे परिदृष्य को खराब करते हैं।

भागनगर में भारतीय व्यापारियों के अतिरिक्त अनेकों इरानी और आर्मेनियन भी हैं, लेकिन सरकार की कमजोरी के चलते कभी-कभी कुलीन लोग इनका शोषण करते हैं, और जब मैं वहॉं था, एक कुलीन ने एक परदेसी महाजन को अपने घर में बन्दी बना कर उससे जबरदस्ती पॉंच हजार रुपये हथिया लिये। इस घटना की खबर मिलने पर, महाजनों ने हड़ताल कर दी। राजा ने उस महाजन को सभी कुछ वापस करने का आदेश दिया, और इस प्रकार मामला रफा-दफा हो गया।

शहर के व्यापारी और जमीन जोतने वाले, इस देश के मूल निवासी हैं। इस साम्राज्य में काफी घुसपैठिये भी हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर पुर्तगाली हैं, जो अपने अपराधों के कारण अपने देश से भाग आए हैं। अंग्रेज और डच भी यहां आकर बस गए हैं। डच काफी मुनाफा भी कमा रहे हैं। उन्होंने यहां तीन वर्ष पहले एक फैक्टी की भी स्थापना की है, जहां वह कम्पनी के लिए हर प्रकार का कपड़ा खरीदते हैं, जो वे इंडीज के दूसरे देशों में जाकर बेचते हैं। मसुलीपट्टम से वे बैल पर लाद कर वे वस्तुएं लाते थे, जिनकी भागनगर में तथा राज्य के दूसरे नगरों में बहुत अच्छी मॉंग होती है, मसलन- लौंग, काली मिर्च, दालचीनी, चांदी, तॉंबा, टीन और जस्ता, और इस प्रकार बहुत लाभ कमाते हैं। मुझे विश्र्वास है कि वे सालाना ग्यारह या बारह सौ ाांसीसी लीरा लाभ कमाते हैं। देश में उनका स्वागत किया जाता है, क्योंकि वे कई प्रकार के आयोजन करते हैं और भागनगर से मेरे आने के कुछ दिन पहले, वरिष्ठ अधिकारी के आदेशानुसार नगर का मुखिया बड़ी धूम-धाम और बैंड-बाजे और पताका लहराता हुआ निकलता।

राज्य में वेश्याओं को मान्यता प्राप्त होने के कारण, किसी पुरुष का उनके घर जाना बुरा नहीं समझा जाता है, और वे प्रायः अपने घर के सामने ग्राहकों को आकर्ंिर्षत करने के लिये सज-धज कर बैठती हैं। कहा जाता है कि उनमें से अधिकांश रोगग्रस्त हैं। सामान्य जन अपनी पत्नियों को काफी छूट देते हैं: जब किसी व्यक्ति का विवाह होता है, तो दुल्हन के माता-पिता उससे वायदा करवाते हैं कि वह अपनी पत्नी के शहर जाने और घूमने-फिरने, पड़ोसियों से मिलने जाने का बुरा नहीं मानेगा, और गोलकुंडावासी भारतीयों में अत्यंत लोकप्रिय पेय ताड़ी पीने के लिये भी मना नहीं करेगा।

भागनगर या किसी और स्थान पर चोरी होने पर, दंड के रूप में चोर के दोनों हाथ काट दिये जाते हैं, इंडीज के अधिकांश देशों में यही चलन है।

एक और ाांसवासी दोमियस बारथलेमी कैरे डी चैम्बें था। उसका जन्म 1639 के आस-पास हुआ था, उसके जीवन तथा उसकी मृत्यु के विषय में अधिक जानकारी नहीं है। वह एक पादरी था इसलिए ज्यादातर “ऐब्बे कैरे’ के नाम से जाना जाता था।

14 मार्च, 1673 में वह भागनगर आया। उसने दो नगरों-गोलकोन्डा और भागनगर की बात की है। भागनगर की यात्रा के दौरान वह किले में पुर्तगाली पादरी के साथ रहा। उसने अपने जर्नल में लिखा :

“”मैंने भागनगर के बड़े शहर का भी दौरा किया, जहां मैं खुल कर घूम सका, क्योंकि यह काफी बड़ा शहर है, जो सपाट इलाके में स्थित है। एक उत्तम नदी से इसकी पानी की आपूर्ति होती है। ये शहर इतने अजनबियों और व्यापारियों से भरा हुआ है कि यहां पर बिना किसी या विशेष व्यवसाय के भी विदेशियों द्वारा कारोबार किया जाता है। यहां पर हर प्रकार के लोगों, व्यापार और धन की भरमार है कि यह पूर्व के व्यवसाय का केन्द्र लगता है।”

(शेष अगले रविवार)

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