मुक्तक – नरेन्द्र राय

अगर इन्सान है तो वो फ़सादी हो नहीं सकता,

वो कत्लो खून का, दहशत का आदी हो नहीं सकता।

अगर कुरआन का, इस्लाम का है मानने वाला,

मुसलमॉं है अगर, आतंकवादी हो नहीं सकता ।।

शहीदों का उड़ा रही है ये सरकार म़जाक,

सुनकर समाचार कट गई है वीरों की नाक ।

बिन्द्रा ने निशाना लगाया, उसको कई करोड़,

देश की खातिर बना निशाना बस उसको दस लाख ।।

बिन रेखाओं रंगों के तस्वीर नहीं बनती,

बिन लोहे पर चोट पड़े, शमशीर नहीं बनती।

मंदिर, दऱगाहों पर चाहे जितना सिर पटको,

बिना परिश्रम के यारों, त़कदीर नहीं बनती ।।

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