रामेश्वर

रामेश्र्वरम स्थित रामनाथ स्वामी मंदिर भारत के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक यह मंदिर तीर्थयात्रा का विशेष स्थान माना जाता है। बनारस स्थित मंदिर की तरह यह भी पवित्र स्थलों में गिना जाता है। यह मंदिर रामायण और भगवान राम की विजय से भी जुड़ा है। इस विशाल मंदिर के बड़े-बड़े गलियारे, लंबे बुर्ज और 36 तीर्थम प्रसिद्घ हैं।

एक किंवदन्ती के अनुसार इसी जगह भगवान राम ने भगवान शिव की पूजा की थी। उस समय वे अयोध्या लौट रहे थे। इस शिवलिंग को श्रीराम की अर्धांगिनी सीता ने बनाया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने विश्र्वनाथ का प्रतिरूप लाने के लिए हनुमान जी को बनारस भेजा था। किन्तु उन्हें लगा कि, शायद हनुमान जी को लौटने में देर हो जाएगी। पूजा का शुभ समय न बीत जाये, इसीलिए उन्होंने शिवलिंग बना कर पूजा करनी शुरू कर दी। इस शिवलिंग को “रामलिंगम’ भी कहा जाता है। जब हनुमान जी बनारस से दूसरा शिवलिंग लेकर लौटे तो भगवान राम ने उसकी भी स्थापना की और उसे “विश्र्वनाथ’ कहा गया। इस शिवलिंग को “काशीलिंगम’ और “हनुमानलिंगम’ भी कहा जाता है। भगवान राम ने हनुमान जी को यह आशीर्वाद दिया कि जब तक रामेश्र्वरम् मंदिर में इस विश्र्वनाथ शिवलिंग की पूजा पहले नहीं की जाएगी, तब तक रामनाथ स्वामी की पूजा अधूरी मानी जाएगी। तब से विश्र्वनाथ शिवलिंग की पूजा रामनाथ स्वामी की आराधना से पहले की जाती है। माना जाता है कि इस मंदिर का छप्परनुमा आकार 12वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया है। इस मंदिर की इमारत का ढांचा पहली बार श्रीलंका के पराामबाहु ने बनाया था। बाकी मंदिर का निर्माण रामनाथपुरम के राजा ने कराया। 12वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक इस मंदिर में कुछ न कुछ नया बनता रहा है।

सिर्फ इस मंदिर का लंबा गलियारा 18वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया। रामनाथपुरम, मैसूर और पुड्डुकोडई के राजाओं ने इस मंदिर का संरक्षण किया। पंद्रह एकड़ में फैला यह मंदिर काफी विशाल है। बड़ा गोपुरम, अखण्डित दीवारें और नंदी की मूर्ति इस मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं। चार हजार फीट लंबा गलियारा है, जिसमें चार हजार खंभे लगे हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का गलियारा पूरी दुनिया में सबसे विशाल है। इस गलियारे की सबसे बड़ी विशेषता इसमें प्रयोग किये गये पत्थर की है, जिसे तमिलनाडु के समुद्र के किनारे से लाया गया था। पूर्व स्थित राजगोपुरम जिसकी ऊँचाई लगभग 126 फीट है और यह करीब 9 तले का है। जबकि पश्र्चिमी राजगोपुरम इससे ऊँचा नहीं है। यहां विराजमान नंदी 18 फीट लंबे और 22 फीट चौड़े हैं। यहां मौजूद गंधमदन पर्वत भी इसलिए मशहूर है, क्योंकि इस पर भगवान श्रीराम के चरणों के निशान हैं, जिसकी पूजा की जाती है। लगभग 36 तीर्थम यहां पर हैं, जिनमें से 22 मंदिर के अंदर हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चमत्कारिक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी में नहाने के बाद सभी रोग-कष्ट दूर हो जाते हैं। अग्नि तीर्थम जहां समुद्र का माना जाता है, वहीं कोटी तीर्थम मंदिर का अपना तीर्थम है, जो मंदिर के अंदर है। इस मंदिर में हिंदू वार्षिक ब्रह्मोत्सव मनाते हैं। तमिल महीने के हिसाब से आदी (जुलाई-अगस्त) और मसा (फरवरी-मार्च) महीने में यह उत्सव मनाया जाता है।

दूसरा उत्सव भगवान श्रीराम को पूरी तरह समर्पित है, जो जून-जुलाई में मनाया जाता है। अपने में कई कथाओं को समेटे रामेश्र्वरम् का यह विशाल मंदिर देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करता है। यही कारण है कि हर साल हजारों श्रद्घालु यहॉं प्रभु राम के चरणों को छू कर धन्य हो जाते हैं।

– ईशा

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