विनय न मानत जलधि जड़…

पंद्रह अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में स्पष्ट तौर पर यह उल्लेख किया कि भारत के खिलाफ दहशतगर्दी के जारी रहते भारत और पाकिस्तान के बीच न सामान्य स्थिति बहाल हो सकती है और न ही मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित किये जा सकते हैं। एक दिन पहले महामहिम राष्टपति प्रतिभा पाटिल ने भी अपने भाषण में कमोबेश यही बातें दुहराई थीं। महामहिम राष्टपति हों या प्रधानमंत्री, उनके इस वक्तव्य से किसी को किसी प्रकार की असहमति नहीं हो सकती है। लेकिन यह सवाल तो उठाया ही जा सकता है कि ऐसा किया क्यों नहीं जा रहा है? हम दशकों से यह बात कहते आ रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर सहित देश के किसी भी हिस्से में घटित होने वाली आतंकी घटना के पीछे पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ ़जरूर होता है। वह बाकायदा भारत के खिलाफ अपनी जमीन पर आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण शिविर चलाता है। आतंकवादियों को आर्थिक मदद के साथ ही आधुनिकतम हथियारों से लैस भी करता है। भारत द्वारा विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत किये गये इस बाबत सबूतों को वह यह कह कर नकारता आया है कि ये आरोप अनर्गल, झूठे और उसे बदनाम करने की सा़िजश के तहत लगाये जा रहे हैं। जहॉं तक कश्मीर का सवाल है, तो वहॉं घटित होने वाली आतंकवादी घटनाओं के संबंध में उसका एक ही रटा-रटाया जवाब है कि यह कश्मीर की आ़जादी के लिए संघर्ष कर रहे मुजाहिदीनों का काम है, जिन्हें पाकिस्तान सिर्फ अपना नैतिक समर्थन भर देता है। ग़जब तो यह है कि उसने भारत से वादा भी किया है कि वह अपनी जमीन से दहशतगर्दों को भारत के खिलाफ आतंकी कार्यवाही नहीं करने देगा।

उसका यह वादा आज का नहीं है, बल्कि दशकों पुराना है। प्रधानमंत्री ने भी यह बात कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी कार्यवाहियों के जारी रहते शांति प्रिाया के तहत बातचीत करते रहने का कोई अर्थ नहीं है, पहली बार नहीं कही है। यह बात भी लगातार दुहराई जाती रही है। फिर सवाल यह उठता है कि अगर हम समझते हैं कि शांति प्रिाया की कवायद अर्थहीन है, तो हम पाकिस्तान को अंतिम रूप से दो-टूक यह क्यों नहीं कह सकते कि जब तक भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियॉं जारी रहेंगी और वह इन्हें रोकने के संबंध में अपना वादा पूरा नहीं करेगा, तब तक हम किसी मसले पर उससे बातचीत नहीं करेंगे। मुंबई टेन बम-ब्लास्ट के बाद प्रधानमंत्री ने यह कदम उठाया भी था, लेकिन दो महीने बाद बातचीत की कवायद फिर शुरू हो गई। सवाल प्रधानमंत्री से यह भी किया जा सकता है कि उन्हें इस तरह का सख्त कदम उठाने से रोकता कौन है? बार-बार पाकिस्तान के प्रति वे जो सदाशयता का प्रदर्शन करते हैं क्या पाकिस्तान उसकी कीमत रत्ती बराबर भी समझता है?

पाकिस्तान कितनी भी साफ-सफाई दे, उसकी असलियत दुनिया के सामने खुल चुकी है। आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में भले ही अमेरिका ने उसे अपना बगलगीर बना रखा हो, लेकिन उसने भी पाकिस्तान की विश्र्वसनीयता को हमेशा शक के घेरे में रखा है। विश्र्व समुदाय इस बात से भली-भॉंति अवगत हो गया है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में आतंकवादी घटना घटित हो उसके तार कहीं न कहीं से आकर पाकिस्तान से ़जरूर जुड़ जाते हैं। रहा भारत का सवाल, तो उसके प्रति पाकिस्तान की अन्तहीन घृणा हमेशा से उसकी राजनीति के केन्द्र में रही है। कहा तो यह भी जा सकता है कि यह वही घृणा है जिसने अखण्ड भारत को खण्डशः विभाजित कर पाकिस्तान को जन्म दिया है। सही अर्थों में घृणा वह बीज है जिससे पाकिस्तान नाम का वृक्ष पैदा हुआ है। इसलिए प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि पाकिस्तान को सदाशयता का अमृत नहीं पिलाया जा सकता। हमारा अमृत भी उसके हलक तक पहुँचते-पहुँचते विष बन जाएगा। अलावा इसके वह भारत के साथ लड़े गये चार-चार युद्घों के पराजय का दंश भी भूल पाने की स्थिति में नहीं है। वह इस पराजय-बोध की पीड़ा से ग्रस्त है कि भारत ने उसके व़जूद को तोड़ा है। अतः वह भारत को भी तोड़ने की हर संभव कोशिश से बाज नहीं आ सकता। वह हमसे बांग्लादेश का बदला चुकता करना चाहता है। वह यह भी जानता है कि प्रत्यक्ष युद्घ में ऐसा कर पाना असंभव है, इसलिए वह भारत के खिलाफ माया-युद्घ लड़ रहा है।

यह लड़ाई ठीक इतिहास में वर्णित शिवाजी और अफजल खॉं के प्रकरण जैसी है। पाकिस्तान का व्यवहार तो अफजल खॉं जैसा साफ समझ में आता है लेकिन भारत का व्यवहार शिवाजी जैसा कत्तई नहीं है। पाकिस्तान हर हाल अफजल खॉं की तरह भारत को गले लगाकर पीठ में छुरा घोंप देना चाहता है। मगर भारत अपनी सदाशयता के नशे में विभोर उसकी चिकनी-चुपड़ी को यथार्थ मान बैठा है। वह द़गा पर द़गा किये जा रहा है और हम वफ़ा पर वफ़ा किये जा रहे हैं। उससे गले मिलने को मना कोई नहीं कर सकता, ़खूब मिलना चाहिए और पूरी फरा़गदिली के साथ मिलना चाहिए। मगर हमारे गले मिलने की तैयारी छत्रपति शिवाजी की तरह होनी चाहिए। यह कि “बच्चू, हमें पता है कि तुम अपनी बे़जा फितरत से बाज नहीं आने वाले, अतः हम तुम्हारे छुरा घोंपने के पहले ही अपने बघनखे से तुम्हारी अंतड़ियॉं खींच कर बाहर कर देंगे।’

इसमें कोई दो राय नहीं कि सदाशयता सबसे बड़ा मूल्य है। वह हमारी संस्कृति की पहचान भी है। हम उस मार्ग से हट भी नहीं सकते। लेकिन सदाशयता यह नहीं कहती कि कोई तुम्हारी विनम्रता को तुम्हारी कमजोरी माने, तुम्हारी ताकत को केंचुआ समझे और तुम सक्षम होते हुए भी उसकी दुष्टता का प्रतिकार न करो। सदाशयता का व्यवहार एक सीमा तक उचित है। सीमा के बाद यह कमजोरी का लक्षण बन जाता है। नीति तो यही कहती है कि “शठ’ के साथ विनय और “कुटिल’ के साथ प्रीति नहीं की जा सकती। लेकिन पाकिस्तान के साथ हमारी अब तक की नीति यही रही है। जबकि उसने हमारी सदाशयता को, हमारी विनम्रता को और हमारे मैत्रीभाव को कभी कोई तरजीह नहीं दी। दहशतगर्दी के साथ हम बहुत आसानी से निपट सकते हैं। बस, हमारे भीतर भगवान राम जैसा कोई संकल्प विकसित होना चाहिए। हमें याद रखना होगा कि पौराणिक काल में आतंकवाद के खिलाफ पहली लड़ाई राम ने लड़ी थी और इस युद्घ के लिए जो संकल्प उनके मन में जगा था, वह कितना प्रचण्ड था इसे मानस की इस उक्ति से समझा जा सकता है – “निशिचरहीन करउँ महि, भुज उठाई प्रण कीन्ह।’

पाकिस्तान यह जान गया है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले इस देश के पास प्रतिरोध की शक्ति नहीं है। उसका इस तरह सोचना सही है या गलत, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन शीर्ष स्तर पर संचालित होने वाली हमारी नीतियों ने ही इस तरह की धारणा बनाने में उसकी मदद की है। उसे पता है कि एक अरब से ऊपर की जनसंख्या वाला देश वस्तुतः कितने खानों और हिस्सों में विभाजित है। उसकी हर चोट हमारे खिलाफ उसी विभाजन रेखा पर पड़ती है। इसी चोट के चलते उसने एक विभाजन रेखा खींच कर पूर्व में एक बार देश का विभाजन करवाया था। यह उसकी ़गलतफहमी भी हो सकती है और ़खुशफहमी भी कि वह सोचता है कि वह लगातार चोटें करके भारत की एकता और अखंडता को टूक-टूक बिखेर सकता है। हमें उसका इस तरह सोचना नागवार भले गुजरे लेकिन अगर हम आत्म-विश्र्लेषण की थोड़ी हिम्मत जुटायें तो हमें भी कहना पड़ेगा कि वह हमारे बारे में गलत नहीं सोच रहा है। हम विभाजित हैं और हर स्तर पर विभाजित हैं। इसीलिए हम कमजोर भी हैं।

पाकिस्तान हमारे मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। उसकी हालत शेर के सामने मेमने जैसी है। इसे डींग हांकना भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसा हम कई बार साबित कर चुके हैं। लेकिन जब शेर ही अपने को मेमना समझने लगे तो उसका उपचार करना कठिन है। पाकिस्तान ताकतवर नहीं है, दरअसल भारत की यही कमजोरी उसकी ताकत बन गई है। भारत अगर वह शेर होता तो देश के प्रधानमंत्री को बार-बार उसके सामने मिमियाने की ़जरूरत नहीं पड़ती, वह सिंह की तरह एक बार दहाड़ता और फिर पाकिस्तान को अपने सारे ़खतरनाक मंसूबों के साथ किसी गुफा-़खोह में शरण लेनी पड़ती। बार-बार प्रधानमंत्री को यह कहने की आ़िखर क्या ़जरूरत है कि अगर पाकिस्तान दहशतगर्दी पर लगाम नहीं लगाता तो शांति प्रिाया बाधित हो सकती है। क्या उनके इतना कहने से वह दहशतगर्दी से अपने को अलग कर लेगा? उसकी कूटनीति ही यही है कि अपनी चिकनी-चुपड़ी से अपने को मासूम बताकर वह हमारे ़िखलाफ आतंकवाद का खूनी खेल भी खेलता रहे और हमें एक बेनतीजा शांति प्रिाया के दौर में भी उलझाये रहे।

इस स्थिति में यह कयास लगाना गलत नहीं होगा कि अगले पंद्रह अगस्त को भी लाल किले से आतंकवाद को लेकर इसी तरह के विलाप का प्रसारण हो। कयास इस अर्थ में भी ़गलत नहीं होगा कि लाल किले की गवाही में ये बातें बार-बार दुहराई गई हैं। पाकिस्तान को इस तरह की चेतावनी देते रहना अब एक रस्म अदायगी हो गई है। क्या इसका अर्थ वह यह नहीं लगाता होगा कि यह सिर्फ कहेंगे, करेंगे कुछ नहीं। इस तरह के वक्तव्यों से न आतंकवाद रुकने वाला है और न शांति प्रिाया रुकने वाली है। हम तो उस दिन भी नहीं चेते थे जिस दिन हमारे इस विशाल देश की अस्मिता को रौंदते हुए हमारी संसद पर आतंकवादी हमला किया गया था। वह एक महत्वपूर्ण क्षण था जब हमें जाग जाना चाहिये था और सन्नद्घ होकर पूरी ताकत के साथ इसका प्रतिकार करना चाहिए था। क्योंकि वह हमला, हमला भर नहीं था। वह हमारे व़जूद को भुनगा साबित करने की कोशिश थी। हमने उस समय भी ऐसी ही चेतावनी की भाषा, बल्कि इससे भी कुछ कठिन और तल़्ख भाषा का इस्तेमाल किया था। लेकिन सीमा पर एक साल से अधिक फौज तैनात करने के बावजूद हम कुछ नहीं कर सके थे। जबकि हम जानते हैं कि पाकिस्तान को पस्त-हिम्मत करने के लिए बहुत कुछ करने की ़जरूरत नहीं है। सिर्फ एक दहाड़ की ़जरूरत है, वह ़खुद अपने छिपने की जगह तलाश लेगा।

 

– रामजी सिंह “उदयन’

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