समय की मांग – दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति

सीमा पार के देश द्वारा भारत के विरुद्घ छेड़े गए अघोषित युद्घ के रूप में आतंकवादी जब चाहते हैं, जहॉं चाहते हैं, जैसे चाहते हैं, विध्वंसक घटनाओं को अंजाम देकर सैकड़ों लोगों की जीवन लीला समाप्त कर देते हैं एवं सैकड़ों लोगों को घायल कर देते हैं। घटना के पश्र्चात हमारे देश की सरकार एकदम सोते से जागकर “”आतंकवाद से कड़ा मुकाबला किया जाएगा” कहकर जनता से शान्ति एवं सौहार्द बनाए रखने की अपील जारी करके, अगली घटना तक के लिए न जाने कहॉं चली जाती है? 12 वर्ष की आतंकी हरकतों के दौर में रही सरकारों ने आतंकवाद से मुकाबला करने हेतु ऐसी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का प्रगटीकरण नहीं किया जिस पर जनता विश्र्वास करे।

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के ताज ओबेरॉय व नरीमन हाउस आदि स्थानों पर आत्मघाती हमले में 187 लोग- जिनमें 20 विदेशी, 20 सुरक्षाबलों के जवान थे- की जीवनलीला समाप्त हो गई। वे अकाल मृत्यु के आगोश में धकेल दिये गये। हताहत लोगों में, मुम्बई की संस्कृति में ताने-बाने के रूप में एक-दूसरे के साथ बिंध गए वहॉं के सभी धर्म एवं संस्कृति को मानने वाले लोग हैं। मुम्बई में तीन रातों एवं दो दिन में खून से लाल कर दी गई ़जमीन पर पड़े खून से पहचान करके क्या बताया जा सकता है कि इसमें हिन्दू, मुसलमान, मराठी और ़गैर मराठी, महिला-पुरुष व बच्चों, गरीब-अमीर का खून कौन-सा है?

इस मुम्बई ने 1993 में सीरियल बम विस्फोटों तथा 2006 में लोकल टेन एवं रेलवे स्टेशनों पर श्रृंखलाबद्घ बम विस्फोटों द्वारा किया गया हमला भी झेला है। आतंकवाद को रोकने हेतु जिस मकोका कानून का कवच केन्द्र सरकार, महाराष्ट सरकार को दिए हुए है, उसको प्राप्त करनेे की लाइन में खड़े राजस्थान, गुजरात एवं कर्नाटक प्रदेशों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। आतंकवाद का सामना करने हेतु भाजपा जब पोटा जैसा कानून बनाने की बात करती है, तो उसे सिरे से नकार दिया जाता है। केन्द्रीय सरकार द्वारा जोर-शोर से प्रचारित फेडरल जॉंच एजेंसी न जाने कब तक मूल रूप में सामने आएगी? एक बात साफ तौर पर समझ लेनी चाहिए कि जिस कानून में सभी राज्यों की सहमति हो, वही परवान चढ़ पाएगा। अभी तक प्राप्त संकेत यही कहते हैं कि उक्त कानून से कई राज्य सरकारें आशंकित हैं।

मुम्बई आतंकी घटना के पश्र्चात सरकार पर दबाव है कि आतंकवाद का सामना करने हेतु वह कड़े व प्रभावी कदम उठाए।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि दहशतगर्दों को सहयोग करने वालों के प्रति कठोर कदम उठाए जाएँगे। आतंकवाद पर काबू पाने हेतु स्वीकृत फेडरल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी का गठन किया जाएगा,जिसके माध्यम से केन्द्र सीधी व प्रभावी कार्यवाही करेगा। चारों महानगरों- दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता व चेन्नई में एन.एस.जी. के केन्द्र स्थापित किए जाएँगे। आतंकवादी घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने के साथ ही पूर्वानुमान एवं प्राप्त सूचनाओं को गंभीरता से न लेने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल एवं महाराष्ट के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख एवं गृहमंत्री आर. आर. पाटिल को हटा दिया गया है। पर ध्यान रहे, यदि चाल नहीं बदली तो चेहरे बदलने से अपेक्षित परिणाम नहीं आएँगे। वहीं अधिकारी संवर्ग को छेड़ा नहीं गया है। इससे ऐसा जान पड़ता है कि ब्यूरोोट संवर्ग को केन्द्रीय सरकार नाराज नहीं करना चाहती, क्योंकि लोकसभा चुनावों का सामना करना है। फेडरल एजेंसी के कार्य में राज्य सरकारें हस्तक्षेप नहीं कर सकेंगी, वहीं केंद्र की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने वाली सरकारों के सिर पर तलवार लटकती रहेगी।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन देश की राजधानी दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर आतंकवादियों ने सितम्बर माह में श्रृंखलाबद्घ बम विस्फोट करके सीधी चुनौती दी थी। उसी समय फेडरल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के गठन की जोर-शोर से घोषणा के साथ ही राष्टीय सुरक्षा कानून के प्रावधानों को और अधिक कड़ा करने की घोषणा की गई थी, किन्तु दो माह तक ठण्डे बस्ते में पड़े रहे प्रस्तावों पर पुनः तब ध्यान दिया गया जब मुम्बई काण्ड घट गया। इससे प्रतीत होता है कि आतंकवाद का सामना करने हेतु केन्द्रीय सरकार में दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है।

वर्तमान हमले के पश्र्चात कांग्रेस ने आम जनता के मध्य संदेश प्रेषित किया कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कड़ा रुख अपनाया है। अब आतंकवादी घटनाएँ सहन नहीं की जाएँगी। उक्त राजनीतिक निर्णय भी उन्हीं के निर्देश पर लिये गये हैं। देश के आतंकवाद प्रभावित राज्यों में से केवल महाराष्ट एवं असम में कांग्रेस सरकारें हैं, शेष में भाजपा या सहयोगी दलों की सरकारें हैं। फेडरल एजेंसी पर सरकारें असहमति व्यक्त करती हैं तो, और नहीं करती हैं तब भी, उनके सामने विषम परिस्थिति खड़ी हो जाएगी- जिसका राजनीतिक लाभ केन्द्रीय सरकार अवश्य उठाएगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। उस पर भी इस बात की गारंटी किसके पास है कि आतंकवाद को समाप्त करने हेतु केन्द्रीय सरकार अब निर्णायक संघर्ष प्रारंभ करके ही दम लेगी।

पाकिस्तानी एजेंसी आई.एस.आई. प्रेरित आतंकवादी घटनाओं के माध्यम से भारत सरकार पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने में अभी तक सफल नहीं हो पाई है। मुम्बई हमलों में आतंकवादियों के हवाले से प्राप्त प्रमाणों को विश्र्व बिरादरी के सामने रख कर, पाकिस्तान को अपनी ़जमीन से संचालित होने वाली हरकतों पर लगाम लगाने हेतु मजबूर किया जा सकता है। पाकिस्तानी राष्टपति ़जरदारी ने पहले आई.एस.आई. चीफ को भेजने से इन्कार करने के साथ ही भारत द्वारा आतंकवादी घोषित लोगों को सौंपने की बात पर पानी फेर दिया। हद तो तब हो गई जब अनेक स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद आतंकी वारदात में लिप्त जिन्दा व मृतकों के पाकिस्तानी होने पर प्रश्र्न्न चिह्न खड़ा कर दिया गया। फिर भी हमारे देश के कर्णधार नेता न जाने क्यों प्रभावी कार्यवाही करने में विलम्ब कर रहे हैं?

आतंकवाद के उन्मूलन हेतु प्रभावी कठोर कार्यवाही किस प्रकार हो और जीवंत लोगों के हाथ में हो, तो याद आता है पंजाब का वह आतंकवादी दौर- जब खालिस्तान के नाम पर एक भाई (केशधारी) दूसरे भाई की जान लेने पर उतारू थे। तब के.पी.एस. गिल जैसे व्यक्ति को कमान सौंपी गई थी, जिसने आतंकवाद को ऐसा समाप्त किया कि पंजाब में अभी तक अमन-चैन कायम है। के.पी.एस. गिल का मुम्बई बम विस्फोटों के संदर्भ में कहना है कि पूर्व सूचना होने के बावजूद उसका सामना करने हेतु रणनीति कमजोर थी, जिस पर भी ठीक से अमल नहीं किया गया। चंद आतंकवादियों को निपटाने में 60 घण्टे लग गए। जब खुफिया एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को आगाह किया था, तो पुख्ता इंत़जाम करने चाहिएं थे।

पिछले कई वर्षों से आतंकी हमले होते रहे हैं, उसके बाद भी ऐसी लापरवाही बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। ताज सहित अन्य होटलों पर सुरक्षाबलों के दस-दस जवान भी तैनात होते, तो इतनी आसानी से आतंकवादी उनमें प्रवेश नहीं कर सकते थे। प्रत्येक हमले के पश्र्चात कठोर कदम उठाने का दावा किया जाता है, किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की जाती। परिणामस्वरूप नतीजा शून्य आता है। राष्टीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत का कहना है कि आतंकवाद के खात्मे हेतु कठोर कदम उठाने चाहिएं, जिसमें राजनीतिक दखल न तो करना चाहिए और न स्वीकार करना चाहिए। उक्त कार्य का अपने राजनीतिक हितों को दरकिनार करके एकजुट होकर समर्थन करना होगा। पहले राष्ट, उसके बाद राजनीति का स्थान मानना होगा।

जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि भारत आतंकवाद के सामने झुकेगा नहीं, बल्कि कड़ा जवाब देगा। समीपवर्ती देश उनकी सरकार के मैत्रीपूर्ण संबंधों की पहल को कमजोरी नहीं समझे। आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता है, जिनका हम डटकर मुकाबला करेंगे। रक्षामंत्री ए. के. एन्टोनी ने सेना की तीनों कमान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करके आतंकवाद को शिकस्त देने हेतु विचार-विमर्श किया है, वहीं अमेरिकी विदेश-मंत्री कोंडालिसा राईस ने प्रधानमंत्री, गृह-मंत्री, विदेश-मंत्री व रक्षा-मंत्री एवं नेता विरोधी दल लालकृष्ण आडवाणी के साथ भेंट करने के पश्र्चात आतंकवाद के विरुद्घ हर प्रकार का सहयोग देने का वायदा किया। साथ ही पाकिस्तान जाकर उसे भी सचेत किया कि वह मुम्बई हमले के दोषियों के विरुद्घ कार्यवाही करे।

आज समय की आवश्यकता है कि अंतर्राष्टीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों को जारी रखते हुए, विश्र्व बिरादरी की देख-रेख में, भारत की सीमा के समीप पाकिस्तान की शह पर चल रहे प्रशिक्षण शिविरों को ध्वस्त किया जाए। पाकिस्तान का प्रस्ताव- कि “संयुक्त जॉंच दल बनाया जाए’- एक म़जाक है। पाकिस्तान ने मुंबई हमले के आरोपी लोगों को किसी अन्य देश के बाशिन्दे बताकर पल्ला झाड़ लिया है।

भारत सरकार को अपने बलबूते पर आतंकवादियों के मंसूबों को ध्वस्त करने हेतु निश्र्चय करना होगा और इसके लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

 

– रवीन्द्र मोहन यादव

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