सोरायसिस एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा

ayurvedic-treatmentसुन्दर त्वचा स्वास्थ्य का आईना होती है। हमारे शरीरगत हर संस्था का त्वचा के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुछ न कुछ संबंध होता है। शरीरगत किसी भी संस्थान में हुआ बदलाव त्वचा पर परिणाम दिखाता है। इसीलिए त्वचा अगर स्वस्थ हो, सुंदर हो, तो हमारा स्वास्थ्य भी उत्तम होता है। जिस तरह चांद पर दाग के कारण उसकी सुंदरता पर ग्रहण लगता है, उसी तरह त्वचा पर सोरायसिस से होता है। सोरायसिस त्वचा का एक जिद्दी रोग है, जिसकी चिकित्सा प्रदीर्घ चलती है।

कारण : इसके निश्र्चित कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है, पर बार-बार बासी चीजों का खाना, अत्यंत तीखा-मसालेदार, चटपटा भोजन करना, त्वचा की स्वच्छता न रखना, मादक पदार्थों का अति सेवन, उत्तेजक वस्तुओं का त्वचा से संपर्क रहना, स्प्रे, ाीम, विषाक्त रंगों के कारण त्वचा को एलर्जी होना, मानसिक तनाव, शरीर में पोषक तत्वों की कमी इत्यादि आहार-विहार संबंधी कारणों से यह रोग होता है।

लक्षण : यह जीर्ण स्वरूप त्वचा रोग है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में आधारित कुष्ठ व्याधि में क्षुद्रकुष्ट का एक प्रकार है।

इसमें त्वचा पर सूजन आती है, लाल रंग के छोटे-छोटे चकते बनते हैं। किनारे उभरे हुए, स्पष्ट व चमकदार होते हैं, जिस पर एक झीना आवरण होता है। इसे हटाने पर रक्तवर्णी बिंदू दिखाई देते हैं।

यह कुष्ठ श्यामवर्ण का, खुरदुरा और कठोर पीड़ायुक्त होता है। यह पिंडिका किनारे से बढ़ जाती है और विशेष गोलाकार आकृति में निर्मित होती है। शरीर का जो हिस्सा प्रकाश के संपर्क में अधिक आता है, वहॉं सोरायसिस की पिंडिकाएँ नहीं होतीं। शीत ऋतु सोरायसिस बढ़ने के लिए अनुकूल ऋतु होती है। शरीर के ढके हुए भागों में यह ज्यादा होता है। धड़, सिर, कोहनी, घुटने पर यह अधिक होता है। यह कष्ट साध्य तो है, पर असाध्य नहीं है। रुग्ण को रहन-सहन और खान-पान की आदतों में बदलाव और निम्न बातों का पालन करना चाहिए –

  1. कोई भी कॉस्मेटिक, साबुन आदि त्वचा के संपर्क ना आने पाये।
  2. भोजन का समय निश्र्चित हो और भोजन लघु सुपाच्य हो।
  3. सूती, हल्के रंग के वस्त्र पहनें।
  4. रोज सुबह-शाम खुली हवा में टहलें।
  5. नित्य योगासन-प्राणायाम करें।
  6. प्रसन्न रहें।
  7. चिंता न करें।

घरेलू उपाय : भोजन में गाजर, पालक, टमाटर, मेथी आदि हरी सब्जियों का सेवन अत्यधिक मात्रा में करें व काढ़ा बनाकर सेवन करें।

व्याधि के स्थान को त्रिफला के काढ़े से धोएँ।

आयुर्वेदिक औषधि : आरोग्यवर्धिनी वटी, हत्ताल भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, गंधक रसायन, कैशोर गुग्गुल, गिलोय सत्व, प्रवाल पंचामृत आदि औषधियों के सेवन से सोरायसिस में फायदा होता है।

महामंजिष्ठा काढ़ा, सारीवाद्दासव 2-2 चम्मच 3 बार लें।

जसद भस्म युक्त मरिच्यादी तेल एवं नीम का तेल मिलाकर रोग के स्थान पर लगाएँ।

आयुर्वेदिक पंचकर्मा के अंतर्गत रक्तमोअण से शीघ्र लाभकारी परिणाम मिलते हैं। साथ ही तैल अभ्यंग चाधारा आदि से भी फायदा होता है।

औषधि चिकित्सा इस रुग्ण के वय, लिंग, रोग एवं रोगी की तात्कालिक स्थिति पर निर्भर करती है। इसलिए चिकित्सक के परामर्शानुसार ही औषधि लें।

– डॉ. राजश्री सोनी

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