हेली म्हारे बाहर, भटके काँई भजन

हेली म्हारे बाहर, भटके काँई।
थारे सब सुख है घट मांहि॥
हेली म्हारी घट में ही ज्ञान बिचारो।
थारे कुण है बोलन वालो॥ टेर ॥
हेली म्हारी कुण री करो ओलकाई।
ज्यांरा जन्म, मरण मिट जाई॥ 1 ॥
हेली म्हारी गगना में, घुरे रे निशाना।
ज्यांरा मर्म कोई कोई जाना॥ 2 ॥
हेली म्हारी इंगला, पिंगला नारी
ज्यांरी सुखमन सेज सँवारी॥ 3 ॥
हेली म्हारी मिलो पिया संग प्यारी।
वहाँ नहीं पुरुष नहीं नारी॥ 4 ॥
हेली म्हारी जानें, सँत सुजाना।
जिन्हें प्रेम तत्व, है पहचाना॥ 5 ॥
हेली म्हारी सोहं, चमके तारा।
जिन्हें शशी भान्, उजियारा॥ 6 ॥
हेली म्हारी बाजे, बीन सितारा।
जठे मुरली री, झँकारा॥ 7 ॥
हेली म्हारी मिले, कबीर गुरु पुरा।
म्हानें शब्द दिया, भरपुरा॥ 8 ॥

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