होमवर्क को छुट्टी दो

homeworkस्कूल जाने वाले बच्चों को होमवर्क या गृहकार्य दिया जाना चाहिए या नहीं? यह बहस पुरानी है और पक्ष व विपक्ष में खूब दलीलें दी जाती रही हैं और दी जाती रहेंगी। लेकिन खबर ये है कि ब्रिटेन के छात्रों को जल्द ही होमवर्क के बोझ से छुटकारा मिल जाएगा। नॉटिंघम ईस्ट अकेडमी ने तय किया है कि अब बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाएगा और उसके स्थान पर स्कूल के बाद अतिरिक्त गतिविधियों, जैसे स्पोट्र्स और एयरााफ्ट मॉडलिंग में छात्रों को लगाया जाएगा। इस फैसले से होमवर्क के संदर्भ में एक बार फिर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। हमारी शिक्षा व्यवस्था क्योंकि ब्रिटेन की शिक्षा व्यवस्था पर ही आधारित है, इसलिए यह अनुमान लगाए जाने लगे हैं कि अपने देश में भी होमवर्क को छुट्टी दे दी जाए।

बहरहाल, कुछ लोगों का कहना है कि पहले ब्रिटेन जो प्रयोग कर रहा है, उसके नतीजों को सामने आने दिया जाए और उसके बाद ही इस संदर्भ में कोई फैसला किया जाए। लेकिन कुछ का कहना है कि होमवर्क न सिर्फ बच्चे पर बल्कि उसके अभिभावकों पर भी अनावश्यक बोझ डालता है, इसलिए इसे तुरंत खत्म कर दिया जाए। जबकि एक विचार यह भी है कि होमवर्क के कारण बच्चे की अकेडमिक नींव म़जबूत होती है जिसके कारण उसे न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी सफलता हासिल होती है। पश्र्चिमी शिक्षा संस्थानों का मानना है कि भारतीय छात्र विदेशों में इसलिए अधिक सफल होते हैं क्योंकि होमवर्क के कारण उनकी नींव मजबूत होती है जिस पर शिक्षा की भव्य इमारत खड़ी करना आसान होता है। गर्ज यह है कि इस सिलसिले में अनेक दृष्टिकोण हैं और यह कहना कठिन है कि कम से कम भारतीय संदर्भों में कौन-सा नजरिया सही है।

इसमें शक नहीं है कि भारत सहित अधिकतर देशों में होमवर्क स्कूली व्यवस्था का अटूट हिस्सा बन गया है। होमवर्क हमारी शिक्षा प्रणाली में इतना ज्यादा रम गया है कि जब बच्चों को गृहकार्य नहीं मिलता, तो माता-पिता को शक होने लगता है कि स्कूल में सही ढंग से पढ़ाई नहीं करायी जा रही है। दरअसल, यह माना जाता है कि होमवर्क से छात्र के अकेडमिक कौशल की नोंक-पलक दुरूस्त हो जाती हैं और वह जानकारी से ओत-प्रोत हो जाता है।

लेकिन दूसरी तरफ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि होमवर्क न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि उसके मां-बाप के लिए भी जबरदस्त बोझ होता है। जो बच्चे अभी प्राइमरी स्कूल में हैं, वह होमवर्क के नाम से ही डर जाते हैं। अक्सर देखने में आया है कि होमवर्क के डर से वे स्कूल जाना भी पसंद नहीं करते और सुबह को पेट में दर्द या कोई अन्य बहाना बनाते हैं। इतने छोटे बच्चे को अगर कुछ सिखाना है तो उसकी लर्निंग प्रिाया मनोरंजन से भरी होनी चाहिए ताकि उसकी दिलचस्पी पढ़ने-लिखने में बढ़े।

प्राइमरी से ऊपर के जो छात्र हैं, उन्हें जो होमवर्क दिया जाता है, वह उनके खुद के बस की करना नहीं होता और अक्सर उनके माता-पिता के पास या तो समय नहीं होता या इतनी जानकारी नहीं होती कि वे अपने बच्चे के होमवर्क को पूरा कराएं। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चे का होमवर्क पूरा कराने के लिए ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है। यह एक और बोझ होता है जो माता-पिता को झेलना पड़ता है। गौरतलब है कि अपने देश में कम शिक्षा दर होने के कारण ऐसे अभिभावकों की कमी नहीं है जो अशिक्षित हैं। उन्हें अपने बच्चों के होमवर्क को पूरा कराने के लिए ट्यूशन लगाने की मजबूरी रहती है। सवाल यह है कि जब बच्चे को ट्यूशन के जरिए ही शिक्षित कराना है तो फिर उसे स्कूल क्यों भेजा जाए और स्कूलों को मोटी-मोटी फीस क्यों दी जाए? ध्यान रहे कि पाठ्याम का जो हिस्सा अध्यापक पूरा नहीं करा सकते या कराना नहीं चाहते, उसे होमवर्क बनाकर दे दिया जाता है और इस तरह स्कूल भेजने के बावजूद बच्चे को शिक्षित करने की जिम्मेदारी मां-बाप पर ही पड़ जाती है। जाहिर है, अगर इस होमवर्क संस्कृति से छुटकारा मिलेगा तो ट्यूशन जैसे अतिरिक्त खर्चों से भी अभिभावक बच सकेंगे।

शिक्षा का अर्थ है बच्चे का संपूर्ण विकास। इस विकास प्रिाया में स्पोट्र्स व अन्य एक्स्टा-करिकुलर गतिविधियां भी शामिल हैं। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि एक सेहतमंद जिस्म में ही सेहतमंद दिमाग होता है। अगर बच्चे को खेलने-कूदने का समय नहीं मिलेगा तो वह स्वस्थ नहीं रहेगा। होमवर्क की एक बड़ी दिक्कत यह है कि बच्चे को खेलने-कूदने के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता। वह दोपहर को जब स्कूल से लौटता है तो खाना खाने के बाद ट्यूशन पर जाने की तैयारी करने लगता है ताकि होमवर्क को पूरा किया जा सके। जब वह ट्यूशन से लौटता है तो दिन छुप चुका होता है और वह पार्क में खेलने या अपने दोस्तों से मिलने के लिए नहीं जा सकता। इससे यह बात समझ में आ जाती है कि आजकल बच्चों को स्पोट्र्स, सोशलाइजिंग या अपने दोस्तों व माता-पिता के साथ फुर्सत के क्षण गुजारने का वक्त क्यों नहीं मिल पाता।

इसलिए यह एक अच्छा विचार है कि स्कूल होमवर्क को छुट्टी दे दें और उसकी जगह ऐसी चीजों को डिजाइन करें जो छात्र की शिक्षा में दिलचस्पी बढ़ाएं और उसे स्वस्थ रहने में भी मदद करें। मसलन, स्कूल के बाद एक या डेढ़ घंटे का अतिरिक्त सत्र कोई चीज सिखाने के लिए इस्तेमाल किया जाए। इसके बाद छात्र अगली सुबह तक पूर्णतः पुस्तकों से स्वतंत्र रहे और खेल-कूद व सोशलाइजिंग में अपना समय व्यतीत करे। इससे वह न सिर्फ तनावमुक्त रहेगा बल्कि अगले दिन स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए तरोताजा भी रहेगा।

लेकिन जो लोग होमवर्क पर विराम लगाने के विरोध में हैं, उनका कहना है कि एक देश के शिक्षा सुधार दूसरे देश के लिए उपयोगी नहीं हो सकते। यह ऐसी कुंजी नहीं है जो हर ताले में लग जाए। उनका कहना है कि अपने देश में शैक्षिक वातावरण इंग्लैंड से भिन्न है और वह इस तरह का बनाया गया है कि बच्चा बड़े होने पर प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सके। इन लोगों का यह भी कहना है कि हर साल यह देखने में आता है कि छात्र 90 फीसद अंक लाने के बावजूद भी कॉलेज में प्रवेश नहीं हासिल कर पा रहा है। इसलिए इस प्रतिस्पर्धा के दौर में आवश्यक है कि बच्चा स्कूल में अच्छी शिक्षा ग्रहण करे जो सिर्फ होमवर्क से ही संभव है।

लेकिन यह तर्क देने के लिए तर्क हैं। हकीकत यह है कि होमवर्क एक ऐसा कार्य है जिससे कुछ विशेष हासिल होता नहीं है। इससे सिर्फ बच्चे और उसके माता-पिता पर समय व पैसे का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। जब स्कूल में मोटी फीस देकर बच्चे को पढ़ने के लिए भेजा जाता है तो यह अध्यापकों का कर्तव्य है कि वे बच्चे को ऐसी शिक्षा प्रदान करें कि वह इस प्रतिस्पर्धात्मक दौर में भी सफलता के झंडे गाड़ सके।

– वीना सुखीजा

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