आतंकवाद के खिलाफ मुस्लिम संस्थाओं की पहल

आतंकवाद को लेकर देश की मान्य इस्लामिक संस्थाओं में बहुत तेजी से आत्ममंथन का दौर शुरू हुआ है और इस दृष्टि से वे सक्रिय भी हुई हैं कि "ज़ेहाद' के नारे के साथ खूनी तहरीर लिखने वाले आतंकवादियों के कृत्य को ग़ैर इस्लामिक करार देकर न सिर्फ इसकी निन्दा की जाए बल्कि इसके विरोध में मुहिम भी चलाई जाए।

Terrorism In Indiaइसकी शुरुआत अभी हाल में इस्लामिक जगत की एक प्रतिष्ठित संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने मुसलमानों के सभी फिरकों के प्रतिनिधियों तथा उलेमाओं और इस्लामिक विद्वानों का एक सम्मेलन आयोजित कर की थी। दारुल-उलूम देवबंद की इस बात को लगभग सभी फिरकों के उलेमाओं ने अपनी पूरी सहमति दी कि आतंकवादियों द्वारा ज़ेहाद के नाम पर किया जाने वाला बेगुनाहों का कत्ल पूरी तरह इस्लाम विरोधी है और इस्लाम में अकीदा रखने वाले हर मुसलमान का यह फर्ज बनता है कि वह इसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करे। देवबंद ने अपनी इस मुहिम में मुसलमानों की बेहतरी और बहबूदी चाहने वाली हर संस्था को शामिल होने की दावत भी दी थी। इसके तहत अपने अगले कदम के तौर पर देवबंद और जमाते-हिन्द ने मिलकर एक फतवा भी जारी किया है, जिसमें मुसलमानों को खुद आगे बढ़ कर दहशतगर्दी के खिलाफ जंग करने की दावत दी गई है।

इस मुहिम की अगुआई देवबंद के हाथों में आने का सीधा असर मुसलमानों से संबंधित संस्थाओं पर देखा जा रहा है। जयपुर की आतंकी घटना के बाद इसके विरोध में देश के बहुतेरे शहरों में मुसलमानों ने स्वतः प्रेरणा से प्रदर्शन किया। देवबंद की इस पहल का महत्व इस कारण और बढ़ जाता है क्योंकि उस पर कट्टरतावाद का जनक और तालिबान जैसे ़खतरनाक आतंकी संगठन का हिमायती होने का आरोप मढ़ा जाता रहा है। जो भी हो, लेकिन अब यह साफ देखने में आ रहा है कि आतंकवाद को लेकर अपनी ओर उठने वाली उंगली को यह कौम अब और बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। उसका गुस्सा अब सड़कों पर ही नहीं, उसके जलसों, नमाजों और मस्जिदों में भी सार्वजनिक रूप से अपनी करतूतों से इस्लाम जैसे शांतिप्रिय मजहब को बदनाम करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ अयॉं हो रहा है।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की हर मस्जिद, हर मदरसे और हर खानकाह से आवाज़ आ रही है कि मुसलमान अब खुद दहशतगर्दी के खिलाफ उठ खड़े हों और दुनिया को बता दें कि आतंकवाद की अवधारणा अपनी हर शक्ल में इस्लाम-विरोधी है। “मूवमेंट अगेंस्ट टैररिज्म’ की अगुआई कर रहे युवा इस्लामी विद्वान मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने हर इमाम से अपील की है कि वे आम मुसलमान को आतंकवाद के खिलाफ प्रशिक्षित करें। दरअसल आतंकवाद के खिलाफ बगावत की शुरुआत “सूफी फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के बैनर तले सूफियों ने पिछले साल के दिसम्बर महीने में की थी और देश को करीब 500 से अधिक दरगाहों, मज़ारों और खानकाहों को जोड़ कर आतंकवाद के खिलाफ प्रचार के लिए एक कॉरीडोर बनाने की बात कही थी। उस पहल के बाद धीरे-धीरे सभी जागने लगे। सूफियों की इस पहल के बाद ही देवबंदियों ने पिछले दिनों सम्मेलन कर एक फतवे के तहत आतंकवादियों के तथाकथित ज़ेहाद को इस्लाम विरोधी कृत्य घोषित किया। हालॉंकि ऐसी राय रखने वाले लोगों की मुसलमानों में कमी नहीं है जो इस मुहिम को यह कह कर नकारते हैं कि इससे आम मुसलमानों के मन में अपराधबोध पैदा होगा। लेकिन इस मुहिम को अब इतना समर्थन मिल रहा है कि ये लोग खुल कर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं।

इस कोशिश की अहमियत और ज़रूरत को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। इसके अलावा इस कोशिश को मुसलमानों के अलावा दूसरे तबकों की सराहना और सहयोग दोनों मिलना चाहिए। यह सच है कि आतंकवाद के मसले पर इस कौम को भाजपा ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निशाने पर लिया है। आज वही भाजपा इस तरह की कोशिश के लिए दारुल-उलूम देवबंद की सराहना कर रही है। ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवबंद की इस मुहिम की भाजपा ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इस बात को दरकिनार भी कर दिया जाए, तो इसकी ज़रूरत और पहल को इस नज़रिये से भी देखा जा सकता है कि चन्द गुमराह आतंकवादी करतूतें पूरी कौम को संदेह के घेरे में लपेट रही थीं। इसके लिए ज़ेहाद जैसे कुछ धार्मिक प्रतीक-शब्दों का भी वे सहारा ले रही थीं। उनकी ओर से यह साबित करने की कोशिश की जा रही थी कि वे इस्लाम के ही उसूलों का पालन कर रहे हैं। अब जब इस्लाम के धर्मगुरु उनके इस कृत्य को इस्लाम-विरोधी बता रहे हैं तो निश्र्चित रूप से आतंकवादी अपनी “ज़ेहाद’ की अवधारणा से आम मुसलमान को भ्रमित नहीं कर सकेंगे।

राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को जड़-मूल से समाप्त करने के लिए इस पहल को इस दिशा में अब तक का सबसे सार्थक प्रयास माना जाना चाहिए।

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