लोग कहते हैं वैश्वीलकरण, उदारीकरण व निजीकरण

आज देश में महंगाई, बेरोजगारी व गरीबी बढ़ी है। महंगाई के कारण 70 प्रतिशत लोगों की दैनिक आय घटी है तथा बेरोजगारी बढ़ी है। वैश्‍वीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण के चलते एक ओर बाजार में चाइना आइटम भरे पड़े हैं तो दूसरी ओर देश में अधिकतर वस्तुएँ निर्यात के लिये बनायी जाती हैं। अतः भारतीय उद्योग […]

अपना हुनर मालूम है उनको!

एक पत्रकार को नेताजी का इंटरव्यू चाहिए था और नेताजी थे कि पकड़ में ही नहीं आ रहे थे। आये भी तो छूटते ही कह दिया, “”राजनीति पर बात नहीं करेंगे। राजनीति से संबंधित प्रश्र्न्नों के उत्तर नहीं देंगे।” पत्रकार सोचने लगा, तब हेडिंग कैसे बनेगी? मगर हेडिंग बनी और बहुत धांसू बनी! कैसे? नीचे […]

झूठ, भ्रम और अफवाहों के बादल

बरसात के मौसम में उमड़-घुमड़ कर बादल आते हैं, गरजते हैं और बरसकर चले जाते हैं। यह ही वह मौसम होता है जिसमें बिजली भी चमकती है और पोखरों, नालों और आस-पास के गड्डों में भरे पानी के कीचड़ में मेंढकों के झुंड के झुंड इकट्ठे होकर टर्र-टर्र की कर्कश आवाज में टर्राते रहते हैं। […]

अपना अस्पताल

ज्योतिषियों की कहूँ तो राहु-केतु की टेढ़ी आँखों की कुदृष्टि थी। डॉक्टरों की मानूँ तो लापरवाही थी। जो भी हो, शरीर में भूचाल-सा आ गया था। मैं दर्द से बेतहाशा बिलखने लगा था। मुझे लगा कि मेरे शरीर के भीतर सैकड़ों कॉंटें चुभ रहे हैं। मुझे लगा कि मैं कॉंटों की वादी में पहुँच गया […]

गुफ्तगू एक बूढ़े मकान से

मैंने देखा, वह बूढ़ा मकान जो कभी किसी का घर हुआ करता था, किसी उजड़े हुए आदमी की तरह अपनी नींव पर सोच में डूबा हुआ, बैठा हुआ है। उसकी दीवारों पर घास उग आई थी। उसकी आंखें बंद थीं। अचानक उसने आंखें खोल कर मुझे देखा। मैंने उसकी आंखों में बीते हुए वक्त को […]

किसके लिये देशभक्ति

एक रिपोर्ट इन दिनों अखबार और टीवी में लगातार पढ़ने-देखने को मिल रही है कि फौज से अफसरों का मोह भंग हो रहा है और फौज छोड़ने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। फौज छोड़ने के कई कारण गिनाये जा रहे हैं जिनमें प्रमुख है कि छठे वेतन आयोग ने उन्हें कोई […]

गुफ्तगू एक बू़ढे मकान से

मकान मुझे देखकर मुस्कुराया। आखिर क्यों न मुस्कुराता? कितने दिनों बाद कोई उसके आंगन में आया था। किसी के आने से किसी को कितनी खुशी होती है, यह उससे पूछिए जो अपने ही घर में अकेला रह गया हो। मैंने उस सुनसान और अंधेरे मकान में पांव रखा, तो आंगन में खड़ा वह पुराना पेड़ […]

ब्लॉग हो तो हर कोई बांचे

किसी जमाने में एक गाना बहुत चलता था, “चिट्ठियॉं हों तो हर कोई बांचे, भाग न बांच्यो जाय।’ जमाना बदला। कम्प्यूटर आए। चिट्ठियां ई-मेल हो गईं। ई-मेल एसएमएस हो गए। एसएमएस एमएमएस हो गए। इधर नेट ने ब्लॉग बनवा दिए। हर व्यक्ति को अपने दिल की भड़ास निकालने का सुनहरा अवसर मिल गया। ब्लॉगों की […]

सपने में एक प्रेस कांफ्रेंस

इन दिनों कुछ काम-धाम था नहीं। सोचा, बैठे-ठाले एक प्रेस कांफ्रेंस ही कर डालें। वैसे भी ज्यादातर प्रेस कांोंसेज ऐसे ही ठाले-बैठे हो जाया करती हैं। मैंने पत्रकारों को निमंत्रण भेज दिये। शाम को प्रेस क्लब पहुँचा तो आश्र्चर्य के साथ देखा, नगर के सभी बड़े-बड़े दिग्गज पत्रकार उपस्थित हैं। केवल चाय और नमकीन पर […]

नेता और भगवान

सरकार की कार्यकुशलता से आजिज आ चुकी न्यायपालिका की यह टिप्पणी कि “इस देश को भगवान भी नहीं बचा सकता’ ने एक बार फिर भगवान की पोल खोल दी है। हम तो पहले भी कहते थे कि यह काम भगवान के बस का नहीं है। भगवान दुनिया को संभाल सकता है, भारत को नहीं। दुनिया […]

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